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दूरदर्शी महारानी और करुणा की मूर्ति अहिल्याबाई!

अहिल्याबाई होल्कर वास्तव में 'संत महारानी' की उपाधि की हकदार

जीवन और विरासत पर 'देवी अहिल्या-त्यागी महारानी' व्याख्यान

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 31 January 2025 12:43:28 PM

'devi ahilya-tyagi maharani' lecture

नई दिल्ली। लोकमाता महारानी अहिल्याबाई होल्कर त्रिशताब्दी समारोह समिति और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में देवी अहिल्याबाई होल्कर के जीवन और उनकी महान विरासत पर 'देवी अहिल्या-त्यागी महारानी' शीर्षक से एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। कविकुल गुरू महाकवि कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक महाराष्ट्र की कुलपति रहीं प्रोफेसर उमा वैद्य ने व्याख्यान में महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर को आम लोगों की रानी कहकर उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक योगदान पर गहन चर्चा की। उन्होंने देवी और अहिल्या शब्दों के अर्थों पर ध्यान केंद्रित करते हुए महारानी अहिल्याबाई होल्कर के 70 वर्ष के जीवन और कार्यों का विस्तृत और व्यावहारिक विवरण प्रस्तुत किया। प्रोफेसर उमा वैद्य ने कहाकि देवी अहिल्याबाई होल्कर के बारेमें बोलना ही उनके (उमा वैद्य) लिए एक बड़ा सम्मान है, देवी अहिल्याबाई का जीवन एक सच्चे नेता के उच्च नैतिक मूल्यों का उदाहरण है, कोई ऐसा शासनकर्ता जिसने न केवल शान से शासन किया, बल्कि अपने लोगों का कवच बनकर उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला।
महारानी अहिल्याबाई होल्कर की व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'अहिल्या' नाम की व्याख्या 'बिना जुती भूमि' के रूपमें की जा सकती है, जो पवित्रता और प्राचीन प्रकृति का प्रतीक है। अहिल्या नाम ही पवित्रता का प्रतीक है, उन्होंने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से अपने नाम के अनुरूप गुणों के आदर्श प्रस्तुत किए तथा करुणा और समर्पण की एक स्थायी और महान विरासत छोड़ी। वेद शास्त्रों और भारतीय सनातन परंपरा में देवी शब्द का प्रयोग न केवल 'दैदीप्यमान महिला' केलिए किया जाता है, बल्कि यह देवत्व को भी दर्शाता है। देवी अहिल्याबाई के नेतृत्व में यह दिव्य सार समाहित था, क्योंकि उन्होंने अपनी प्रजा की देखभाल एक माँ जैसे समर्पण संरक्षण केसाथ की, जिससे उन्हें 'लोकमाता' की उपाधि मिली। खासकर विदेशी शासन में देवी अहिल्याबाई का जीवनपथ प्रेरणादायक और दुर्लभ दोनों है, उनका योगदान आर्थिक, राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य क्षेत्रों में फैला हुआ है, जो उनके परोपकार और सार्वजनिक सेवा केप्रति प्रतिबद्धता से पूरित था। वह एक ऐसी महिला शासक के रूपमें आदर्श रूपमें खड़ी हैं, जिन्होंने शक्ति और करुणा, नैतिकता और कार्य केबीच संतुलन बनाया, वे आजभी शासनकर्ताओं केलिए प्रेरणा हैं।
अहिल्याबाई होल्कर वास्तव में 'संत महारानी' की उपाधि की हकदार हैं। वे एक ऐसी नेता हैं, जिन्होंने अपने लोगों के कल्याण केलिए नि:स्वार्थ भाव से सत्ता का इस्तेमाल किया। उन्होंने मूल्यों, चरित्र और त्याग की भावना को मूर्तरूप दिया, एक महिला नेता के रूपमें एक अमिट छाप छोड़ी, जिसका प्रभाव समय से परे है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की ट्रस्टी पद्म विभूषण डॉ सोनल मानसिंह ने देवी अहिल्याबाई के जीवन की विभिन्न घटनाओं और उनके उल्लेखनीय व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने उल्लेख कियाकि राघोबा के इंदौर पर आक्रमण करने के प्रयास के दौरान देवी अहिल्याबाई ने अदम्य साहस, दूरदर्शिता और रणनीतिक कौशल का परिचय दिया, जो हम सभी केलिए प्रेरणास्रोत हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता भी डॉ सोनल मानसिंह ने की। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि देवी अहिल्याबाई की त्रिशताब्दी मनाना हमारी सामाजिक प्रतिबद्धता का सम्मान करने और हमारे देश में गहराई से समाहित आध्यात्मिकता को याद करने का एक तरीका है, हम सभी जानते हैंकि अहिल्याबाई होल्कर ने अपने समय की जटिल चुनौतियों केबीच जिस तरह का काम किया, वह किसी केलिए भी प्रेरणा का काम कर सकता है। कलादर्शन प्रभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ऋचा काम्बोज ने वक्ताओं और अतिथियों केप्रति आभार व्यक्त किया। भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान (आईआईएएस) शिमला के अध्यक्ष प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

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