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तो फिर दिल्ली में कमल खिलना ही था!

'आप' के वादों की अनदेखी और ध्वस्त छवि भाजपा को लाई

रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स का दिल्ली विस चुनाव का विश्लेषण

Wednesday 12 February 2025 01:24:42 PM

रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स

रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स

kamal (file image)

आम आदमी पार्टी ने पिछले 13 वर्ष से भाजपा और कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टियों को दिल्ली की सत्ता में नहीं आने दिया है। वर्ष 1993 के बाद यह पहली बार है, जब भाजपा ने दिल्ली विधानसभा में और वह भी 'आप' पर शानदार जीत दर्ज की है। कईयों ने दावा तो किया थाकि 'आप' के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को 2025 का विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से ज्यादा कठिन होगा। चुनाव परिणाम के बाद यह स्पष्ट हो गया है। भाजपा दिल्ली विधानसभा की 70 में से 48 सीटें जीतकर 27 साल बाद देश की राजधानी दिल्ली में सत्ता में आई है। इस प्रकार पिछले चुनाव में 62 सीटें जीतने वाली 'आप' को इस चुनाव में 22 सीटों पर रुक जाना पड़ा तो कांग्रेस को पिछलीबार की तरह एक भी सीट नहीं मिली।
रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स अर्थात 'रुद्र' संस्थान ने हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों का अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि वोटों का विभाजन और 'लाडली बहना' जैसी लोकप्रिय योजनाएं इस चुनाव में भाजपा केलिए फायदेमंद रहीं। ऐसा प्रतीत होता हैकि आम आदमी पार्टी की हार भ्रष्टाचार, यमुना नदी की सफाई के मुद्दे और मध्यम वर्ग के मतदाताओं की नाराज़गी के कारण हुई। वर्ष 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को करीब 54 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2025 के विधानसभा चुनाव में 'आप' को करीब 44 फीसदी वोट मिले। इन दोनों चुनावों में 10 प्रतिशत वोटों का अंतर है, जबकि इसके विपरीत, भाजपा का वोट शेयर 7 प्रतिशत बढ़ा हुआ है। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 2020 की तुलना में 2 प्रतिशत बढ़ा है। यही कारण प्रतीत होता हैकि कांग्रेस के बढ़ते वोट शेयर का भाजपा को लाभ हुआ है। 'आप' और कांग्रेस के बीच गठबंधन न होने के कारण अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया सहित 'आप' के 14 नेता चुनाव हार गए। कांग्रेसियों की तो जमानत भी जप्त को गई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में 'आप' को कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ा झटका लगा है। 'आप' और कांग्रेस ने अपने स्वतंत्र उम्मीदवार उतारे थे, जिससे उनके वोट बंट गए, जिसका फायदा भाजपा को हुआ। 'आप' कई निर्वाचन क्षेत्रों में मामूली अंतर से पीछे रही। हालांकि कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन कांग्रेस को मिले वोटों का प्रतिशत दर्शाता हैकि 'आप' को तगड़ा झटका लगा है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और 'आप' के बीच गठबंधन था, लेकिन विधानसभा चुनाव में कोई गठबंधन नहीं हुआ, जिससे मतदाताओं में इन दोनों दलों केबारे में नकारात्मक संदेश गया। राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की कड़ी आलोचना की जिससे कांग्रेस ने अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया। यही कारण हैकि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले वोटों का प्रतिशत 2020 की तुलना में बढ़ा है। नई दिल्ली, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, राजेंद्र नगर, मादीपुर, मालवीय नगर, बादली, छतरपुर, कस्तूरबा नगर, महरौली, नांगलोई जाट, संगम विहार, तिमारपुर और त्रिलोकपुरी मेंवोटों का बड़ा विभाजन देखा गया। दिल्ली में कस्तूरबा नगर नाम का विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र है, जहां कांग्रेस उम्मीदवार को आम आदमी पार्टी उम्मीदवार से अधिक वोट मिले हैं।
मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में एआईएमआईएम, कांग्रेस और 'आप' उम्मीदवारों के बीच वोट विभाजन से भाजपा को फायदा हुआ है। देखा जा सकता हैकि इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोट तीन पार्टियों में बटे हुए हैं। मध्यमवर्ग के मतदाता का भाजपा को साथ मिला। कहा जाता थाकि 'आप' का मध्यमवर्गीय परिवारों में बड़ा जनाधार है। 'आप' ने बहुत कम लागत में पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराकर इस वर्ग के बीच अपनी विश्वसनीयता और लोकप्रियता बनाई थी, इसलिए अतीत में मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया था, जो व्यक्तिगत रूपसे 'आप' पर भरोसा करता था। हालांकि यह देखा गया हैकि पिछले चुनावों में 'आप' ने जिन मुद्दों को मतदाताओं के बीच उठाया था, उन्हें इसबार भी उठाया गया और नए मुद्दों पर कोई रणनीति नहीं बनाई गई थी। भाजपा मध्यमवर्ग के मतदाताओं के बीच यह प्रचार करती नज़र आई कि किस तरह अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के वादे विफल हो गए हैं। मतदाताओं में अरविंद केजरीवाल के प्रति भी नाराज़गी थी, क्योंकि एक दशक से अधिक समय के बाद भी दिल्ली में बुनियादी समस्याएं पूरी तरह से हल नहीं हुई हैं। दिल्ली में जब विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चल रहा था, उसी दौरान केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट में घोषणा कीकि 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय, करमुक्त होगी। ऐसा माना जा रहा हैकि इस घोषणा का मध्यम वर्ग पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
भाजपा की योजनाएं और उसका सशक्त प्रचार अभियान इसबार ज्यादा कारगर सिद्ध हुए। जैसाकि भाजपा 1993 से दिल्ली में सत्ता में नहीं रही है। लगभग पूरे देश में सत्ता में होने के बावजूद भाजपा दिल्ली में अपना प्रभाव नहीं जमा सकी, इसलिए भाजपा ने इसबार सत्ता में आने केलिए पुरजोर कोशिश की। भाजपा ने चुनाव में केंद्र के प्रभावशाली नेताओं और मंत्रियों को भी मैदान में उतारा था। मतदाताओं के समग्र विभाजन को देखते हुए यह कहा गया कि आम आदमी पार्टी का दिल्ली के मध्यम वर्ग के मतदाताओं पर व्यक्तिगत प्रभाव है। पूरे दिल्ली शहर में पूर्वी राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आये मतदाताओं की संख्या 25 लाख से अधिक है, इसिलिए यह देखा गयाकि भाजपा ने पूर्वांचल प्रदेश से प्रभावशाली नेताओं को चुनाव प्रचार केलिए दिल्ली बुलाया था। भाजपा ने अन्य दलों के नेताओं का भी बहुत कुशलता से उपयोग किया। उन्होंने ऐसे कई नेताओं को विधानसभा केलिए नामांकित किया और जीत हासिल की। कांग्रेस से भाजपा में आए तरविंदर सिंह मारवाड़ जंगपुरा से जीते। पूर्व कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली गांधी नगर से और राजकुमार चौहान मंगोलपुरी से जीते। भाजपा ने कई फर्जी नाम कम करने और नए नाम शामिल करने केलिए अच्छा नियोजन किया था। ऐसी लोगों में चर्चा है। साथही भाजपा ने बूथों की बेहतर योजना बनाई थी। भाजपा ने प्रत्येक केंद्रीय मंत्री को दो विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी थी।
नरेंद्र मोदी का करिश्मा भाजपा के चमत्कारिक रूपसे काम आया। भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव केलिए रणनीतिक रूपसे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था और देखा गयाकि भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर यह चुनाव लड़ा। नरेंद्र मोदी ने चुनाव के दौरान अपने भाषणों के माध्यम से मतदाताओं को भाजपा के लक्ष्यों और नीतियों से अवगत कराया, जिससे भाजपा को बड़ा लाभ हुआ है। कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले 'आप' के नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे जिससे 'आप' यमुना में डूबती ही गई और डूब गई। भाजपा ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने केलिए दिल्ली शराब घोटाले और यमुना में ज़हर को मुद्दा बनाया। अरविंद केजरीवाल को केंद्रीय जांच एजेंसियों के माध्यम से 2024 में शराब घोटाले में जेल भेज दिया गया। अरविंद केजरीवाल केसाथ दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी जेल जाना पड़ा। इससे मतदाताओं के बीच आम आदमी पार्टी के बारे में बेहद नकारात्मक संदेश गया। अरविंद केजरीवाल सहानुभूति पाने में विफल रहे। अरविंद केजरीवाल को जब जेल जाना पड़ा था, तबभी उनके लिए चुनाव में कोई सहानुभूति नहीं देखी गई। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया, इससे भी मतदाताओं में नकारात्मक संदेश गया।
भाजपा ने दिल्ली विधानसभा की मतदाता सूचियों की योजना पहले ही बना ली थी और चर्चा रही कि कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने हिंदुत्व विचारधारावाले मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल करने पर ध्यान दिया और भाजपा को नए मतदाताओं को पंजीकृत करने से लाभ हुआ। भाजपा ने प्रत्येक महिला को 2,500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया था और महिलाओं ने उसका यह आश्वासन माना कि चूंकि यह योजना अन्य भाजपाशासित राज्यों में भी लागू की जा रही है इसलिए इसे दिल्ली में भी लागू किया जाएगा।भाजपा को इससे लाभ हुआ है। यमुना नदी की सफाई के मुद्दे पर भाजपा 'आप' को घेरने में कामयाब रही। अरविंद केजरीवाल ने पहले यमुना नदी को साफ करने का वादा किया था, जो वह पूरा नहीं कर सके। अरविंद केजरीवाल और 'आप' के नेताओं का यह दांव उन्हीं के खिलाफ गया कि यमुना में जहर मिला दिया गया है। इसे भाजपा की ओर से खूब प्रचारित किया गया और दिल्ली की जनता ने माना कि 'आप' के नेता हार रहे हैं, इसलिए भाजपा पर इस प्रकार के झूंठे आरोप मढ़ रहे हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में एनजीटी के आदेश पर यमुना सफाई का काम चल रहा था, जिसपर केजरीवाल सरकार ने न्यायालय के जरिए रोक लगवाई। यमुना के तकरीबन 52 किलोमीटर के लंबे तट पर 15 विधानसभा क्षेत्र का विस्तार है। भाजपा ने अरविंद केजरीवाल सरकार के यमुना की सफ़ाई के कारनामों को उजागर किया, जिसका भाजपा को लाभ मिला।
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में यमुना केलिए अलग फंड और साबरमती जैसा यमुना रिवर फ्रंट बनाने का वादा किया, जिसपर जनता ने यकीन किया और भाजपा को वोट किया। भाजपा ने यमुना सफाई को आस्था से भी जोड़ा और कहाकि 'आप' की सरकार के 10 साल के कार्यकाल में मां यमुना की सफाई नहीं हो सकी, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचा। इस कारण यमुना से जुड़ी आस्था ने भी ’आप’ को नुकसान पहुंचाया। भाजपा को पूर्वांचल के मतदाताओं का हिंदुत्व के मुद्दे पर साथ मिला। दिल्ली में बसे पूर्वांचल के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने केलिए भाजपा ने पूर्वांचल के महत्वपूर्ण भाजपा नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा था। श्रीराम मंदिर समेत अन्य हिंदुत्ववादी मुद्दों पर भी मतदाताओं के बीच प्रचार किया गया। इसका भाजपा को फायदा मिला। माना जाता हैकि आम आदमी पार्टी ने शुरुआती दौर में अच्छा काम किया था। अरविंद केजरीवाल ने साधारण कपड़े पहनकर और साधारण वाहन चलाकर मतदाताओं का दिल जीता था, मगर कहा जा रहा हैकि अरविंद केजरीवाल का यह एक नाटक था, जिससे 'आप' 2020 के बाद जनता में विश्वास कायम नहीं रख पाई। बाद में वे लग्जरी कारों में घूमने लगे, आलीशान घरों में रहने लगे, मुख्यमंत्री का महल बनवा दिया, उन्होंने भाजपा के हिंदुत्व के विकल्प के रूप में अपना प्रारंभिक रुख बदलते हुए 'सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड' खेलने की कोशिश की, जिसे लोगों ने स्वीकार नहीं किया।
भाजपा ने मतदाताओं को आश्वासन दिया कि वह आम आदमी पार्टी की विभिन्न योजनाओं को जारी रखेगी। मतदाता भाजपा की इस बात से आश्वस्त हुए कि भाजपा इन योजनाओं को बंद नहीं करेगी, बल्कि दिल्ली के विकास केलिए उनमें और अधिक योजनाएं जोड़ी जाएंगी। 'आप' के नेता अपनी लोकप्रिय योजनाओं पर चुनाव जीत लेने का भ्रम पाले रहे। आम आदमी पार्टी के नेताओं का मानना रहा कि मुफ्त योजना के दम पर उन्हें वोट मिलेंगे, जिसके चलते 'आप' लापरवाह हो गई और उसने मतदाताओं के समक्ष कोई नई विशेष योजना भी प्रस्तुत नहीं की। माना जा रहा हैकि दिल्ली के कई निर्वाचन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं पहुंची हैं। भाजपा ने प्रचार किया कि नालियां, सड़कें, कूड़ा व्यवस्थापन जैसी सुविधाएं कई निर्वाचन क्षेत्रों तक पहुंची ही नहीं। भाजपा को इसका लाभ मिला। आखिर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से हार गए। दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने कांग्रेस की ओर से उनके सामने चुनाव लड़ा, मगर वे तो नहीं जीत सके, किंतु अरविंद केजरीवाल को भाजपा के प्रचंड नेता प्रवेश वर्मा ने 4089 मतों से हरा दिया। मुकाबले में कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित केवल 4568 वोट हासिल कर सके। पिछले तीन चुनावों में दिल्ली के वाल्मीकि समुदाय ने झुग्गी पुनर्वास के वादे पर अरविंद केजरीवाल को भारी समर्थन दिया था, मगर वे यह वादा पूरा नहीं कर पाए, जिससे वाल्मीकी समुदाय में भारी असंतोष था। इसका भाजपा ने फायदा उठाया और वाल्मीकि समुदाय के नेताओं को विश्वास में लेकर उन्हें अपने पक्ष में करने की सफल कोशिश की। प्रवेश वर्मा ने अपने निजी कोष से इस समुदाय की बस्तियों में कुछ विकास कार्य शुरू किए थे, इसलिए भी ऐसा प्रतीत होता हैकि वाल्मीकि समुदाय के कुछ मतदाताओं ने भाजपा का समर्थन किया है।
दिल्ली के उच्च मध्यम वर्ग और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का रुझान भाजपा के पक्ष में ही दिखाई दिया। भाजपा की सरकारी कर्मचारियों को आकर्षित करने की कोशिशें कामयाब दिखी हैं। इसी जनवरी में केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग की स्थापना की घोषणा की थी। ऐसा प्रतीत होता हैकि उन्हें श्रमिक वर्ग से भी अच्छे वोट मिले हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं का मुद्दा तो जोर से उठाया, लेकिन भाजपा ने जानबूझकर मुस्लिम विरोधी रुख़ अपनाने से परहेज किया। इससे मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और एमआईएम के बीच बंट गए, जिसका फायदा भाजपा को मिला। भाजपा ने नए चेहरों को मौका दिया, जिन्होंने भाजपा की बड़ी जीत में अहम भूमिका निभाई। दिल्ली चुनाव में भाजपा ने कुल 68 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 46 उम्मीदवार बदल दिए गए थे। भाजपा ने कुल 67 प्रतिशत नए उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स का यह चुनावी विश्लेषण दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम का ग्राउंड आधारित है, जिसमें राजनीतिक विशेषज्ञों, राजनीतिक नेताओं और आम मतदाताओं से बातचीत की गई है, जिसमें पता चलता हैकि दिल्ली में इसबार कैसे कमल खिला और आम आदमी पार्टी क्यूं और कैसे सत्ता से बाहर हो गई। वस्तुत: दिल्ली से 'आप' के वादों की अनदेखी और ध्वस्त छवि भाजपा को लाई, जिससे दिल्ली में कमल खिलना ही था!

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