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आरएसएस देश के लिए जीने की प्रेरणा-नरेंद्र मोदी

शरद पवार ने मोदी को बनाया गौरवशाली मराठा परंपराओं का हिस्सा

दिल्ली में हुआ भव्य 98वां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 22 February 2025 03:01:02 PM

sharad pawar made modi a part of the glorious maratha traditions

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा हैकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश केलिए जीने की प्रेरणा दी है। प्रधानमंत्री विज्ञान भवन दिल्ली में 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने मराठी भाषा के इस भव्य आयोजन में मराठियों का जोरदार स्वागत किया और कहाकि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन किसी भाषा या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि सम्मेलन में आजादी की लड़ाई की महक केसाथ-साथ महाराष्ट्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत भी जुड़ी है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन 1878 में अपने पहले आयोजन से अबतक भारत की 147 वर्ष की यात्रा का साक्षी है, महादेव गोविंद रानाडे, हरिनारायण आप्टे, माधव श्रीहरि अणे, शिवराम परांजपे, वीर सावरकर जैसी देश की महान विभूतियों ने इसकी अध्यक्षता की है। महाराष्ट्र के मराठा छत्रप शरद पवार ने इस गौरवशाली परंपरा का हिस्सा बनने केलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया था, जिसका नरेंद्र मोदी ने आभार व्यक्त करते हुए देश और दुनियाभर के मराठी प्रेमियों को इस आयोजन केलिए बधाई और शुभकामनाएं दीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेखांकित कियाकि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मराठी भाषा के बारेमें सोचते समय संत ज्ञानेश्वर के वचन याद आना बहुत स्वाभाविक है। संत ज्ञानेश्वर के एक पद्य की व्‍याख्‍या करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहाकि मराठी भाषा अमृत से भी बढ़कर मीठी है, इसलिए मराठी भाषा और मराठी संस्कृति केप्रति उनका प्रेम और स्नेह अपार है। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहाकि हालांकि वे इस कार्यक्रम में मौजूद मराठी विद्वानों जितने प्रवीण नहीं हैं, लेकिन वह मराठी सीखने केलिए निरंतर प्रयासरत रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने इसबात को रेखांकित कियाकि यह सम्मेलन ऐसे महत्वपूर्ण समय पर हो रहा है, जब राष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ, पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती और बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से निर्मित हमारे संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इसबात पर गर्व व्यक्त करते हुएकि महाराष्ट्र की धरती पर एक मराठी भाषी महापुरुष ने 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का बीज बोया था नरेंद्र मोदी ने कहाकि आज यह एक वटवृक्ष के रूपमें अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। उन्होंने कहाकि 100 वर्ष से आरएसएस ने अपने सांस्कृतिक प्रयासों के माध्यम से वेदों से लेकर विवेकानंद तक भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि उनका सौभाग्य है कि उनके जैसे लाखों लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश केलिए जीने की प्रेरणा दी है। उन्होंने यहभी कहाकि आरएसएस के माध्यम से ही उन्हें मराठी भाषा और परंपरा से जुड़ने का अवसर मिला। नरेंद्र मोदी ने जिक्र कियाकि कुछ महीने पहले ही मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है, जिसका भारत और दुनियाभर में 12 करोड़ से अधिक मराठी भाषियों को दशकों से इंतजार था। प्रधानमंत्री ने इस आयोजन में आना अपने जीवन का सौभाग्य बताया। प्रधानमंत्री ने कहाकि भाषा केवल संवाद का माध्यमभर नहीं होती है, बल्कि हमारी संस्कृति की संवाहक होती है। उन्होंने कहाकि भाषाएं समाज में जन्म लेती हैं और वे समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मराठी भाषा के महत्व के बारेमें समर्थ रामदासजी के शब्दों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि मराठी एक संपूर्ण भाषा है, जिसमें वीरता, सौंदर्य, संवेदना, समानता, समरसता, आध्यात्मिकता और आधुनिकता है। उन्होंने कहाकि मराठी में भक्ति, शक्ति और युक्ति भी है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि जब भारत को आध्यात्मिक ऊर्जा की जरूरत हुई तो महाराष्ट्र के महान संतों ने ऋषियों के ज्ञान को मराठी में सुलभ कराया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत रामदास, संत नामदेव, संत तुकड़ोज़ी महाराज, गाडगे बाबा, गोरा कुम्हार और बहीणाबाई के योगदान को सह्रदय स्वीकार किया, जिन्होंने मराठी में भक्ति आंदोलन के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दिखाई। प्रधानमंत्री ने आधुनिक समय में गजानन दिगंबर मडगुलकर और सुधीर फड़के की गीत रामायण के प्रभाव को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने प्रकाश डालाकि गुलामी के सैकड़ों वर्ष के लंबे कालखंड में मराठी भाषा, आक्रांताओं से मुक्ति का जयघोष बनी। उन्होंने दुश्मनों को नाको चने चबवाने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज और बाजीराव पेशवा जैसे मराठा योद्धाओं की वीरता का उल्लेख किया। उन्होंने कहाकि आज़ादी की लड़ाई में वासुदेव बलवंत फड़के, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और वीर विनायक दामोदर सावरकर जैसे सेनानियों ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। उन्होंने उनके योगदान में मराठी भाषा और साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया। नरेंद्र मोदी ने प्रकाश डालाकि केसरी और मराठा जैसे समाचार पत्र, कवि गोविंदराज की ओजस्वी कविताएं और रामगणेश गडकरी के नाटकों ने राष्ट्रवाद की भावना को पोषित किया है। उन्होंने कहाकि लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने गीता रहस्य भी मराठी में ही लिखी थी, जिसने देश में नई ऊर्जा भर दी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि मराठी भाषा और साहित्य ने समाज के शोषित और वंचित वर्गों केलिए सामाजिक मुक्ति के द्वार खोले हैं। उन्होंने ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, महर्षि कर्वे और बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जैसे महान समाज सुधारकों के योगदान का उल्लेख किया, जिन्होंने मराठी में नए युग की सोच को सींचने का काम किया है, मराठी भाषा ने देश को समृद्ध दलित साहित्य दिया है। उन्होंने कहाकि अपने आधुनिक चिंतन के कारण मराठी साहित्य में विज्ञान कथाओं की भी रचनाएं हुई हैं। आयुर्वेद, विज्ञान और तर्कशास्त्र में महाराष्ट्र के लोगों के असाधारण योगदान को स्वीकार करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहाकि इस संस्कृति ने हमेशा नए विचारों और प्रतिभाओं को आमंत्रित किया है, जिससे महाराष्ट्र की प्रगति हुई है। उन्होंने कहाकि मुंबई केवल महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश और दुनिया की आर्थिक राजधानी बनकर उभरी है। प्रधानमंत्री ने कहाकि जब मुंबई की बात आती है तो फिल्मों का उल्लेख किए बिना साहित्य की चर्चा पूरी नहीं हो सकती, यह महाराष्ट्र और मुंबई ही है, जिन्होंने मराठी फिल्मों और हिंदी सिनेमा दोनों को ऊंचाई दी है। उन्होंने फिल्म 'छावा' की लोकप्रियता का उल्लेख किया, जिसमें शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास के माध्यम से संभाजी महाराज की वीरता को पेश किया गया है।
नरेंद्र मोदी ने कवि केशवसुत को उद्धृत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि हम पुरानी सोच पर थमे नहीं रह सकते और मानव सभ्यता, भाषा और विचार निरंतर विकसित होते रहते हैं। उन्होंने कहाकि भारत दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यताओं में से एक है, क्योंकि इसने लगातार विकास किया है, नए विचारों को जोड़ा है और नए बदलावों का स्वागत किया है। प्रधानमंत्री ने कहाकि भारत की विशाल भाषाई विविधता विकास का प्रमाण और एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है। उन्‍होंने भाषा की तुलना मां से करते हुए कहाकि मां की तरह ही भाषा भी बिना किसी भेदभाव के अपने बच्चों को नया और व्यापक ज्ञान प्रदान करती है। उन्होंने कहाकि भाषा हर विचार और हर विकास को अपने में समाहित करती है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि मराठी की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है और इसमें प्राकृत का भी काफी प्रभाव है। उन्होंने महान विचारकों और लेखकों के योगदान पर प्रकाश डाला, जिन्होंने मानवीय सोच को और अधिक व्यापक बनाया है। उन्होंने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की गीता रहस्य का उल्लेख किया, जिसने संस्कृत गीता की व्याख्या की और इसे मराठी के माध्यम से जनसुलभ बनाया। उन्होंने उल्लेख कियाकि ज्ञानेश्वरी गीता में भी संस्कृत पर मराठी में टिप्पणी लिखी गई, जो आज विद्वानों और संतों केलिए गीता को समझने केलिए एक मानक बन गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि मराठी ने दूसरी सभी भारतीय भाषाओं से साहित्य को लिया है और बदले में उन भाषाओं को भी समृद्ध किया है। उन्होंने 'आनंदमठ' जैसी कृतियों का मराठी में अनुवाद करने वाले भार्गवराम विट्ठल वरेकर और पन्ना धाय, दुर्गावती और रानी पद्मिनी के जीवन पर आधारित कृतियों की रचना करने वाली विंदा करंदीकर, जिनका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जैसे लोगों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहाकि भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा, उन्‍होंने हमेशा एक दूसरे को अपनाया और एक दूसरे को समृद्ध किया है। प्रधानमंत्री ने इंगित कियाकि जब भाषा के नाम पर भेद डालने की कोशिश की जाती है तो हमारी भाषाओं की साझी विरासत ही उसका सही जवाब देती है। प्रधानमंत्री ने भाषाओं को समृद्ध करने और उन्हें अपनाने के दायित्व पर जोर देते हुए इन भ्रमों से दूर रहने का आग्रह किया। उन्होंने कहाकि आज देश की सभी भाषाओं को मुख्यधारा की भाषाओं के रूपमें देखा जाता है। उन्होंने मराठी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देनेके प्रयासों की ओर इशारा किया। नरेंद्र मोदी ने उल्लेख कियाकि अब महाराष्ट्र के युवा मराठी में उच्च शिक्षा, इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कर सकेंगे। उन्होंने कहाकि अंग्रेजी न जानने के कारण प्रतिभाओं की उपेक्षा करने वाली सोच को बदल दिया गया है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि साहित्य समाज का दर्पण होने केसाथ-साथ पथप्रदर्शक भी होता है।
नरेंद्र मोदी ने देश में साहित्य सम्मेलन और साहित्य से जुड़ी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर टिप्पणी की। उन्होंने आशा व्‍यक्‍त कीकि अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल गोविंद रानाडे, हरिनारायण आप्टे, आचार्य अत्रे और वीर सावरकर जैसी महान विभूतियों के आदर्शों को आगे बढ़ाएगा। प्रधानमंत्री ने कहाकि 2027 में साहित्य सम्मेलन की इस परंपरा को 150 वर्ष पूरे होंगे और तब यह 100वां सम्मेलन होगा। उन्होंने इस अवसर को विशेष बनाने और अभी से इसकी तैयारी करने का आग्रह किया। सोशल मीडिया के जरिए मराठी साहित्य की सेवा करने वाले कई युवाओं के प्रयासों को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री ने उन्‍हें मंच प्रदान करने और उनकी प्रतिभाओं को पहचान दिलाने केलिए प्रोत्साहित किया। प्रधानमंत्री ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और भाषिणी जैसी पहल के माध्यम से मराठी सीखने को बढ़ावा देनेके महत्व पर जोर दिया। उन्होंने युवाओं केबीच मराठी भाषा और साहित्य से संबंधित प्रतियोगिताएं आयोजित करने का सुझाव दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि ये प्रयास और मराठी साहित्य की प्रेरणाएं विकसित भारत केलिए 140 करोड़ देशवासियों को प्रेरित करेंगी। उन्होंने महादेव गोविंद रानाडे, हरिनारायण आप्टे, माधव श्रीहरि अणे और शिवराम परांजपे जैसे महान लोगों की परंपराओं को जारी रखने का आग्रह किया। कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, सम्मेलन की अध्यक्ष डॉ तारा भवालकर आदि उपस्थित थे।

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