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Saturday 1 March 2025 02:18:22 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जहान-ए-खुसरो’ सुंदर नर्सरी दिल्ली में 25वें सूफी संगीत महोत्सव में प्रेम और भक्ति रस से सराबोर कलाकारों की भव्य प्रस्तुतियां देखीं। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर सूफी संत हजरत अमीर खुसरो की विरासत का उल्लेख करते हुए कहाकि जहान-ए-खुसरो में एक अलग ख़ुशबू है, ये ख़ुशबू हिंदुस्तान की मिट्टी की है, जिसकी तुलना हज़रत अमीर खुसरो ने जन्नत से की थी और यह कहकर कि ‘हमारा हिंदुस्तान जन्नत का वो बगीचा है, जहां तहज़ीब का हर रंग फला-फूला है, यहां की मिट्टी के मिजाज मेंही कुछ खास है।’ प्रधानमंत्री ने कहाकि शायद इसीलिए जब सूफी परंपरा हिंदुस्तान आई तो उसे भी लगा कि जैसे वो अपनी ही जमीन से जुड़ गई हो। नरेंद्र मोदी ने कहाकि यहां बाबा फरीद की रूहानी बातों ने दिलों को सुकून दिया, हज़रत निजामुद्दीन की महफिलों ने मोहब्बत के दीये जलाए। उन्होंने कहाकि भारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई, सूफी संतों ने खुदको महज मस्जिदों या खानकाहों तक सीमित नहीं रखा, उन्होंने पवित्र कुरान के हर्फ पढ़े तो वेदों के स्वर भी सुने, उन्होंने अजान की सदा में भक्ति के गीतों की मिठास जोड़ी, इसलिए उपनिषद जिसे संस्कृत में एकं सत् विप्रा बहुधा वदंति कहते थे, हजरत निजामुद्दीन औलिया ने वही बात हर कौम रास्त राहे, दीने व किब्ला गाहे जैसे सूफी गीत गाकर कही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी व्यक्त कीकि सूफी संगीत महोत्सव जहान-ए-खुसरो उसी परंपरा की एक आधुनिक पहचान बन गया है। प्रधानमंत्री ने कहाकि हजरत अमीर खुसरो भी वसंत मौसम के दीवाने थे, उनको ‘तूती-ए हिंद’ कहा जाता है, देश की तारीफ़ और प्रेम में उन्होंने जो गीत गाये हैं, हिंदुस्तान की महानता और मनमोहकता का जो वर्णन किया है, वो उनकी किताब नुह-सिप्हर में देखने को मिलता है। उन्होंने संस्कृत को दुनिया की सबसे बेहतरीन भाषा बताया, वो भारत के मनीषियों को बड़े-बड़े विद्वानों से भी बड़ा मानते हैं। प्रधानमंत्री ने बतायाकि भारत में शून्य, गणित, विज्ञान और दर्शन का ज्ञान कैसे बाकी दुनिया तक पहुंचा, कैसे भारत का गणित अरब पहुंचकर वहांपर जाकर हिंदसा के नाम से जाना गया, हजरत अमीर खुसरो न केवल अपनी किताबों में उसका ज़िक्र करते हैं, बल्कि उसपर गर्व भी करते हैं। नरेंद्र मोदी ने देश की प्राचीन कला-संस्कृति केलिए जहान-ए-खुसरो जैसे आयोजनों की प्रासंगिकता पर कहाकि ये महत्व और सुकून प्रदान करते हैं। उन्होंने कहाकि इस आयोजन के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं और इसे उन्होंने एक बड़ी उपलब्धि के रूपमें निरूपित किया। प्रधानमंत्री ने रमज़ान के मुबारक महीने की शुभकामनाएं दीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ कर्ण सिंह, मुजफ्फर अली, मीरा अली जैसे सहयोगियों को जहान-ए-खुसरो आयोजन केलिए बधाई दी। प्रधानमंत्री ने रूमी फाउंडेशन और जहान-ए-खुसरो से जुड़े लोगों को भविष्य में भी इसको जारी रखने की शुभकामनाएं दीं। नरेंद्र मोदी ने प्रिंस करीम आगा खान के योगदानों को भी याद किया, जिनका सुंदर नर्सरी, जिसे पहले अज़ीम बाग या बाग-ए-अज़ीम कहा जाता था, को समृद्ध करने का प्रयास लाखों कलाप्रेमियों केलिए आज एक वरदान है। यह सूफी संगीत महोत्सव भी सुंदर नर्सरी नई दिल्ली में भव्य रूपसे आयोजित हुआ। प्रधानमंत्री ने गुजरात की सूफी परंपरा में सरखेज रोजा की भूमिका के बारेमें बात की। उन्होंने उस समय को याद किया, जब सरखेज रोजा में भव्य कृष्ण उत्सव समारोह का आयोजन किया जाता था और मैं सरखेज रोजा में वार्षिक सूफी संगीत समारोह में नियमित रूपसे भाग लेता था, इसमें अच्छी संख्या में लोग शामिल होते थे। उन्होंने कहाकि आजभी वातावरण में कृष्ण भक्ति का रस मौजूद है और सूफी संगीत एक ऐसी साझी विरासत है, जो जीवन के सभी क्षेत्रसे जुड़े लोगों को एकजुट करता है, नज़र-ए-कृष्णा की प्रस्तुति ने भी इसी साझी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में सूफी परंपरा की विशिष्ट पहचान का उल्लेख किया, जहां सूफी संतों ने कुरान की शिक्षाओं को वैदिक सिद्धांतों और भक्ति संगीत केसाथ मिश्रित किया। नरेंद्र मोदी ने सूफी गीतों के माध्यम से विविधता में एकता को व्यक्त करने केलिए हजरत निज़ामुद्दीन औलिया की प्रशंसा की। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित कियाकि किसीभी देश की सभ्यता एवं संस्कृति को स्वर उसके संगीत और गीतों से मिलते हैं। उन्होंने कहाकि जब सूफी और शास्त्रीय संगीत परंपराओं का मिलन हुआ तो प्रेम और भक्ति की जैसी अभिव्यक्तियों का जन्म हुआ, जो हजरत अमीर खुसरो की कव्वालियों, बाबा फरीद के छंदों, बुल्ला शाह, मीर, कबीर, रहीम और रस खान की कविताओं में स्पष्ट है, इन सूफी संतों और मनीषियों ने भक्ति को एक नया आयाम दिया। नरेंद्र मोदी ने कहाकि आप चाहे सूरदास, रहीम, रस खान को पढ़ें या हजरत खुसरो को सुनें, ये सभी अभिव्यक्तियां उसी आध्यात्मिक प्रेम की ओर ले जाती हैं, जहां इंसानी बंदिशें टूट जाती हैं और इंसान भगवान का मिलन महसूस होता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि रस खान मुस्लिम होने के बावजूद भगवान श्रीकृष्ण के एक समर्पित अनुयायी थे, जो प्रेम और भक्ति की सार्वभौमिक प्रकृति को दर्शाता है जैसाकि उनकी कविता में व्यक्त किया गया है और इस कार्यक्रम में भव्य प्रस्तुतियों ने भी आध्यात्मिक प्रेम की इसी गहरी भावनाओं को दर्शाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि सूफी परंपरा ने न केवल इंसानों की रूहानी दूरियों को कम किया है, बल्कि विभिन्न राष्ट्रों में नजदीकियां बढ़ाईं हैं। उन्होंने 2015 में अपनी अफगान यात्रा को याद किया, जिसमें उन्होंने वहां की संसद में रूमी के बारेमें भावनात्मक रूपसे बात की थी, जिनका जन्म आठ शताब्दी पहले अफगानिस्तान के बल्ख में हुआ था। नरेंद्र मोदी ने रूमी के उस विचार को साझा किया, जो भौगोलिक सीमाओं से परे हैकि ‘मैं न तो पूरब का हूं और न ही पश्चिम का, न मैं समुद्र या जमीन से निकला हूं, मेरी कोई जगह नहीं है, मैं हर जगह हूं।’ प्रधानमंत्री ने इस दर्शन को भारत की प्राचीन मान्यता वसुधैव कुटुंबकम से जोड़ा। नरेंद्र मोदी ने ईरान में भी एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर पढ़ना याद किया, जो भारत के सार्वभौमिक और समावेशी मूल्यों को दर्शाता है। उन्होंने जहान-ए-खुसरो उत्सव की सराहना की। गौरतलब हैकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की विविध कला और संस्कृति एवं सभ्यता को बढ़ावा देने के प्रबल समर्थक हैं, इसीके अनुरूप उन्होंने जहान-ए-खुसरो उत्सव में भाग लिया। इस उत्सव में अमीर खुसरो को याद करने दुनियाभर से कलाकार आते हैं।