Friday 21 March 2025 05:17:35 PM
दिनेश शर्मा
चंडीगढ़। भूसे के ढेर में फौलाद का भगवंत सिंह मान! जीहां पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने अपने किसीभी राजनीतिक नुकसान की चिंता किए बिना अपने को राजनीतिक इच्छाशक्ति और हिम्मतवाला मुख्यमंत्री सिद्ध कर दिया है। आखिर देर से ही सही, लेकिन उन्होंने वह फैसला कर डाला, जिसे भाजपा तो चाहती थी, लेकिन कांग्रेस और अकाली दल, आम आदमी पार्टी सहित देश के अनेक राजनीतिक दल उसपर घनघोर राजनीति करते आ रहे थे, यानी पंजाब हरियाणा की अर्थव्यवस्था, व्यवसायियों और उद्योग की लाइफलाइन पंजाब और हरियाणा के शंभू एवं खनौरी बॉर्डर को किसान आंदोलन के नाम पर कम से कम डेढ़ साल से बंधक बनाए बैठे कथित किसानों के भगवंत सिंह मान ने एक झटके में महलनुमा तंबू तोड़ डाले हैं। आखिर कुछ तो हुआ, जो एक समय से आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार और पंजाब सरकार इन्हें पूरा संरक्षण दिए हुए थी, आज उन तथाकथित किसानों पर टूट पड़ी जिसे देश ने बड़ी हैरत से देखा है और जिसकी बेचैनी इस आंदोलन के कनाडा अमेरिका ब्रिटेन चीन पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं और फाइनेंसरों में भी देखी जा रही है।
भगवंत सिंह मान के इस कदम से भले ही भाजपा, अकाली दल और कांग्रेस को राजनीतिक रोटियां सेकने का कुछ मौका मिल गया हो, किंतु भगवंत सिंह मान ने पंजाब के दिल में अपनी जगह बना ली है और जो लोग यह कह रहे हैं कि भगवंत सिंह मान को इसका राजनीतिक नुकसान होगा, वह स्वयं बड़ी भारी गलतफहमी में हैं, क्योंकि नुकसान तो उनका शुरू हो गया है, जो इस कथित किसान आंदोलन की आड़ में शंभू एवं खनौरी बॉर्डर पर अराजकता मचाए हुए थे। गौरतलब हैकि पंजाब देश का ऐसा राज्य है, जिसका हर दृष्टि से बहुत महत्व है और जिसे कांग्रेस और अकाली दल लंबे समय से अपनी उंगलियों पर नचाते आए हैं। वास्तव में लंबे समय से पंजाब क्वालिटी लीडरशिप के लिए खून के आंसू रोता आ रहा है, जो भगवंत सिंह मान के रूपमें आज प्रकट हुई है। यह वही भगवंत सिंह मान हैं, जो शराब पीकर संसद में जाने, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की उंगलियों पर नाचने और अजीब व्यवहार के कारण सदैव आलोचनाओं के शिकार होते आए हैं, मगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार जाने केबाद से उनमें परिवर्तन देखा जा रहा है, जिसका पहला असर इन कथित किसान आंदोलन की रीढ़ तोड़ने के रूपमें सामने आया है।
पंजाब वीरों, ज़िंदादिलों और सदैव से राष्ट्रभक्तों का राज्य माना जाता है। इस राज्य ने देश पर बड़े-बड़े बलिदान दिए हैं, इसका इतिहास वीरता और खाद्यान की समृद्धि से भरा है। ‘यह देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का’ का ओजस्वी गीत इसी पंजाब पर फिल्माया गया। सवा लाख से एक लड़ाऊं महान सिख गुरू श्रीगुरू गोविंद सिंह ने यूं ही नहीं कहा था। एक लंबे अरसे बाद अचानक एक फैसले से देश को पता चल गयाकि पंजाब को भूसे के ढेर में फौलाद का भगवंत सिंह मान लीडर मिल गया है, जिसके अंदर एक हिम्मतवाला मुख्यमंत्री है। यह कोई आसान फैसला नहीं था। इस आंदोलन का सीधे गिरेबान पकड़ने में भाजपा कांग्रेस और अकाली दल की भी पिंडलियां कांपती रही हैं। मजे की बात यह हैकि आम आदमी पार्टी सरकार का इस आंदोलन को पूरा समर्थन था। यही राजनीति है, जिसमें एक लीडर को कभी भीगी बिल्ली रहकर अपना उद्देश्य सफल करने की कला और कभी एक शेर की मानिंद अपनी दहाड़ से झुंडों को खदेड़ने की ताकत दिखानी होती है, जिससे उसे लीडर कहा जाता है। भगवंत सिंह मान ने दोनों कलाओं का प्रदर्शन किया और अब उसी किसान आंदोलन को एक झटके में खदेड़ दिया है, दोनों बॉर्डर पर मजबूत सीमेंटेड तंबू उखाड़ दिए। यह वही आंदोलन है, जिसके सामने केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी किसानों की नाराजगी के भय से उससे निपटने केलिए डरी सहमी थी और बीच के रास्ते खोजती रही है और जिसके सामने पंजाब की अकाली राजनीति एवं कांग्रेस भी निपट गई।
भगवंत सिंह मान अचानक अपने बदले हुए राजनीतिक तेवरों और रणनीतियों में कुछ खास हो गए हैं। हाल के दिनों में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकातें भी चर्चा में हैं। भगवंत सिंह मान यह समझ चुके हैंकि बदले हुए राजनीतिक परिवेश में आम आदमी पार्टी के स्टाइल में चलना बहुत मुश्किल है, उन्हें अगर पंजाब की राजनीति और सत्ता में बने रहना है तो केंद्र सरकार से टकराव करके नहीं चला जा सकता। पंजाब सरकार भयानक रूपसे धन के अभाव का सामना कर रही है और उन्होंने पंजाब की जनता से जो वादे किए हुए हैं, उन्हें पूरा करना लगभग असंभव हो गया है। उन्हें राजनीति से ज्यादा केंद्र सरकार के सहयोग की आवश्यकता है और पंजाब व हरियाणा के शंभू एवं खनौरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन के नाम पर केंद्र से जो टकराव चला आ रहा है, उसे खत्म किए बिना कुछभी संभव नहीं है, वैसे भी ये रास्ते बंद चलने से पंजाब के उद्यमी भगवंत सिंह मान सरकार से नाराज हैं, क्योंकि यह दोनों बॉर्डर पंजाब की लाइफलाइन भी हैं। भगवंत सिंह मान इस किसान आंदोलन को उनकी सरकार के समर्थन के कारण चारों तरफ निशाने पर हैं। उनको कनाडा आदि से जो समर्थन मिल रहा था, उससे भी वह बैकफुट पर हैं, इसलिए उन्होंने हिम्मत दिखाकर सबसे पहले इस किसान आंदोलन को लक्ष्य किया है, जिसके अंतर्गत रातोंरात इन तथाकथित किसानों के बलपूर्वक तंबू ध्वस्त कर दिए गए हैं। जाहिर हैकि यह भगवंत सिंह मान का बड़ा फैसला है, जिसका समर्थन और स्वागत किया जा रहा है और यह केंद्र सरकार से संबंध ठीक करने का एक बड़ा कदम माना जाता है। यही कारण हैकि राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में भगवंत सिंह मान रातोंरात एक हिम्मतवाले मुख्यमंत्री हो गए, अब देखना हैकि इसके आगे वह और क्या बड़े कदम उठाते हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों के कल्याण केलिए जितने बड़े कदम उठाए हैं, उनकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती, यह तथ्य मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और पंजाब में उनकी पार्टी के नेता भी भलीभांति समझते हैं। मोदी सरकार ने पंजाब से लेकर देशभर के किसानों को बड़ी-बड़ी सहुलियतें दी हैं और दे रही है, यह पूरा देश जानता है और इस कारण से मोदी सरकार को आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। देश ने इस आंदोलन को कभी किसानों का आंदोलन नहीं माना, बल्कि यह मोदी सरकार को किसानों की समस्याओं के नाम पर ब्लैकमेल करने का और दबाव में लेने का कुत्सित प्रयास माना गया है। लालकिले की प्राचीर पर कब्जा करना आखिर किस आंदोलन की श्रेणी में माना जाता है, इसे हर कोई जानता है। पंजाब में एक पुल पर प्रधानमंत्री नरेंद मोदी को साजिशन घेरना कौन सा किसानों की समस्या से जुड़ा मामला है? भाजपा के खिलाफ पंजाब, हरियाणा, हिमाचल महाराष्ट्र चुनाव में आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, अकाली दल आदि के एजेंडों में इस किसान आंदोलन को पूरी हवा दी गई, विदेशी विघटनकारी ताकतों की भी इसमें पूरी दिलचस्पी पाई गई। इस कथित आंदोलन में किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के मोदी और भाजपा के खिलाफ मनसूबे किसने नहीं देखे? कहने का आशय यह हैकि भगवंत सिंह मान से किसानों के नाम पर इस आंदोलन का पर्दाफाश हो गया है। आखिर सच्चाई एक समय बाद सर चढ़कर बोलती है।