आदर्श पाल सिंह
चंडीगढ़। कबड्डी! कबड्डी! कबड्डी! से पंजाबके अकाली छत्रपएवंमुख्यमंत्री प्रकाश सिंहबादल के पुत्रऔर उपमुख्यमंत्री सुखबीरसिंह बादल,पंजाब में युवा राजनीति केविजेता हो गए। पितासे प्राप्त राजनीतिक कला-कौशल का पहलाऔर बड़ा प्रयोगउन्होंने पंजाब कीयुवा राजनीति परकिया, जिसमेंउनका दांव नकेवल हिट गयाबल्कि देश केदूसरे प्रांतों औरसात समंदर पार सिख राजनीतिमें पसीना बहानेवालों को अपनी कबड्डी कीताकत भी समझा दी। यकीनन, खेल और राजनीतिके खेल मेंसुखबीर सिंह बादलने पंजाब कीयुवा राजनीति पर सफलतापूर्वक हाथ साफकिया। उन्होंने कबड्डी कोकब्र से निकालकरजिंदा करने एवंउसे रातों-रात धन औरयुवाओं के खेल कॅरियर सेजोड़ने का खिताबअपने नाम करलिया। सुखबीरसिंह बादल पंजाबके खेल मंत्रीभी हैं।
कबड्डी, पंजाब का परंपरागत और लोकप्रिय खेल रहा है, जिसे पंजाबी मेंमॉ खेडके नाम सेपुकारा जाता है।पंजाब में इसकी लोकप्रियता का अंदाजाइसी बात सेलगाया जा सकताहै कि यहांबहुत से गांवोंकी कबड्डी केजांबाज़ खिलाड़ी केनाम से पहचानहै। कबड्डीके मुकाबलेजीतकर कभी एकबनियान और पीतलकी एक ट्रॉफीसे ही खुशीमें उछलने वालेकबड्डीबाजों ने कभीनहीं सोचा होगाकि पंजाब में एक दिनऐसा भी आएगा जब कबड्डीपर भी धन और सरकारीनौकरियों कीबारिश होगी औरइसकी धूम, धमक और महक पूरे देशमें खेल जगतमें एक हलचलपैदा कर देगी। कबड्डी केविश्वकप की परिकल्पना सुखवीर सिंहबादल के दिमागमें खूब आई, जबकिपंजाब में औरभी राजनीतिक दलोंमें शक्तिशालीराजनेता हैं,जो किसी भीतरह से वोट ढूंढते फिरतेहैं, तेजराजनीतिक दिमाग़ भी रखते हैंऔर जो सुखबीरसिंह बादल केआइडिया को अपनीराजनीतिक ताकतबना सकते थे, मगर यह बाज़ी तो जूनियर बादल के ही हाथलगी।
सुखवीर सिंह बादल भी नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे अपने को युवाशक्ति से जोड़ने की जोरदार मुहिम पर हैं। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सभी कबड्डी मैचों में देर तक मौजूदगी और पुरस्कार वितरण करना, यह अहसास दिलाने के लिए काफी है कि कबड्डी का विश्वकप, बादल घराने के लिए कस्तूरी जैसा महत्व रखता है। उन्होंने देखा कि कबड्डी का सम्मोहन किस तरह युवाओं को दूर से खींच रहा है। पंजाब में चरमपंथियों पर विजय हासिल करने के लिए वहां के तत्कालीन डीजीपी केपीएस गिल ने भी ऐसा ही अभिनव प्रयोग किया था। उन्होंने समाज की मुख्यधारा से गुमराह और उकसाए युवाओं की पीठ पर हाथ रखा, उन्हें कहीं खेलों में तो कहीं नौकरियों में और कहीं दूसरे रोजगार से लगाया और आतंकवाद की कमर तोड़ दी। उन्होंने खाली दिमाग और भटकते युवाओं में उनके सुनहरे भविष्य के लिए एक आस जगा दी और यह रणनीति सफल हुई। सुखबीर सिंह बादल ने भी लगभग ऐसा ही किया, जिससे दूसरे राजनीतिक दल केवल कबड्डी देख रहे हैं और कबड्डी, बादल के हाथों में है।
एक नवंबर से बीस नवंबर2011 तक पंजाबसरकार के खेल-विभाग कीसरपरस्ती में अभूतपूर्वसफलता के साथआयोजित हुए कबड्डी के इस महामुकाबले मेंप्रसिद्घ द्वितीय पर्लज़विश्वकप कबड्डी-2011 के सभी20 दिन,युवाओं और कबड्डी प्रेमियों के रोमांच सेभरे क्षणोंसे भरपूर रहे। क्या नहींदेखने को मिला? यहां रोमांच, ऐक्शन, ड्रामा, इमोशन, ट्रैजेडी, उत्साह आदि सभीकुछ तो था, और इससबके पीछे थीवह कबड्डी, जो सुखबीर सिंह बादलमें लाखों युवाओंके विश्वास औरराजनीतिक सफलता काजोश भर रहीथी। कबड्डीविश्वकप के पूरे बीस दिनऔर देर राततक पिताश्रीऔर मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल कीइस महाआयोजन मेंलगातार मौजूदगी एहसासकरा रही थीकि दोनो बाप-बेटों नेपंजाब में कबड्डी को कस्तूरी बना दियाहै। बहरहाल, सोलह देशोंकी पुरूष और4 देशों कीमहिला टीमों नेपंजाब के 16शहरों में 150करोड़ से भीअधिक की लागतसे निर्मित स्पोर्ट्सस्टेडियमों में अपनीशक्ति एवं दक्षताका आकर्षक प्रदर्शनकिया। लाखोंदर्शकों ने दिलथामकर अपनी मिट्टीपर ताकत सेभरे दांव-पेंच देखे। क्रिकेट के बुख़ारसे ग्रस्त भारतमें कबड्डी जैसीग्रामीण खेल कीप्रतियोगिता का विश्वस्तर पर सफल आयोजन अपनेदेश में होपाना, एकबहुत बड़ी उपलब्धितो मानीही जानीचाहिए।
कबड्डी मुकाबलोंपर एक नज़र-पुरूष वर्गमें पिछले वर्षहुए प्रथम पर्लज़विश्व कप कबड्डीके विजेता एवंमेजबान भारत केसाथ पाकिस्तान (पिछले वर्ष केउपविजेता) नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, कनाडा, इंग्लैण्ड, जर्मनी, अर्जंटीना, इटली, नार्वे औरस्पेन की कुलचौदह एवंपहली बार होरही महिला वर्गकी कबड्डी मेंभारत, इंग्लैण्ड, का उत्साहबढ़ाने के लिए इन्हीं देशोंके संबंधित मंत्रीऔर अधिकारीगण भीउपस्थित थे, जिनमें से अधिकांशतःभारतीय मूल केहैं। जहां एकओर बठिंडा मेंआयोजित विश्वस्तरीय भव्यउद्घाटन समारोह मेंभारतीय फिल्म अभिनेता शाहरूख खान, सुखविंदर, ग्रेट खली, योग गुरू बाबारामदेव और पंजाबके राष्ट्रीय एवंअंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक खिलाड़ी उपस्थित रहे, वहीं समापनसमारोह में बॉलीवुडअभिनेता अक्षय कुमारएवं कई अन्यअंतर्राष्ट्रीय स्तर केअप्रवासी भारतीय गायकों, कलाकारों नेअविस्मरणीय रंगारंग कार्यक्रमप्रस्तुत कर कबड्डीविश्वकप में चारचांद लगा दिए। इस टूर्नामेंटमें बाबारामदेव की एकदिवसीय उपस्थिति औरखिलाड़ियों के साथमैदान में कबड्डीखेलना भीकाफी रोमांच औरउत्सुकता काविषय बना।
कबड्डी मेंएकतरफा रोमांचक मुकाबलेदेखने को मिलेऔर कई मैचोंमें ऐसी कांटेकी टक्कर देखनेको मिली किदर्शक देखते हीरह गए। छह-छह फीटकद के औरसौ-सवा सौ किलोग्राम से भीअधिक वजन केबलिष्ठ नौजवान खिलाड़ीजब भिड़ते तोयूं लगता कि जैसे कालाहारीके जंगली मैदानों में सिंहों में अपनीसत्ता बचाने केलिए शक्ति-प्रदर्शन हो रहाहो। विश्वकप में इंग्लैण्ड कीटीम में दोसगे भाइयों नेमिलकर समांबांधा तो भारतऔर ऑस्ट्रेलिया केमैच में भी दो सगे भाइयों नेप्रतिद्वंद्वी की हैसियतसे एकदूसरे पर ज़ोरआज़माया। प्रतियोगिता के दौरान कई घटनाएंभी घटित होतीरहीं। एक बारको तो प्रतियोगिता की आयोजन समिति असमंजस में पड़गई जब ऑस्ट्रेलिया से अपनेदेश का प्रतिनिधित्व करने एकनहीं बल्कि दोटीमें आ खड़ीहईं। हालांकि प्रबंधकोंने अपनी सूझबूझका परिचय देतेहुए इन दोनोंटीमों से श्रेष्ठखिलाड़ियों को चुनकरएक संयुक्त एवंबेहतर मज़बूत टीमतैयार करा दी, किंतु यहभी हुआ कि यही टीमआगे चलकर टूर्नामेंटसे बाहर होनेवाली पहली टीमबनी।
महिला वर्गके मुकाबले भीकम रोचक नहींरहे। अमरीकाकी कबड्डी टीम की सभीमहिला खिलाड़ी जो यूंतो विदेशी मूलकी ही हैं, किंतु उनसभी ने वर्षों पूर्व हीसिख धर्म औरसिखी स्वरूप अपनालिया था। इसवजह से औरअपने बढ़िया खेलप्रदर्शन से भी उन्होंने सबकामन जीता, किंतु उन्हें तीसरेस्थान से हीसंतुष्ट होना पड़ा। भारत कीमहिला टीम कोइस दौरान त्रासदीसे भी गुज़रनापड़ा जब उनकीबस एक भारतीयसेना के ट्रकसे दुर्घटनाग्रस्त होगई। इस दुर्घटनामें बस ड्राइवरसमेत तीन लोगों की मत्युहो गई। गनीमतरही कि भारतीय महिला टीमकी किसी भीसदस्य को बहुतगंभीर चोट नहींआई और इससदमें को झेलते हुए उन्होंने अपनी अविजितयात्रा बरकरार रखी और कबड्डीविश्वकप का फाइनल जीता।भारत को पहलीविश्वकप महिला कबड्डीविजेता बनने कागौरव भी प्राप्त हुआ है।फाइनल में उसनेइंग्लैण्ड की जिसमजबूत टीम कोअच्छे अंतर सेमात दी उसकीसभी सदस्य अपनेयूरोपीय मूल औरबलिष्ठ कद-काठी की वजहसे तो चर्चामें रही हीं, साथ मेंइस वजह सेभी उनकी चर्चाहो रही थी किउनमें से आठअंग्रेज़ी फौज मेंऔर एक पुलिसमें अधिकारी है।
कबड्डी केमहामुकाबले में कुछ औरभी कामऐसे हुए कि जिनके परिणामखेलों में ड्रग्सके इस्तेमाल कीख़तरनाक बुराई कोहतोत्साहित करने मेंबड़े कारगरसिद्घ हो सकेंगे।पंजाब सरकार नेइस महामुकाबलेमें भाग लेनेवाले पुरूष औरमहिला खिलाड़ियों कोड्रग्स के लांछनसे बचाने लिए करीबदो सौ अठ्ठारह खिलाड़ियों काडोप परीक्षण कराया, जिनमें बावनखिलाड़ियों को, डोप-परीक्षणमें फेल पाए जाने परप्रतियोगिता से बाहर का रास्तादिखा दिया गया। खुशी कीबात रही किमुकाबले में शामिलहोने आई किसी भी लड़की में ड्रग्सलेना नहींपाया गया। अमरीका पुरूषों की कबड्डी टीमने डोप परीक्षणकराने से इंकारकर दिया था, इसलिए उसेइस विश्वकप मेंनहीं लिया गया।हालांकि कबड्डी काखेल ओलंपिक मेंनहीं आता हैफिर भी खिलाड़ियोंको डोप टेस्टजैसे परीक्षण सेगुजारा गया जिसकायुवाओं में बेहतरीनसंदेश गया औरसदा के लिएयह ताकीद होगई कि कोईभी खिलाड़ी बड़ीईनामी राशि केलालच में ड्रग्स लेकर किसीखेल प्रतियोगिता मेंउतरने की हिम्मतनहीं कर पाएगा। युवाओं मेंघातक नशाउन्मूलन के लिएभी इसे एकप्रयोग की संज्ञादी जा सकतीहै।
लुधियाना मेंहुए फाइनल मुकाबलोंमें भारतीय पुरूषटीम ने कनाडाको हराकर ईनाममें 2 करोड़रूपए की विशाल धनराशि केसाथ सरकारी नौकरियांभी पाईं। भारतके सर्वश्रेष्ठ 'रेडर' गगन दीपसिंह 'गग्गी' और सर्वश्रेष्ठ 'स्टॉपर' मंगत राम 'मंगी' कोएक-एक ट्रैक्टर दियागया। मंगत राम'मंगी'को तो लगातार दूसरी बारट्रैक्टर ईनाम में मिला है।विश्वकप की उपविजेता रही कनाडाकी टीम केहिस्से में एक करोड़ रूपएका चेक आया।तीसरे स्थान पररहे पाकिस्तान कोइक्यावन लाख रूपए मिले। इसी प्रकार भारतीय महिला टीम नेइस विश्वकप कोजीतकर 25 लाखरूपए और सरकारीनौकरियां पाई हैं।इस मैच मेंहारने वाली इंग्लैण्डको 15 लाखरूपए और तीसरेनंबर पर आईअमेरिकी महिला टीम को 10लाख रूपए दिएगए हैं। कबड्डी पर धनबरसता देख अनेक लोग यहभी कहतेपाए गए कीयहां भी महिला-पुरूषों मेंभेद-भावकिया गया है, क्योंकिउनकी पुरस्कार राशि, पुरूषों सेकम रखी गईहै। सुखबीर सिंह बादल पंजाब के खेलमंत्री भी हैंजिन्होंने खेलबजट को दुगुनाकरने का ऐलानकिया। पिछलेसाल 2010 मेंपंजाब में यहअंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता शुरू कीगई थी, जिसमें सात, आठ टीमें ही आई थीं, मगर इसबार अठ्ठारह टीमोंने भाग लिया, जिनमें महिलाओं की चार टीमें थीं।
किसी नेनहीं सोचा होगाकि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हिंदुस्तान की मिट्टीसे पैदा हुई कबड्डी, युवाओं की तकदीर बदल देगी और क्रिकेट के पीछे अंधों की आंखे खोल देगी। सुखबीर सिंह बादल ने कबड्डी को न केवल लोकप्रिय खेलों की श्रेणी में खड़ाकर दिया है, अपितु इसे आजीविका से भी जोड़दिया है जिससे खिलाड़ियों में रातों-रात यह महत्वाकांक्षा पैदा हो गई है किवे क्रिकेट की तरह कबड्डी में भी जोर आज़माए जिसमें परंपरागत खेलों को तो प्रोत्साहन मिलेगा ही साथ ही धन एवं रोज़गार मिलेगा और भारत के अन्य खेल और खिलाड़ी कुंठाओं से मुक्ति भी पाएंगे। यूं तोखेल, खेल ही होता है जिसमें खेल ही देखना ज्यादा मुनासिब होगा, लेकिन जूनियर बादल ने ऐसी कबड्डी खेली है जिसमें वे खुद भी युवाओं के बीच एक विजेता के रूप में देखे जा रहे हैं। उन्होंने पंजाब में यहविश्वकप जिस अंदाज में पेश किया है उससे उनको बड़ा राजनीतिकलाभ मिलने से इंकार नहींकिया जा सकता। पंजाब मेंकबड्डी पर जबसे धन बरसा है, तब सेयहां कबड्डी! कबड्डी! कबड्डी! हो रही है।