डॉ एचआर केशवमूर्ति
Tuesday 30 July 2013 11:27:31 AM
कोलकाता। स्थानिक क्षेत्रों में जाने वाले एशियाई लोगों के लिए पीत ज्वर निरोधक टीकाकरण अनिवार्य हो गया है। पीत ज्वर को पीला जैक के रूप में भी जाना जाता है। यह एक तीव्र वायरल रक्तस्रावी रोग है, जो कि आरएनए वायरस के कारण होता है और खोजा गया पहला मानव वायरस है। पीत ज्वर का वायरस मादा मच्छर (एडिस एजिप्टी और अन्य प्रजातियां) के काटने से फैलता है और दक्षिण अमेरिका एवं अफ्रीका उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय में पाया जाता है। हालांकि एशिया, प्रशांत क्षेत्र तथा मध्यपूर्वी देशों में भी मुख्य वेक्टर एडिस एजिप्टी होता है, परंतु पीत ज्वर इन क्षेत्रों में नहीं होता, जिसका कारण अज्ञात है।
पीत ज्वर आमतौर पर कई दिनों तक रहता है, जिसमें कि बुखार, ठंड लगना, एनोरेक्सिया, मतली, मांसपेशियों में दर्द (पीठ में तेज दर्द के साथ) तथा सिर दर्द होता है। कुछ रोगियों में विषाक्त चरण होता है, जिससे पीलिया के साथ-साथ यकृत क्षति हो सकती है। मुंह, आँख और जठरांत्र संबंधी मार्ग से खून बहने के कारण खून की उलटी हो सकती है, अत: पीत ज्वर का स्पैनिश नाम वोमिटो निगरो (काली उलटी) है। लगभग 90 प्रतिशत मामलों में विषाक्त चरण घातक होता है। अधिक खून बहने की प्रवृत्ति के कारण पीत ज्वर रक्तस्रावी बुखार समूह के अंतर्गत आता है। संक्रमण के बाद जीवित रहने पर आजीवन प्रतिरक्षा हो जाती है और सामान्य रूप से कोई स्थाई अंग क्षति नहीं होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान से प्रत्येक वर्ष जहां टीकाकरण न हुआ हो, पीत ज्वर से 2,00,000 बीमारियां तथा 30,000 मौत होती हैं, जिसमें लगभग 90 प्रतिशत संक्रमण अफ्रीका में होता है।
पीत ज्वर एक नैदानिक निदान है, जो कि अंडे सेन के दौरान अक्सर रोग ग्रस्त व्यक्ति के ठिकाने पर निर्भर करता है। बीमारी के हल्के स्तर की पुष्टि विषाणु विज्ञान से ही की जा सकती है, हालांकि पीत ज्वर के हल्के स्तर से क्षेत्रीय प्रकोप हो सकता है, इसलिए पीत ज्वर के प्रत्येक संदिग्ध मामले (जिसमें बुखार के दर्द के लक्षण, मतली और प्रभावित क्षेत्र को छोड़ने के बाद 6 से 10 दिन के लिए उल्टी शामिल है) का गंभीरता से इलाज किया जाना चाहिए। पीत ज्वर के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीका 20वीं सदी के मध्य के बाद से ही अस्तित्व में है और कुछ देशों के यात्रियों के लिए टीकाकरण की आवश्यकता होती है। प्रभावित क्षेत्रों में कोई इलाज नहीं होने के कारण टीकाकरण कार्यक्रम काफी महत्वपूर्ण है, साथ ही संचारण मच्छर के काटने से बचने तथा उनकी आबादी कम करने के उपायों की भी जरूरत है। सन् 1980 के दशक के बाद से पीत ज्वर के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है, जिससे ये बीमारी पुन: उभर रही है। यह संभवत: युद्ध तथा अफ्रीकी देशों में सामाजिक विघटन की वजह से हो रहा है।
पीत ज्वर की रोकथाम में टीकाकरण के साथ-साथ ऐसे क्षेत्रों में मच्छर के काटने से बचाव करना है, जहां पीत ज्वर से काफी लोग प्रभावित हों। पीत ज्वर की रोकथाम के संस्थागत उपायों में टीकाकरण कार्यक्रम और मच्छरों के नियंत्रण करने के उपाय शामिल हैं। घरों में मच्छरों से बचाव के लिए मॉस्किटो नेट वितरित करने संबंधी कार्यक्रमों के जरिए मलेरिया और पीत ज्वर के मामलों में कमी आ रही है। प्रभावित क्षेत्रों में यात्रा करने के लिए टीकाकरण की हिदायत दी जाती है, क्योंकि उसे इलाके में नहीं रहने वाले लोग अक्सर पीत ज्वर का शिकार हो जाते हैं। करीब 95 प्रतिशत लोगों में टीकाकरण के 10 दिन के बाद इसका असर शुरू होता है और कम से कम 10 वर्ष तक रहता है (81 प्रतिशत मरीज़ों में प्रतिरक्षा 30 साल के बाद तक भी रही) डब्ल्यूएचओ स्थानिक क्षेत्रों में लोगों को जन्म के 9वें और 12 महीने के बीच नित्य टीकाकरण की सिफारिश करता है। 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि पीत ज्वर रोग के खिलाफ आजीवन प्रतिरक्षा के लिए टीकाकरण की एक खुराक ही काफी होती है।
एशिया में कुछ देश पीत ज्वर महामारी (पीत ज्वर फैलाने की क्षमता वाले मच्छर और ग्रहणशील बंदर भी ) के खतरे में हैं, हालांकि यह रोग अभी वहां नहीं है। विषाणु को आने से रोकने के लिए कुछ देशों ने टीकाकरण की मांग की है। टीकाकरण के लिए टीकाकरण संबंधी प्रमाणपत्र होना चाहिए, जो टीकाकरण के 10 दिन बाद वैध हो और 10 साल तक चले। डब्ल्यूएचओ ने उन देशों की सूची प्रकाशित की है, जिन्हें पीत ज्वर के टीकाकरण की ज़रूरत है। टीकाकरण के अतिरिक्त पीत ज्वर के मच्छर एडिस एजिप्टी का नियंत्रण बेहद ज़रूरी है, क्योंकि यही मच्छर डेंगू बुखार और चिकनगुनिया रोग भी फैला सकता है। एडिस एजिप्टी मुख्य रूप से पानी में पैदा हाते हैं।
इलाज
पीत ज्वर के लिए कोई प्रेरणार्थक इलाज नहीं है। इसके लिए अस्पताल में दाखिल करना उचित है तथा कुछ मामलों के एकदम से बिगड़ने के कारण ज्यादा देखभाल भी आवश्यक हो सकती है। लक्ष्णात्मक इलाज में रिहाइड्रेशन और पेरासिटामोल जैसे दवाईयों के साथ दर्द से राहत दी जा सकती है। एस्पिरिन के स्कंदक रोधी प्रभाव के कारण यह नहीं दी जानी चाहिए जो कि अंदरूनी रक्तस्राव होने पर खतरनाक हो सकती है। अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में जहां टीकाकरण बहुत कम होता है, उनकी तुरंत पहचान करके महामारी रोकने के लिए टीकाकरण के जरिए इनका नियंत्रण जरूरी है। विशेषकर शुरूआती चरण में इसमें और अन्य बीमारियों में फर्क करना मुश्किल हो सकता है। इसकी पुष्टि केस हिस्ट्री, मरीज़ की विदेश यात्रा की जानकारी तथा सेरोलॉजी की जांच के जरिए की जा सकती है।