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Tuesday 13 August 2013 09:08:04 AM
नई दिल्ली। भारत सरकार कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट (गैर-लाभकारी संगठन), अर्बन एमिशन (वायु प्रदूषण पर अनुसंधान करने वाली फर्म) और ग्रीनपीस इंडिया की ओर से संयुक्त रूप से दिसंबर 2012 में 'कोल किल्स-ऐन असेसमेंट ऑफ डेथ एंड डिजीज कॉज्ड बाई इंडियाज़ डर्टीयस्ट एनर्जी सोर्स' शीर्षक से प्रकाशित की गई रिपोर्ट से अवगत है। इस रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि वर्ष 2011-12 में कोयले से चलने वाले भारतीय बिजली घरों से हुए उत्सर्जन की वजह से 80,000 से 1,15,000 लोगों की असमय मृत्यु हुई और वायु प्रदूषण की वजह से दो करोड़ से ज्यादा लोग दमे का शिकार हुए। इस अध्ययन में कोयले के उत्सर्जनों के कारण दिल का दौरा पड़ने, अस्पताल में दाखिल होने और कार्यालय जाने में असमर्थता जैसे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में बताया कि अध्ययन में अनुमान व्यक्त किया गया है कि स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इन प्रभावों के कारण हर साल 16,000 से 23,000 करोड़ रूपए खर्च होते हैं। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण ने विद्युत मंत्रालय को सूचित किया है कि उसने तापीय बिजली घरों के कामगारों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए एक स्थायी समिति का गठन किया है। समिति के सदस्यों में विभिन्न हितधारक शामिल हैं। स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर एक कार्यबल का गठन किया गया था, जिसने 6 अगस्त 2013 को रिपोर्ट सौंपी। इंसानों के स्वास्थ्य सहित पर्यावरण पर इस उत्सर्जन के प्रभाव पर विचार करते हुए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सूचित किया है कि तापीय बिजली घरों के उत्सर्जन को रोकने, घटाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
वायु और जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विकसित उत्सर्जन एवं उत्प्रवाही मानक। राख निकलना कम करने के लिए बिजली संयंत्रों को निर्देश दिया गया है कि वे ऐसे कोयले का इस्तेमाल करें, जिसमें राख 34 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होती। राख व्ययन करने से समस्याओं में कमी लाने के लिए फ्लाईऐश का इस्तेमाल 14 सितंबर 1999 से अनिवार्य बना दिया गया है। स्वच्छ कोयले प्रौद्योगिकी पर जोर दिया गया है, जबकि नये कोयला आधारित तापीय बिजली घरों को पर्यावरणीय मंजूरी दी गई है। तापीय बिजली घरों से वायु की गुणवत्ता और क्षेत्र की संवेदनशीलता के आधार पर जरूरत के मुताबिक एसओ-2 का उत्सर्जन नियंत्रित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियां लगाने को कहा गया है। राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक अधिसूचित किए गए हैं, जिन्हें उचित नियंत्रण उपाय लागू करके प्राप्त किया जा सकता है।