संवाददाता
लखनऊ। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक। जी हां! वही देशके विख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक जिन्हें नर्सरी में पढ़ने वालाबच्चा भी जानता है। समता मूलक समाज की पुरोधा और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावतीके गांधी और राम के बाद तिलक उनके तीसरे नए शिकार हैं। एक ही आदेश में मायावती ने बाल गंगाधर तिलक का नाम-ओ-निशान मटियामेट कर दियाऔर ब्रिटिश काल में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर पुलिस बर्बरता करने के एवज मेंयूपी पुलिस के पहले डीजी की कुर्सी का ईनाम पाए बीएन लहरी का नाम आबाद कर दिया। अंग्रेजोंसे आजादी मिलने के बाद जिन सड़कों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का, देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले जिन स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर नामकरणहुआ था, उनमें कई का नाम मिटाकर मायावती ने अपनी मर्जी से नामकरण शुरूकर दिया है। मायावती को इन महान सेनानियों और ऐतिहासिक नामों से क्यों चिढ़ हो गई हैयह तो वह ही जान सकती हैं, अलबत्ता देश के विख्यात स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलककी एक मार्ग से पहचान जाती रही है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हज़रतगंज केसमीप डालीबाग कालोनी है, जिसकी मुख्य सड़क चिडियाघर के पिछले गेट केसामने से होती हुई, राज्य के पुलिस महानिदेशक कार्यालय और आवास के सामने से होकर जियामऊके बाईपास से मिलती है, उस मार्ग का नाम अभी तक गजट में देश केविख्यात स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाम पर था। मगर कुछ ही दिन से डालीबागके निवासी इस सड़क पर बीएन लहरी मार्ग का बोर्ड लगादेखकर हतप्रभ हैं। सब एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि ये कैसे और कब से हो गया?किसने कर दिया? पता चला कि यह काम मायावती ने कियाहै। उन्होंने अपनी कैबिनेट की बैठक में इस मार्ग का नाम बाल गंगाधर तिलक हटाकर बीएनलहरी मार्ग करने का प्रस्ताव रखा जो तुरंत मंजूर हो गया। फिर क्या था! बाल गंगाधर तिलकवहां से मटियामेट कर दिए गए और ब्रिटिश काल में एसपी से आउट आफ टर्न प्रमोशन पर प्रमोशनपाते हुए आईजी की कुर्सी पर पर पहुंचे बीएन लहरी के नाम का शिला-पट लगवा दिया गया।
इस मामले पर कोई अफसर मुह खोलने को तैयारनहीं है। राज्य के डीजी पुलिस विक्रम सिंह से स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम ने उनका पक्ष जाननेके लिए दूरभाष पर संपर्क किया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए। किसीने अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर हिम्मत दिखाते हुए इतना बताया कि हो सकता हैकि बीएन लहरी राज्य के पहले भारतीय डीजी पुलिस थे, इसलिए इस मार्गका नाम बदल कर लहरी के नाम पर नामकरण किया गया है।चूंकि मायावती देश के महापुरुषोंको ठिकाने लगाने और भूगोल को बदलने के अभियान पर निकली हुई हैं, जिसमें बाल गंगाधर तिलक उड़ा दिए गए। डालीबाग मार्ग का नाम बदलने पर कोई नहींबोल रहा है। कुछ ही लोग दबी जुबान में मजमा लगा रहे हैं कि मायावती ने बुरा किया। लेकिनअब हो गया सो हो गया। जिसे मायावती के इस फैसले का विरोध करना है तो वह खुलकर सामनेआए। लोग कह रहे हैं कि लहरी ने ब्रिटिश पुलिस में रहकर भारत के स्वतंत्रता सेनानियोंपर उस समय डंडों की जगह फूल तो नहीं ही बरसाए होंगे। अंग्रेजों की चापलूसी करते हुएही वे यूपी के पहले डीजी बने होंगे। मायावती ने नामकरण प्रक्रिया के सारे नियम-कानूनतोड़कर सीधे कैबिनेट में तिलक मार्ग का नाम बदलकर बीएन लहरी मार्ग कर दिया। जरूर उनकेदिमाग में तिलक को लेकर कुछ न कुछ चला होगा। सरकार में कुर्सी के लालची चापलूस अब यहजान ही गए हैं कि मायावती की पसंद और ना पसंद क्या है।
शहरों की या अन्य जगहों की सड़कों के नामकरणकी भी एक प्रक्रिया है। लखनऊ राजधानी है। यहां के प्रमुख मार्गों का नामकरण नगर निगमकरता है, जिसे शासन मंजूरी देता है। उसके बाद वह गजट हो जाता है। इसका निर्वाचनक्षेत्रों की पहचान से भी गहरा रिश्ता है, जिससे इसे बदलने केलिए ठोस कारण देने होते हैं। हाईकोर्ट उन मार्गों के नाम बदलने पर रोक लगा चुका हैजो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं अन्य महानुभावों के नाम पर चले आ रहे हैं। हाईकोर्टने यह रोक इसीलिए लगाई थी कि सरकारें महापुरुषों की निशानियों को मटियामेट करने परतुल गई थीं। इसमें मायावती सरकार ने तो ऐतिहासिक नाम भी बदलने का अभियान सा चलाया हुआथा। इस मामले में मायावती को जिसने भी सलाह दी, उसका का सीधाअसर बाल गंगाधर तिलक के नाम मार्ग पर पड़ा। यह एक ऐसा दस्तूर शुरू हो गया है कि अब किसी का भी नामबदलकर सरकारें अपने चहेतों के नाम सड़कें स्कूल एवं सामाजिक संपत्तियों के नाम रखनेलगेंगे। कल को यह भी होगा कि प्रदेश के पहले मुख्य सचिव या पहले कैबिनेट सचिव के नाम परभी एनेक्सी या उसकी सड़क का नाम बदल दिया जाए।
इस तरह मार्गों के पौराणिक नाम बदलनेपर तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। प्रश्न है कि बाल गंगाधर तिलक के सामने बीएन लहरी का क्या महत्व है? यदि डालीबाग के मुख्य मार्ग का नाम बाल गंगाधर तिलकसे न जुड़ा होता तो शायद इसे नजरंदाज कर दिया जाता, लेकिन तिलकके साथ जो मायावती सरकार ने किया है, ऐसा तो ब्रिटिश सरकार नेभी नहीं किया होगा। सामाजिक संगठन मायावती के इस फैसले पर अपनी भर्त्सनात्मक टिप्पणियांदे रहे हैं, और चेता रहे हैं कि मायावती राज्य में ऐसे अपमानजनकएजेंडों को लागू करने से बाज आएं।