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कल्पनाओं के चरम तक पहुंचती ये कहानियां

कोलंबिया विश्वविद्यालय में हिंदी, उर्दू, पंजाबी कहानी गोष्ठी

सविता नायक

सविता नायक/savita nayak

न्यू यार्क। कोलंबिया विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर, उपन्यासकार, रंगमंच, आकाशवाणी और अभिनय क्षेत्र में अपने कौशल का अमिट प्रभावरखने वाली सुषम बेदी के नेतृत्व में शुक्रवार 4 मई, 2012 को हिंदी, उर्दू औरपंजाबी कहानी गोष्ठी का आयोजन किया गया। कहानी गोष्ठी में बहुत से अनुभवी, स्थापित और उभरते कहानीकारों एवं साहित्य में रूचि रखने वालोंने भाग लिया। गोष्ठी का शुभारंभ परिचय से हुआ। लेखकों ने क्रमशः अपनी-अपनी रचनाओं को पढ़ा। इनमें सर्वप्रथम न्यू यार्क विश्वविद्यालयकी हिंदी विभाग की प्रोफ़ेसर, हास्य-व्यंग्य की प्रसिद्ध कवियित्री एवं रचनाकार बिंदेश्वरी अग्रवालने ‘चली आ सुनंदा’ नाम की कहानी पढ़ी।यह समीर, सुनंदा और मारिया की कहानी है, इस कहानी में प्रवासी जीवन की विषमताओं को दर्शाया गया है।येल विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर, लेखिकासीमा खुराना ने कहानी ‘बूढ़ा शेर’ पढ़ी, इस कहानी में सार्थकता, प्रभाविकताऔर कहानी के अन्य तत्वों का समावेश बहुत संतुलित रूप में हुआ है।
कहानी ‘बूढ़ाशेर’ पर रवि ने कहा कि यह बहुत कुछ प्रवासी लोगों के अनुभव की तरह है, जिसमें पुराने तरीकों को छोड़कर नए तरीकों को अपनाया जाताहै, परंतु शायद पुरानी मान्यताओं काही परिणाम है कि कहीं न कहीं यह एक-दूसरे सेऐसे गुंथे हैं कि यह ‘पुराना और नया’ अविभाज्यहो जाते हैं। सुषम ने अपनी नई लिखी कहानी ‘पड़ोस’पढ़ी। यह एमा और अरविन की कहानी है। एमा यहूदी है और महायुद्ध के समय की विषमताओं सेपीड़ित है, इसीलिए दुखी रहती है। इस बात काज्ञान पाठक को लगभग कहानी के अंत में होता है और एमा की पीड़ा जानकार मन दुःख और सहानुभूतिसे भर उठता है। आफताब ने कहा कि उपरोक्त तीनों कहानीकारों की कहानी की सार्थकता संभवतःलेखक के उस पल को जीने में निहित है। रवि ने ‘पड़ोस’के विषय में कहा कि यह कहानी अप्रवासियों के अनुभव की मर्मस्पर्शी कथा है, जिसमें कहानी के प्रारंभ में पाठक के मन में बहुत से प्रश्नआते हैं पर लेखिका अंत में बखूबी उनका उत्तर दे देती हैं।
गोष्ठी में अनिल प्रभा की लघु-कथाओं पर आधारित प्रथम प्रकाशित पुस्तक ‘बहता पानी’ का विमोचन हुआ और उस पर विशेष रूप से चर्चा हुई।कहानी गोष्ठी की आयोजक सुषम बेदी ने अनिल प्रभा की पुस्तक की प्रस्तावना में कहा किअनिल प्रभा की कहानियों में सार्थकता और पाठक के मन को छू लेने की प्रभाविकता है। सुषमने बताया कि कैसे अनिल प्रभा की सृजनात्मकता शक्ति को देखते हुए वे अक्सर उनको लिखनाप्रारंभ करने को कहती रहीं, लेकिन अनिलप्रभा ने हमेशा अपने परिवार को प्राथमिकता दी, अबजब उनको अपने उत्तरदायित्वों से कुछ अवकाश मिला तो उन्होंने ये कहानी संग्रह लिखा।उन्होंने अनिल प्रभा के संकलन मे से कुछ कहानियों के विषय में अपने विचार व्यक्त करतेहुए कहा कि अनिल प्रभा की कहानी ‘उसका इंतज़ार’प्रवासी भारतीयों के जीवन, उनकी समस्याओंऔर मूल्यों के टकराव के बारे में है। सुषम ने बताया कि ‘बहतापानी’ उनको विशेष रूप से अच्छी लगी और ज़िक्र किया कि ‘मैंरमा नहीं हूं’ कहानी में औरतों को तुलनात्मक दृष्टि से देखा गया है।
प्रोफ़ेसर सीमा खुराना ने, अनिल प्रभा की पुस्तक ‘बहतापानी’ के बारे में लिखी गई ‘रूप सिंहचंदेल’ की समीक्षा पढ़ी। चंदेल की लिखी समीक्षा न केवल रचनाकार बल्कि पाठकों के लिएभी बहुत उपयोगी और प्रेरित करने वाली है। चंदेल के शब्दों में ‘अनिल प्रभा कुमार का कथाकार रचना की अंतर्वस्तु की मांग कोबहुत बखूबी जानता पहचानता है और उसे अपने सुगठित शिल्प और सारगर्भित भाषा में पाठकोंसे परिचित करवाता है।’ अशोक व्यास ने अनिल प्रभा की कहानी ‘बहतापानी’ के विषय में कहा कि उनकी कहानी पढ़कर ऐसा लगता है, जैसेकोई संवेदना की सोई हुई नदी को जगा देता है उन्होंने कहानी ‘उसका इंतज़ार’ को सयंत और भावनात्मक बताया। कोलंबिया विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के प्रोफ़ेसरऔर उभरते हुए कहानीकार संदीप ने ‘फुलकारी’नाम की पंजाबी कहानी पढ़ी। अपनी कहानी की प्रस्तावना में उन्होंने बताया कि यह कहानीस्त्री की उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है, जोदिन-ब-दिनहमारे समाज से लुप्त होती जा रही है।
इस कहानी में ‘फुलकारी-ओढ़नी’ दहेज की एक वस्तु मात्र न होकर स्त्री के अरमानों कीएक ऐसी पुष्पमय लता है, जिसके ऊपरकढ़ाई किए गए रंग-बिरंगे बेल-बूटों को स्त्री अपने जीवन में सर्वदा खिला हुआ देखना चाहतीहै। इसके साथ ही यह कहानी हमारे सभ्याचार में पड़ रही दरार को भी दर्शाती है और उन प्रवासीभारतीयों की विचारधारा पर भी कटाक्ष करती है, जोविवाह तो पंजाब में करना चाहते हैं, किंतु पंजाबीनैतिक मूल्यों को घटिया समझ कर धीरे-धीरे भूलतेजा रहे हैं। संदीप आगे कहते हैं कि यही कारण है कि ‘फुलकारी’कहानी में स्‍त्री मन ही मन सोचती है कि उसका पति इतना पढ़-लिखकर भी केवल काले अक्षरों को ही पहचान पाया है, उसकीभावनाओं की कद्र करना नहीं जान पाया, इसलिए वोशिक्षित होकर भी अशिक्षित के समान है। संदीप ‘गागरमें सागर’ की तरह कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहने की क्षमता रखते हैं।
अशोक व्यास ने बहुत वर्षों तक आकाशवाणी में भी कार्य कियाहै और दूरदर्शन एवं साहित्य जगत में भी खूब जाने जाते हैं। उन्होंने ‘बस दो कदम’ शीर्षक वाली ‘काव्यगतएवं नाटकीय’ कहानी पढ़ी। कहानी में एक स्त्री का डॉक्टर से वार्तालाप है, जिसमें वो अपने बीमार पति को लेकर बात कर रही है। क़ुतुब मीनारको कहानी का संदेश देने का माध्यम बनाया गया है। कहानी में रोचकता और रसमयता को बनाएरखने में यह शैली सफल रही है। इस रचना से कुछ पृथक ढंग से यह संदेश देने की कोशिश कीगई है कि कैसे हम अपने स्वार्थ में डूबकर छोटे हो रहे हैं, बौनेहो रहे हैं और हममें ‘ऊँचाई’ यानि महानता कम होतीजा रही है। गोष्ठी में विद्यमान लोगों ने इस रचना की अनूठी शैली की सराहना की और रविने कहा कि ‘बस दो कदम’ सृजनात्मक है और ‘जादुई यथार्थवाद’ की शैली में है।
कहानी गोष्ठी में, हरकहानी के पश्चात उस कहानी पर प्रश्न-उत्तर, चर्चा और आलोचना अपेक्षित है। इस गोष्ठी में भी हर कहानीसुनने के पश्चात विद्यमान साहित्य प्रेमी अपनी प्रतिक्रिया प्रगट करते और प्रश्न-उत्तर और प्रतिक्रियाओं का सिलसिला चलता। जैसे-‘इस कहानी की प्रेरणा कहां से मिली?’ ‘कहानी में लेखक का हस्तक्षेप अधिक है’ ‘कहानी में यथार्थता है’ ‘कहानीका शिल्प अति सुंदर है’ ‘इस कहानीका अंत ऐसा क्यों किया गया?’ इत्यादि।इसके साथ ही कोलंबिया यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर राकेश रंजन ने भारतीयसाहित्य के इतिहास के महत्वपूर्ण तथ्यों इत्यादि पर विस्तृत जानकारी दी, जोकि उनके साहित्यिक अनुभव एवं रूचि को दर्शाती है। वे कितनीही महत्वपूर्ण बातें, कितने कम समय और कम शब्दोंमें झट से बता देने की क्षमता रखते हैं और उनसे हमेशा कुछ न कुछ उपयोगी साहित्यिक जानकारीमिलती है।
कहानी विधा पर अपने शोधपूर्ण विचार प्रगट करतेहुए कोलंबिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर दलपत ने कहा कि दुनिया की हरसभ्यता में कहानी एक प्रमुख माध्यम रहा है, जिससेनीति, धर्म, लोकविश्वास, लोक व्यवहार, पारंपरिक और सांस्कृतिक ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी संचरित होता रहाहै। कहानी कहना मनुष्य की सहज कलात्मक वृत्ति है, इसलिएइसकी रक्षा करना अपने आप में एक सांस्कृतिक दायित्व को निभाना है, फिर दलपत ने नामवर सिंह की कहानी संबंधी आलोचना पर बात करतेहुए ये भी कहा कि ‘उन्होंने कहानी का सौंदर्यशास्त्रनिर्मित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनका दिया पारिभाषिक शब्द ‘सार्थकता’ कहानी को प्रभावशाली विधा के रूप में स्थापित करताहै, क्योंकि वे कहते हैं-‘कहानी जीवन की छोटी से छोटी घटना में भी अर्थ ढूंढ लेती हैया उसे अर्थ प्रदान करती है।’
कोलंबिया विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रोफ़ेसरआफताब ने कहानी में रूचि रखने वाले एक पाठक की दृष्टि से अपने अनुभव एवं विचार से कहाकि समय के साथ-साथ कुछ कहानियों को पसंद करने केविषय में उनकी विचारधारा में परिवर्तन आया है, किंतुकुछ कहानियां आज भी पहले की तरह अच्छी लगती हैं। हमेशा अच्छी लगने वाली कहानियों मेंकौन सी बात एक जैसी थी? इसके बारेमें विचार करने पर उनको ये अनुभव हुआ कि कहानी में ‘कहानीपन’होना कहानी को ‘पठनीय’ बनाता है और कहानी का शिल्पसशक्त होना आवश्यक है, यानि अगर कहानी में ऐसे तत्वहों, जो पाठक के विचारों और भावनाओं केजगत में कुछ हलचल मचाते हैं, उसके अंतर्मनमें कुछ भूला बिसरा जगा देते हैं, तो ऐसीकहानी अच्छी होगी। अच्छी कहानी की समाप्ति पर पाठक को लगता है कि उसके अंदर कुछ नयाजुड़ गया है, वह मानव जीवन और समाज के कुछ पहलुओंके बारे में ज़्यादा सजग और संवेदनशील हो गया है, उसकेकुछ पूर्वाग्रह टूटे हैं, उसकी दृष्टिमें कुछ नयापन और गहराई आ गई है और उसका हृदय कुछ और कोमल हो गया है।
कहानी गोष्ठी की चर्चा में, हिंदी यूएसए, युवा हिंदीसंस्थान की कार्यकर्ता और सिटी कॉलेज की प्राध्यापक सविता नायक तथा अंकिता ननचहल, जोकि भारत से कुछ ही समय के लिए अमेरिका आई हैं और न्यू यार्कविश्वविद्यालय में कार्यरत हैं, ने भी भागलिया। गोष्ठी में मीना ने प्रथम बार भाग लिया। मीना वास्तुकार हैं और पिछले 43 वर्षों से मनहट्टन, न्यूयार्क में रह रही हैं। उन्होंने गोष्ठी पर प्रसन्नता दर्शायी और कहा कि संभवतः वास्तुकलाजैसे रचनात्मक क्षेत्र में होने के फलस्वरूप ही वे साहित्य के क्षेत्र में भी रूचिरखती हैं, क्योंकि यह भी तो रचनात्मक क्षेत्रहै! उनके साथ ही गोहली मदान ने भी गोष्ठीमें भाग लेने को अद्भुत अनुभव बताया और कहा कि वह अगले वर्ष की गोष्ठी में भी अवश्यआना चाहेंगी! गोष्ठी में विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमिवाले एवं विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के साथ मनोवैज्ञानिक विश्लेषणात्मक सामाजिक कार्यकरने का अनुभव एवं साहित्य में रूचि रखने वाले मनोचिकित्सक रवि भसीन ने भी भाग लिया।वह पिछले 30 वर्ष से न्यू यार्क में रह रहे हैं।उन्होंने कहा कि उनको इस सांस्कृतिक और साहित्यिक तौर पर समृद्ध, लाभप्रद और संतोषप्रद अधिवेशन में आकर बहुत ख़ुशी हुई है, गोष्ठी में कई रचनाकारों की रचनाएं, पुस्तक और ‘काव्यगतएवं नाटकीय कहानी’ शामिल थीं, इसके साथही उन्होंने मिल-जुलकर गोष्ठी के रूप मेंइस प्रवासी शिक्षाप्रद प्रक्रिया को जारी रखने की बात कही।
उन्होंने कहा कि कोलंबिया विश्वविद्यालय मेंज्ञानवान और स्थापित लेखकों की छत्रछाया और साहित्य प्रेमी एवं विचारकों के मध्य मिल-जुलकर होने वाली इस गोष्ठी की चर्चा से नए उभरते, प्रतिभावान रचनाकारों को लेखन के लिए सुझाव और मन को उत्साहमिला है। गोष्ठी में प्रथम बार भाग लेने वाले लोगों को भी सुनी रचनाओं और उन रचनाओंपर हुई चर्चा से लाभ हुआ है, इसलिए आशाकी जाती है कि भविष्य में भी ऐसी चर्चाएं होती रहेंगी और रचनाकार अपनी काल्पनिक औरसृजनात्मक शक्ति का प्रयोग करते हुए, ऐसी रचनाओंको लिखते रहेंगे, जो पढ़ने-सुनने वालों के मन में अपने देश की मिट्टी, भाषा, संस्कृतिऔर साहित्य के प्रति स्नेह और सम्मान पैदा करें।

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