मनमोहन हर्ष
नई दिल्ली। दुनियां के जांबाज टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस भारतीय खेल इतिहास में कालजयी प्रर्दशन और खेल परंपराओं की समृद्धि के एक प्रमुख आधार है, मगर दुःख की बात है कि लंदन ओलंपिक में छठी बार देश का प्रतिनिधित्व करने जा रहे उन सरीखे महान खिलाड़ी के इर्द-गिर्द पिछले दिनों देश में ही टेनिस कोर्ट के बाहर व पर्दे के पीछे एक शर्मनाक खेल खेला गया। राहत की ख़बर यह है कि कोर्ट पर मातृभूमि के गौरव के लिए चुनौतियों को जमींदोज कर देश को अविस्मरणीय उपलब्धियों से नवाजने वाले पेस ने ऐसे किसी नापाक खेल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। केवल ‘खेल’ पर फोकस करने व राजनीति से अलग रहकर टेनिस संघ के निर्णय के अनुरूप ओलंपिक में खेलने की पेस की रजामंदी से टेनिस प्रेमियों के दिलों में उनका मान-सम्मान बढ़ा है। टेनिस के इस काले अध्याय से देश की गरिमा पर पुती कालिख के बीच लिएंडर पेस ने जिम्मेदारी और सदाशयता का परिचय दिया है।
भारतीय खेल जगत में और खासतौर से टेनिस संसार में यह बात अफसोस के साथ नोटिस की गई कि भारत के नंबर वन और दुनियां के चोटी के दस युगल खिलाड़ियों में शरीक होने के बावजूद ओलंपिक में भारत के लिए पदक की बड़ी आशा के ध्येय से अपना जोड़ीदार चुनने की लिएंडर पेस की पसंद को दरकिनार किया गया। इस दौरान उन जैसे महान खिलाड़ी की बेदाग छवि को खराब कर उन्हें अलग-थलग करने के कुत्सित प्रयास हुए। निजी स्वार्थ और कोर्ट के बाहर के संबंधों का हवाला देकर देश हित को ताक पर रखा गया। देश के टेनिस कर्ताधर्ताओं की भूमिका भी इसमें न केवल संदिग्ध रही, बल्कि वे देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को न्याय प्रदान करने में असहाय नज़र आए।
सवाल जब ओलंपिक में पदक हासिल करने के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प के चयन का हो तो खिलाड़ी व्यक्तिगत संबंधों को लेकर किसके साथ खेलेंगे और किसके साथ नहीं, यह कहने की हिमाकत कैसे कर सकते हैं? और वे इस ओछेपन पर उतर भी आएं तो इसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है? महेश भूपति और रोहन बोपन्ना ने सार्वजनिक तौर पर पेस के साथ जोड़ी न बनाने को लेकर बयानबाजी की और उनके दबाव के समक्ष टेनिस संघ न्याय करने के बजाय घुटने टेकने को मजबूर हुआ, देश के खेल इतिहास में यह बड़ा शर्मनाक वाकया है। इससे ओलंपिक के ऐन मौके पर दुनियां में देश की किरकिरी हुई है, जिसके लिए इतिहास टेनिस के खलनायकों को कभी माफ नहीं करेगा।
लिएंडर पेस के भूपति और बोपन्ना के संग उनके व्यक्तिगत संबंधों में चाहे जितनी भी कटुता रही होगी, उन्होंने देश हित में टेनिस के मैदान पर सफलताओं की राह में इसे कभी आड़े नहीं आने दिया। पेस शुरूआत से यह कहते रहे कि उन्हें किसी के साथ भी जोड़ी बनाने में दिक्कत नहीं, पर ओलंपिक में पदक जीतने के दृष्टिकोण से देश के सर्वश्रेष्ठ युगल खिलाड़ी (पेस) के साथ रेंकिंग में अगली वरीयता के खिलाड़ी को ही पार्टनर बनाया जाए, लेकिन पेस और देश के इस हक को दरकिनार कर दिया गया। पेस के हवाले से यह कयास लगाए जा रहे थे कि वे विष्णुवर्द्धन के साथ जोड़ी बनाने से इनकार कर देंगे, लेकिन देश हित में अपने करिअर के 22 साल समर्पित कर कालजयी सफलताएं अर्जित करने वाले पेस ने विष्णु जैसे जूनियर खिलाड़ी के साथ जोड़ी बनाने के अखिल भारतीय टेनिस संघ के निर्णय को शिरोधार्य कर फिर उस बड़प्पन और महानता का परिचय दिया है, जो उनकी खास पहचान है।
पेस के साथ व्यक्तिगत संबंधों या मतभेदों को लेकर कोई कितनी ही चिल्लपों भले ही करे, समूचा देश जानता है कि मैदान पर खिलाड़ी के रूप में देश के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता को हथियार बनाकर ओलंपिक, डेविस कप और ग्रैंड स्लैम स्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का झंडा गाड़ने में उनका कोई सानी नहीं है। जिजीविषा और जिंदादिली के पर्याय लिएंडर ने अपने रैकेट से देश के लिए अनेक स्वर्णिम सफलताएं अर्जित की हैं। नाउम्मीदी की घड़ियों, पहाड़ सरीखी विपरीत और जटिलतम परिस्थितियों में जब प्रतिद्वंद्वी खेमें में खिलाड़ियों के मुकाबले में आपकी रेटिंग में जमीन आसमान का फर्क हो, तो भी देशप्रेम का जज़्बा कैसे जीत की राह को आसान कर देता है, यह पेस से बखूबी सीखा जा सकता है। एड़ी चोटी का जोर लगाकर टेनिस में देश का सिर ऊंचा रखने की हरमुमकिन कोशिश और चाह उनके लिए सफलता का मूलमंत्र रहा है।
लिएंडर का दो दशक से भी ज्यादा लंबा कैरियर संजीदगी, सादगी और जी-तोड़ परिश्रम के दम पर अर्जित सफलताओं से सुसज्जित है। लिएंडर ने डेविस कप में देश के लिए अपनी क्षमताओं से बढ-चढ़कर प्रदर्शन करते हुए चमत्कारिक खेल से शीर्ष वरीयताओं का मानमर्दन कर नजीर कायम की है। लिएंडर ने कहा है-‘डेविस कप और ओलंपिक में करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों के वाहक के रूप में मुकाबला करना उनके जीवन का सबसे अनमोल और गौरवपूर्ण अनुभव होता है, तिरंगे की शान को बुलंद करने के लिए मन में जिम्मेदारी के भाव उन्हें सातवें आसमान पर पहुंचा देते हैं।’ वास्तविकता में पेस टेनिस के मैदान पर देश के लिए गौरवमयी परंपराओं के सर्जक हैं। अंग्रेजी के मुहावरे ‘वियरिंग ट्राईकलर ऑन हिज स्लिव्ज’ (तिरंगे का मान बढ़ाने के भावों को तन-मन में संजोए) का खेल के मैदान पर साक्षात करना हो, तो लिएंडर पेस इसका जीवंत उदाहरण है। खेल के मैदान पर देश के गौरव के लिए पिल पड़ने का जज़्बा कैसे श्रेष्ठता के मापदंडों को ढहाकर किसी अल्पख्यात या निम्न वरीयता वाले खिलाड़ी की सफलताओं की सैरगाह में तब्दील हो जाता है, इसके लिए पेस से बढ़कर कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता।
लिएंडर पेस 1996 के अटलांटा ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर 44 वर्षों बाद देश के लिए ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक जीतने वाले खिलाड़ी बने थे। अच्छा होता लंदन ओलंपिक में उन्हें अपने कद के अनुरूप जोड़ीदार देते हुए देश की पदक जीतने की संभावनाओं के मध्यनजर न्यायसंगत निर्णय लिया जाता। खैर, पेस सदैव देश को गौरव दिलाने को तत्पर रहे हैं। पेस के मार्फत देश लंदन से ऐसी खुशख़बर का मुंतजिर है।