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Friday 27 September 2013 09:34:52 AM
बीजिंग। बीजिंग में छठी चीन-भारत वित्तीय वार्ता के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि दोनों पक्ष वृहत आर्थिक नीतियों और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक तथा वित्तीय मामलों पर नियमित संवाद और सहयोग सुदृढ़ करेंगे। भारत और चीन के बीच यह छठी वित्तीय वार्ता कल बीजिंग में आयोजित की गई। वार्ता चीन की जनता का गणराज्य और भारत गणराज्य के बीच वित्तीय वार्ता पर अप्रैल 2005 में हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन पर आधारित है। इससे पहले दोनों पक्षों ने अप्रैल 2006, दिसंबर 2007, जनवरी 2009, सितंबर 2010 और नवंबर 2011 में वार्ता के पांच दौर सफलतापूर्वक पूरे किये। दोनों पक्ष 2014 में नई दिल्ली में 7वें भारत-चीन वित्तीय संवाद के लिए भी तैयार हुए हैं।
इस वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने विश्व की अर्थव्यवस्था के सामने नई चुनौतियों, भारत और चीन में वृहत आर्थिक स्थितियां और नीतियां, दोनों देशों में ढांचागत सुधारों में प्रगति, बहुपक्षीय ढांचे और द्विपक्षीय वित्तीय सहयोग के अधीन सहयोग पर गहराई से विचार-विनमय हुआ। दोनों पक्ष वृहत आर्थिक नीतियों और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर नियमित संवाद और सहयोग को सुदृढ़ करने पर सहमत हुए। दोनों पक्षों ने इस बात को स्वीकार किया कि विश्व में आर्थिक सुधार की स्थिति अभी कमजोर है और उसमें गिरावट के खतरे अभी बने हुए हैं। वित्तीय बाज़ारों में उतार-चढ़ाव भी तेज हो गया है।
विकसित देशों में हो रहे तेज विकास के चलते यह आवश्यक है कि ये देश उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के साथ सहयोग करें। समूह के रूप में बाजार अर्थव्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं, लेकिन कुछ देशों में इसकी गति धीमी है। ऐसी परिस्थितियों में भारत और चीन के लिए यह आवश्यक है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक नीतियों को लेकर आपसी ताल-मेल बने। विशेष रूप से जी-20 की नीतियों को लागू करने के लिए दोनों देशों में आपसी सहयोग आवश्यक है, ताकि आर्थिक वृद्धि और रोज़गार सृजन के माध्यम से विश्व का मजबूत, टिकाऊ और संतुलित विकास हो सके।
वार्ता में कहा गया कि भारत और चीन में वृहत आर्थिक नीतियां तथा ढांचागत सुधार हुआ है। मोटे तौर पर चीन के आर्थिक परिदृश्य में स्थायित्व बना हुआ है। ढांचागत सुधारों ने गति पकड़ ली है, व्यापक पैमाने पर उपभोग बढ़ रहा है, मूल्यों में स्थायित्व बना हुआ है तथा रोज़गार की स्थिति भी अच्छी बनी हुई है, साथ ही व्यय संरचना में सुधार के लिए राजस्व नीति पर ध्यान केंद्रित किया गया है, प्रशासनिक व्यय को कम किया गया है। लोक कल्याण पर ध्यान दिया जा रहा है तथा लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों को करों में छूट दी जा रही है।
वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार अभी भी मजबूत बना हुआ है। भारत में कुछ जोखिमपूर्ण व्यापक आर्थिक तथा राजस्व प्रबंधन नीतियां अपनाई हैं, ताकि समावेशी विकास एवं उच्च आर्थिक वृद्धि, इन दोनों लक्ष्यों को साधा जा सके। केंद्रीय बजट (2013-14) में निवेश को बढ़ाने, मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण करने, उच्च स्तर के ढांचागत विकास तथा वंचित तबकों के लिए व्यापक सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं गए हैं। दोनों पक्ष ढांचागत सुधारों की प्रक्रिया में एक-दूसरे को सहयोग करने तथा आपसी ताल-मेल की संभावनाओं को तलाशने पर सहमत हुए हैं।
दोनों पक्षों ने जी-20, ब्रिक्स तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों जैसी बहुपक्षीय रूपरेखाओं के तहत द्विपक्षीय ताल-मेल के महत्व को समझा है। दोनों पक्ष जी-20 के सेंट पीटर्सबर्ग शिखर सम्मेलन में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों को लागू करने में एक-दूसरे का सहयोग करने के लिए तैयार हुए हैं। दोनों देशों के बीच अन्य ब्रिक्स सदस्य देशों के साथ सहयोग पर सहमति बनी है, ताकि 'ब्रिक्स विकास बैंक' तथा 'आकस्मिक संरक्षण प्रबंध' जैसे कदमों को किसी ठोस परिणाम तक पहुंचाया जा सके। इसी प्रकार दोनों पक्ष मिलकर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से विकासशील देशों के लिए ऋण क्षमता बढ़ाने का आह्वान करेंगे।
दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश के विस्तार में मजबूत मुद्रास्फीति तथा वित्तीय सहयोग की आवश्यकता को पहचाना है। दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय वित्तीय सहयोग को बढ़ाने के लिए आपसी संवाद को मजबूत करने तथा संभावनाओं को तलाशने पर सहमति बनी है। दोनों देशों के वित्तीय नियंत्रकों ने विदेशी बैंकों के लिए बाजार अभिगम्यता नियंत्रक नीतियों पर विचार-विमर्श किया तथा एक-दूसरे के बाजार में विभिन्न बैंकों को अपनी शाखाएं तथा उप-शाखाएं खोलने के लिए सहयोग करने पर भी बातचीत हुई। दोनों पक्षों ने भारत-चीन वित्तीय संवाद को बढ़ाने के लिए आपसी सहयोग को मजबूत करने, आपसी विश्वास को गहरा करने तथा द्विपक्षीय राजस्व और वित्तीय संवाद को प्रोत्साहन देने पर सहमति जताई।