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अजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वंशज और उनकी दरगाह के सज्जादानशीन दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान ने फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों की फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए ख्वाजा के दरबार में मन्नत मांगने को इस्लामी शरीअत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ करार देते हुए ऐसे कृत्यों को ना काबिले बर्दाश्त बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीअत के जानकारों की खामोशी चिंताजनक है, देश के प्रमुख उलेमाओं, दारूलउफ्ता और मुफ्तियों को इस मसले पर शरीअत के मुताबिक खुलकर अपनी राय का इजहार करना चाहिए, जिससे मुसलमानों के इतने बड़े धर्म स्थल पर हो रहे गैर शरीअती कार्यों पर अंकुश लग सके।
ख्वाजा की दरगाह के सज्जादानशीन ने एक बयान में कहा कि ख्वाजा एक आध्यामिक संत थे और उन्होंने अपने जीवनकाल में इबादत, तकवा, परहेजगारी पर कायम रहते हुए, कुरान और इस्लामी शरीअत को आत्मसात करके लोगों को कानूने शरीअत के मुताबिक ज़िंदगी बसर करने का संदेश दिया और सूफीमत के चिश्तिया सिलसिले की स्थापना की। इस्लाम धर्म में नाच गाने, चित्र, चलचित्र, अश्लीलता को हराम करार दिया गया है और ग़रीब नवाज ने लोगों को इन सामाजिक बुराईयों से दूर रहकर शरीअत के मुताबिक इबादते इलाही में व्यस्त रहने की हिदायत दी है। आज ग़रीब नवाज के मिशन को दरकिनार करके उनके दरबार में इन गैर शरीअती कार्यों के लिए मन्नतें मांगी जा रही हैं, फिल्में रिलीज करने से पहले मजार पर पेश की जाकर फिल्म की कामयाबी के लिए दुआएं की जा रही हैं।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि धर्म और श्रद्धा के इतने बड़े पवित्र स्थल का इस्तेमाल आस्था और अकीदत के बजाए केवल व्यवसायिकता, प्रचार प्रसार और ख्याति प्राप्त करने के लिए किया जाना ग़लत एवं नाजायज है, इसलिए फिल्मी हस्तियों, निर्माता और निर्देशकों को धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले ऐसे किसी भी कार्य से परहेज करना चाहिए। दरगाह में फिल्म शूटिंग इसीलिए प्रतिबंधित है कि यहां किसी प्रकार की बेअदबी से आस्ताने की पवित्रता को ठेस ना पहुंचे, पर प्रायः यह देखने में आया है कि फिल्मी हस्तियों ने अपनी कारगुजारियों से ग़रीब नवाज के आस्ताने को विवादों में घसीटने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि फिल्मों की सफलता के लिए न सिर्फ ख्वाजा की दरगाह पर, बल्कि किसी अन्य मजहब के धर्म स्थल पर भी, इस तरह मन्नतें नहीं मागनी चाहिएं, क्योंकि किसी भी धर्म में नाजायज करार दिए गए कार्यों के लिए इस तरह की इजाजत नहीं है।
संगीतकार हिमेश रेशमिया के मर्द होते हुए बुर्का पहन कर आना और केटरीना कैफ का अश्लील लिबास में दरगाह आकर विवाद उत्पन्न करने को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। पिछले वर्षों में कई फिल्म निर्देशकों एवं अभिनेता अभिनेत्रियों ने अपनी फिल्मों को आस्ताने पर पेश कर न सिर्फ उनकी कामयाबी के लिए सार्वजनिक रूप से मन्नतें मांगी, बल्कि बाद में मन्नत उतारने के नाम पर मीडिया को सार्वजनिक बयानबाजी की गई, जो इस्लामी शरीअत के दृष्टिकोण से नाजायज है-दरगाह दीवान ने कहा। उन्होंने कहा कि हर छोटे-बड़े मसले पर बेबाकी से अपनी राय का इज़हार करने वाले देश के दारूलउफताओं, मजहबी रहनुमाओं, उलेमाए दीन और इस्लामी विद्धानों का इस संवेदनशील मसले पर खामोशी इख्तियार कर लेना चिंताजनक है।
सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान ने आह्वान किया कि देश के प्रमुख इस्लामिक संस्थानों को शरीअत के मुताबिक खुलकर इस मामले पर अपनी राय जाहिर करनी चाहिए, ताकि चिश्तिया सूफीमत के संस्थापक और प्रमुख हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन के विश्व विख्यात आस्ताने पर हो रहे गैर शरीअती कार्यों पर रोक लग सके, साथ ही उन्होंने यह भी कहा की वे बॉलीवुड के कलाकारों या फिल्म कारोबार से जुड़े लोगों के खिलाफ नहीं हैं, बेशक बुजुर्गों के आस्तानों पर आस्था और अकीदत के साथ जाकर अपनी जायज तमन्नाओं के लिए दुआएं और मन्नते भी मांगनी चाहिएं, मगर उनके बताए हुए रास्तों पर उनकी दी हुई शिक्षाओं के मद्देनज़र। अश्लीलता के करोबार और शरीअत के खिलाफ होने वाले किसी भी ऐसे कार्य से बचना चाहिए, जो किसी मजहब के नियमों के खिलाफ हो।