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Monday 21 October 2013 09:14:58 AM
मास्को। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मास्को स्टेट इंस्टिच्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन से डॉक्टरेट की मानक उपाधि प्राप्त करते हुए कहा है कि उन्हें इस महान संस्थान के गौरवशाली इतिहास और रूस की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में इसके व्यापक सहयोग के बारे में पता है, यह कार्यक्रम रूस का भारत के लोगों के प्रति स्नेह और दोनों देशों के बीच संबंधों की सुदृढ़ता का सूचक है। उन्होंने कहा कि भारत और रूस के बीच सदियों से वाणिज्य और संस्कृति के क्षेत्र में स्थायी संबंध चले आ रहे हैं। भारत और रूस की दोस्ती बेमिसाल है, बीसवीं सदी दोनों देशों में महत्वपूर्ण बदलाव का युग था, हमारे राजनीतिक नेता, बुद्धिजीवी और कलाकार आपस में जुड़े रहे और इससे हमारे सोच-विचार पर एक-दूसरे का प्रभाव पड़ा। इसकी एक झलक महात्मा गांधी और लियो तॉलस्तॉय के बीच हुए समृद्ध पत्र-व्यवहार को देखकर मिलती है। गांधीजी के अहिंसा के व्यवहार के प्रति तॉलस्तॉय की सोच बहुत रचनात्मक थी।
मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता तक और उसके बाद से लगातार भारत और रूस ने आधुनिक समय की चुनौतियों से निपटने के लिए सुदृढ़ संबंधों का निर्माण किया। भारत के राष्ट्रीय विकास के हर पहलू के लिए किए गए प्रयासों में रूस का सहयोग रहता है, चाहे वो भारी उद्योगों के विकास, ऊर्जा क्षेत्र, हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम या फिर रक्षा जरूरत की बात हो। रूस कड़ी अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों के क्षणों में भारत के साथ उस समय भी खड़ा रहा, जब हमारे साधन सीमित थे और कुछ देश ही हमारे मित्र थे, जो भी सहयोग हमें रूस से प्राप्त हुआ है, उसे भारत कभी नहीं भूल सकता। यही वो कारण हैं कि भारत के लोग रूस के साथ हमारी दोस्ती और उसके बहुमूल्य समर्थन का आदर करते हैं।
उन्होंने कहा कि पिछली सदी के अंतिम दशक की शुरूआत में दोनों देशों को राजनैतिक और आर्थिक बदलाव के समय दिक्कतों का सामना करना पड़ा। भारत ने खुलेपन की नीति अपनायी और विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ खुद को गहरे से एकीकृत किया, जबकि रूस ने विश्व में अपना स्थान प्राप्त करने के लिए लचीलेपन का रूख अपनाया। हम दोनों में से किसी ने इन बदलाव को हमारे संबंधों की गति में व्यवधान नहीं बनने दिया। वस्तुत: नई सदी में प्रवेश के साथ भारत और रूस ने न केवल संबंधों को फिर से गति देने की दिशा प्राप्त की बल्कि इसे एक नया स्वरूप भी दिया। उन्होंने कहा कि रूस पहला देश है, जिसके साथ भारत ने सन् 2000 में रणनीतिक साझेदारी घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए और वार्षिक बैठक की प्रक्रिया आरंभ की। रूस के साथ हमारे रक्षा संबंध किसी भी दूसरे देश के साथ हमारे संबंधो से अधिक महत्वपूर्ण हैं। जल्दी ही रूस मालवाहक विमान आईएनएस विक्रमादित्य और परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र लीज़ पर भारत को देगा। पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू वायुयानों के साझा विकास और ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल हमारे सहयोग की विशेषता के पैमाने के उदाहरण हैं।
उन्होंने कहा कि रूस ने हमें उस समय परमाणु ऊर्जा में साझेदारी का प्रस्ताव दिया, जबकि बाकि देशों द्वारा हमारे साथ परमाणु व्यापार को टाला जा रहा था। रूस की सहायता से बनाये गये कुडांकुलम परमाणु बिजली संयंत्र की पहली इकाई इस साल जुलाई में शुरू हो गयी है और दूसरी अगले साल की शुरूआत में शुरू हो जाएगी। भारतीय तेल कंपनी ओएनजीसी की विदेश में सबसे बड़ी उपस्थिति रूस में है। हमारा विज्ञान का सबसे बड़ा तकनीकी सहभागिता कार्यक्रम भी रूस के साथ है। उन्होंने कहा कि एक विशेष व गौरवान्वित रणनीतिक साझेदारी के रूप में हमारे संबंधों के इस विवरण का औचित्य पूरी तरह से सिद्ध करने के लिए हमारी साझेदारी के परिणामों की यह संक्षिप्त समीक्षा ही पर्याप्त होनी चाहिए। यह भी पूछा जा सकता है कि हम इन संबंधों को और ऊंचाईयों पर किस तरह ले जा सकते हैं। मुझे विश्वास है कि हमारे संबंध की ताकत और प्रबलता यूं ही बनी रहेगी, हमें इसे बदल रहे समय के अनुरूप ढालना होगा, जिससे हम सभी तरह के मौजूदा अवसरों और चुनौतियों पर पूरी तरह ध्यान दे सकें, मुझे पूरा यकीन है कि पहले की तरह अब भी हम इन चुनौतियों का मिलकर सामना करेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि द्विपक्षीय स्तर पर हमारी रक्षा ज़रूरतों के लिए रूस हमारा महत्वपूर्ण भागीदार बना रहेगा और भविष्य की हमारी रक्षा सहभागिता तकनीक के हस्तांतरण, साझा कार्यक्रम, सह-विकास और सह-उत्पादन पर आधारित होगी। ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी हम रूस को एक मुख्य भागीदार के रूप में देखते हैं। परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के लिए हमारे पास लंबे समय की एक महत्वाकांक्षी योजना है। भारत द्वारा तैयार किया जा रहा हाइड्रोकार्बन सहभागिता कार्यक्रम तेल, गैस, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में हमारी साझेदारी को और मज़बूत बनायेगा। हमारे व्यापार और निवेश के प्रवाह के निरंतर विस्तार ने हमारे संबंधों को एक नया आयाम दिया है। इसे और गहरा व गतिशील बनाने के लिए भारत और रूस को दोनों को अपनी अर्थ व्यवस्थाओं के सामर्थ्य को और बेहतर बनाना चाहिए। दोनों देशों के बीच पर्यटन क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास से हमें न सिर्फ आर्थिक लाभ हुआ है, बल्कि भारत और रूस के लोगों के बीच सम्पर्क भी गहरे हुये है।
सबसे पहले केंद्रीय व दक्षिण-केंद्रीय एशिया में विकास भारत व रूस दोनों की सुरक्षा से संबंधित है। भारत केंद्रीय एशिया से अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्जीवित कर रहा है, इसलिए हम इस क्षेत्र में रूस के साथ और निकटता से काम करना चाहते है। हमारा सहयोग अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और आर्थिक विकास लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अतिवाद, आतंकवाद और नशीले पदार्थो की तस्करी जैसी साझी चुनौतियों का सामना करने में भी यह प्रभावकारी है। इस साझा पड़ोस में हमारी नीतियों के तालमेल ने पहले भी हमारी काफी सहायता की है और इसे भविष्य में और निकटता से जारी रखना चाहिए। दूसरा ये है कि खाड़ी व पश्चिमी एशिया में शांति व स्थिरता हमारा साझा हित है। इस क्षेत्र में रह रहे 60 लाख से अधिक भारतीयों की आजीविका और निकट संबंध, ऊर्जा आपूर्ति व सुरक्षा के विषय जुड़े हैं। इस क्षेत्र में हमारे निर्यात, शांति व स्थिरता भी भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत, सीरिया के साथ राजनैतिक समझौते में राष्ट्रपति पुतिन की भूमिका की प्रशंसा करता है और सीरिया में रासायनिक हथियारों को एक समय सीमा में नष्ट करने में रूस व अमरीका द्वारा तैयार किये गये समझौते की रूपरेखा का स्वागत करता है।
इसी तरह ईरान के परमाणु मुद्दे के शांतिपूर्ण हल के लिए कोशिशों में भारत रूसी सहयोग को महत्वपूर्ण मानता है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक समुचित, सहयोगी व नियम आधारित क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना जोकि भारत की पूर्व-मुखी नीति के केंद्र में है, को स्वरूप देने में भी भारत रूस को एक महत्वपूर्ण साझेदार मानता है। जैसे कि दुनिया का बहु-ध्रुवीकरण हो रहा है और उभरती अर्थव्यवस्थाएं मजबूत होकर उभर रही हैं बहुपक्षीय मंचों जैसे जी 20 और ब्रिक्स के चलते भारत और रूस के बीच सहयोग विशेष महत्व रखेगा। परमाणु निरस्त्रीकरण, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष सुरक्षा के मुद्दों को लेकर हमारे हित समान हैं। हम अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण सत्ता में भारत की सदस्यता और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए रूस के सहयोग की प्रशंसा करते है। मजबूत, सुरक्षित और समृद्ध रूस अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियां निभा रहा है जो विश्व और भारत के हित में है। इसके साथ ही भारत और रूस के बीच मजबूत और विस्तृत आधार वाली साझेदारी दोनों देशों के लिए बहुत लाभदायक होगी। यह यूरेशिया और उससे परे समृद्धता और स्थायित्व के लिए भी हमारी ताकत हो सकता है।