शरदचंद्र करन
योग का शाब्दिक अर्थ है-जोड़ या जुड़ जाना। प्रत्येक आत्मा जो परमात्मा का ही एक अंश है, उसका अपने मूल उद्गम से वापस जुड़ जाना ही योग है। विद्वानों और ऋषियों ने भिन्न-भिन्न कालों में समयानुकूल योग विद्या को परिभाषित किया है। वस्तुत: ऋषि क्या है? ऋषि यानि जो ऋतु की गवेषणा करता है, अर्थात प्रकृति के नियमों की खोजकर उन्हें जनसामान्य के कल्याण हेतु प्रस्तुत करता है। हम कह सकते हैं कि ऋषि एक आध्यात्मिक वैज्ञानिक है, जो आत्मसाक्षात्कार से संबंधित नियमों की खोज करता है। इसी प्रकार वैज्ञानिक एक ऋषि है, जो भौतिक जगत से संबंधित नियमों की खोज करता है।
राजयोग एक प्राचीन योग है। इसका वर्णन महर्षि पातंजलि ने योगसूत्रों के रूप में किया है। यह आठ अंगोंवाला मार्ग है, जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि के रूप में प्रचलित है। हठयोग केवल छ: अंगोंवाला मार्ग है। इसका वर्णन ऋषि घेरेंद्र, गुरू गोरखनाथ तथा गुरू मत्स्येंद्रनाथ ने किया है। यह एक मिथक है कि हठयोग एक कठिनतम आसनों की साधना है, अपितु यह उस काल का योग है, जब यम एवं नियम सामान्यत: प्रचलित आचार थे तथा समाज को इनकी शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं थी। ज्ञानयोग वह मार्ग है, जिससे योगी ज्ञान की पराकाष्ठा से अपनी मुक्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है। कर्मयोग की शिक्षा भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धस्थल पर दी। स्थितप्रज्ञ बनना कर्मयोग का आधार है। सभी प्रकार की परिस्थितियों में बिना विचलित हुए एवं कर्म की इच्छा से विलग होकर साक्षीभाव से प्रज्ञा में स्थित होकर कर्म करते जाना ही कर्मयोग का मूल सिद्धांत है। भक्तियोग साधारण व सर्वसुलभ मार्ग है, जिसके लिये किसी विशेष विधि का ज्ञान अथवा उच्च बौद्धिक क्षमता होना अनिवार्य नहीं है। अपने आराध्य में सच्ची श्रद्धा एवं समर्पण का भाव ही भक्तियोग हेतु पर्याप्त है।
सूर्ययोग अत्यंत उच्चकोटि और तीव्रतम गति का मार्ग है, जो आत्मसाक्षात्कार एवं मुक्ति के कठिन लक्ष्यप्राप्ति का अत्यंत सरल साधन है, न्यूनतम समयावधि में निश्चित परिणाम देनेवाली अत्यधिक सरल विधि है। मानव का अपनी काया के पोषण हेतु ठोस द्रव तथा गैस के स्वरूप में आहार ग्रहण करना आदि है, किंतु अग्नि या प्रकाश के रूप में आहार ग्रहण करने के विषय में विचार नहीं किया गया है। मानव जाति ने यह ज्ञान प्राप्त नहीं किया है कि प्रकाश ऊर्जा को जीवन पोषण हेतु कैसे प्रयोग किया जाए। जब तक मनुष्य अपनी देह के पोषण हेतु ठोस द्रव व गैस आहार तक सीमित रहेगा, उसकी समझ भौतिक जगत की ही सीमाओं तक सीमित रहेगी। ब्रह्मांड के अनबूझे रहस्यों के ज्ञान प्राप्ति की योग्यता प्राप्ति हेतु मनुष्य को अपने मस्तिष्क का पोषण प्रकाश जैसे उच्चकोटि के वैकल्पिक ऊर्जा भंडार से करना सीखना होगा।
प्रयोगों से यह तथ्य सिद्ध किया जा चुका है कि प्राकृतिक सूर्यप्रकाश के सेवन से रक्त में श्वेत रक्तकणिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। लिम्फोसाईट श्वेतरक्त कणिकाओं का करीब चौथाई प्रतिशत होता है। यह इंटरफेरोन नामक रस का निर्माण करता है, जो रोगाणुओं की वृद्धि रोक देता है। जब मानव शरीर सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है तो लिम्फोसाईट की संख्या में पर्याप्त वृद्धि होती है। सूर्य का प्रकाश मधुमेह रोगियों हेतु अत्यंत उपयोगी है, क्योंकि शरीर से सूर्य के प्रकाश का संपर्क रक्त में शर्करा की मात्रा को चमत्कारिक रूप से कम कर देता है। सूर्य योगियों के शरीर पर किये गए अध्ययन से यह तथ्य प्रकट हुआ है कि उनकी पिट्यूटरी हारमोन ग्रंथि में सामान्य मनुष्यों की तुलना में आकार में दोगुने तक वृद्धि हो जाती है। पिट्यूटरी मुख्य हारमोन ग्रंथि है, जो शरीर की अन्य हारमोनि ग्रंथियों को नियंत्रित करती है और शरीर को सुचारूरूप से कार्यरत रखने हेतु उत्तरदायी होती है। जो हृदयरोगी सूर्ययोग का अभ्यास करते हैं, उनके सीरम, कोलेस्ट्राल एवं ट्रिग्लीसेराईड के स्तर में उल्लेखनीय कमी आने लगती है तथा हृदय की आक्सीजन शोषण की क्षमता में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। हृदय एवं मुख्य धमनियों की दीवारें शक्ति से पूरित होने लगती हैं। हृदय की क्षमता बढ़ने लगती है। ओस्टियोपोरेसिस तथा स्वत: हड्डियां टूटने के रोगीजनों को सूर्ययोग का आश्चर्यजनक लाभ होता है और वे इस रोग की भीषणता से सर्वदा के लिए मुक्त हो जाते हैं।
नेशनल कैंसर इंस्टीच्यूट के अनुसंधानों से सिद्ध होता है कि देश के जिन भागों में देशवासी सूर्य के प्रकाश के अधिक संपर्क में होते हैं, उनमें स्तन, आंत, गर्भाशय, उदर एवं कई अन्य प्रकार के कैंसर होने की संभावना अत्यंत कम होती हैं। सूर्य की किरणों में जो पैराबैंगनी किरणें होती हैं, उनमें कई प्रकार के रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है। वस्तुत: सूर्य के प्रकाश के संपर्क की कमी से कई प्रकार के त्वचा संबंधी रोग होने की प्रबल संभावना बनी रहती है। विशेषरूप से सूर्योदय के एक घंटा तक और इसी प्रकार सूर्यास्त के एक घंटे पहले का समय, सभी के लिए सूर्य के सामने उपस्थित रहने का आदर्श समय माना जाता है, लेकिन प्रारंभिक अवस्था में सूर्ययोग के अभ्यास से इसके समय को बढ़ाया और निर्धारित किया जाता है। इसके लिए व्याख्यान एवं प्रशिक्षण आवश्यक है।
सूर्य की किरणों में ईथर के कणों की शक्ति विद्यमान होती है, जो हमारे प्राणमय शरीर को पुष्ट बनाती है। प्रात:काल निरंतर सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहने से ऋणात्मक प्रवृत्तियां जैसे क्रोध, अहंकार, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, मानसिक अवसाद इत्यादि अवगुण स्वत: समाप्त होने लगते हैं तथा हमारे स्वभाव में प्रेम, दया सद्भावना, सौहार्द, शांति, आनंद, स्वीकार्यता, सहानुभूति इत्यादि सहज सद्गुणों का समावेश होना आरंभ हो जाता है। पश्चिम के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ नोरमान रोसेंथाल के अनुसार-सूर्य के प्रकाश में मानसिक अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति से मुक्त होने की अद्भुत क्षमता है। तनाव नियंत्रण तथा मनोरोगों से मुक्ति हेतु सूर्य का प्रकाश अत्यंत प्रभावी सहायक है।
सूर्ययोग के क्षेत्र में सनयोगी हीरा रतन मानेक का नाम जाना पहचाना है। इनका जन्म 12 सितंबर, 1937 को हुआ था। इन्होंने केरल यूनीवर्सिटी से इंजीनियर स्नातक की डिग्री लेकर सामान्य गृहस्थ की तरह जीवन के 60 वर्ष व्यतीत करने के पश्चात् सूर्ययोग के क्षेत्र में अनुसंधान किया और भोजन के स्थान पर सूर्य से सीधे ऊर्जा ग्रहण करने की विधि का आविष्कार किया। हीरा रतन मानेक 18 जून, 1995 से सिर्फ पानी पीकर सूर्य की ऊर्जा पर ही जीवित हैं। इस सूर्य योगी ने 1995-96 में कालीकट नामक स्थान पर डॉ सीके रामचंद्रन की अध्यक्षता में प्रसिद्ध डाक्टरों और अनुसंधान वैज्ञानिकों के निरीक्षण में लगातार 211 दिन तक सिर्फ पानी पीकर सूर्य ऊर्जा पर जीवित रहने का प्रदर्शन किया। पुन: 2000-2001 में अहमदाबाद में डाक्टर सुधीर शाह की अध्यक्षता में 21 डाक्टरों व अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के दल निरीक्षण में लगातार 411 दिन तक केवल सूर्य ऊर्जा पर जीवित रहने का प्रदर्शन किया।
प्रहलाद जानी नामक एक संत जिनकी उम्र 83 वर्ष है और गुजरात में माताजी के नाम से जाने जाते हैं, 70 वर्ष से भोजन व पानी ग्रहण किये बिना जीवित हैं। अहमदाबाद के डॉ सुधीर शाह की अध्यक्षता में चिकित्सकों के दल के समक्ष 10 दिन तक अपनी नैसर्गिक क्षमताओं का वे प्रदर्शन कर चुके हैं। सूर्ययोगी स्वामी उमाशंकर का जन्म 22 जून, 1967 को कलकत्ता के निकट हुआ। स्वामीजी ने विद्युत इंजीनियर की डिग्री प्राप्त करने के बाद सफलतापूर्वक इलेक्ट्रानिक उपकरणों संबंधी व्यवसाय का संचालन किया। तत्पश्चात अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर समस्त संपत्ति दानकर सन्यास ग्रहण किया। इन्होंने कालांतर में सूर्ययोग की विधि को खोज निकाला। सूर्ययोगी स्वामी उमाशंकर 7 दिसंबर, 1996 से भोजन, पानी एवं निद्रा की आवश्यक्ता से मुक्त हैं तथा उच्चकोटि के योगाभ्यास हेतु हिमालय पर्वत के एक दुर्गम स्थान पर शून्य से 50 डिग्री कम तापमान पर तीन वर्ष से अधिक समय व्यतीत कर चुके हैं। अपने साथ धन या अन्य जीवनोपयोगी कोई भी सामग्री लिये बिना संपूर्ण भारत की पदयात्रा कर चुके हैं। वर्तमान में स्वामी उमाशंकर संपूर्ण विश्व के विविध देशों में सूर्ययोग के अभ्यास का निःशुल्क ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।
सूर्ययोगी अपने शरीर में स्थित सात ऊर्जा चक्रों को खोलने तथा उनकी ऊर्जा व्यवस्थापन हेतु कठिन यौगिक अभ्यास करते हैं, किंतु सूर्ययोग के अभ्यास से मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्त्रधार, सारे ऊर्जा चक्र सहज ही खुलकर अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य आरंभ कर देते हैं, इतना ही नहीं, प्राणमयकोष सहित छ: सूक्ष्म शरीरों के शुद्घिकरण का भी कार्य आरंभ हो जाता है। पंचतत्व एवं पंचप्राण शुद्धिकरण कार्य स्वत: आरंभ हो जाता है। तीसरे नेत्र का खुलना एवं कुंडलिनी जागरण सुलभ हो जाता है। चमत्कारिक, आध्यात्मिक प्रगति होने लगती है। प्रस्तुतकर्ता एक प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी हैं, सूर्ययोग पर अधिक जानकारी अथवा निःशुल्क व्याख्यान गोष्ठी या सूर्ययोग प्रशिक्षण शिविर हेतु उनसे सी-24 एचएएल कालोनी, फैजाबाद रोड, लखनऊ या दूरभाष-9235655521 और 9208541021 पर संपर्क भी किया जा सकता है।