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Wednesday 13 November 2013 09:51:19 AM
चेन्नई। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा है कि समाज सदियों से शिक्षा में विश्वास और मूल्यों पर जोर देता रहा है, अरस्तू ने सही कहा था कि ऐसी शिक्षा का कोई लाभ नहीं जिसका हृदय पर कोई असर ना हो, उसके बाद गांधीजी ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्यिक शिक्षा का तब तक कोई फायदा नहीं है, जब तक वह एक मजबूत चरित्र का निर्माण नहीं कर पाए, अगर मेरे युवा मित्र इन बातों को अपने जीवन में अपनाएं तो वे अपने आप में सुधार कर सकते हैं और साथ ही दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह बना सकते हैं।
चेन्नई में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के 175 वर्ष पूरे होने के अवसर पर अपने समापन भाषण में उन्होंने कहा कि शिक्षा का लक्ष्य मशीन जैसे लोग तैयार करना नहीं होना चाहिए, शिक्षा इस तरह की होनी चाहिए कि वह सामाजिक अंत:करण की भावना मन में बैठाए ताकि दिल और दिमाग के बीच बेहतर संतुलन कायम किया जा सके। सच्ची शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को सृजनात्मकता, जिम्मेदारी और शांतिपूर्ण तरीके से जीने की कला सिखाए और प्रत्येक व्यक्ति बेहतर समाज के लिए बदलाव का प्रतिनिधि बने।
हामिद अंसारी ने कहा कि आमतौर से यह माना जाता है कि मनुष्य सदाचारी प्राणी है, जिसके पास ऐसी क्षमता है, जो उसे काम करने के लिए जिम्मेदार बनाती है। यह क्षमता ज्ञान अथवा सोचने की शक्ति, अंत:करण अथवा सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता तथा निमित्त और चरित्र के आधार पर चयन करने लायक बनाती है। इन सभी को मिलाकर नैतिकता की स्थिति बनती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता के प्रयासों ने सदियों से मनुष्य की चेतन अथवा अचेतन अवस्था में किए जाने वाले कार्यों की क्षमताओं को जागृत किया है और समय की जरूरत के मुताबिक व्यक्तिगत अथवा सामूहिक उद्देश्यों के लिए इन्हें प्रखर किया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि 21वीं सदी में शिक्षा आधुनिक अर्थव्यवस्था, न्यायसंगत समाज और एक उत्साहपूर्ण शासन व्यवस्था विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा लोकतंत्र को मजबूत बनाती है, यह समाज में संपूर्णात्मक ताकत के रूप काम करती है। इस सदी में एक अच्छी तरह शिक्षित आबादी, जो आवश्यक जानकारी, कौशल से लैस हो वह सामाजिक आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। ऐसा अनुमान लगाया है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं यहां तक कि चीन को भी 2020 तक उच्च कौशल प्राप्त चार करोड़ श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ेगा, जबकि उच्च शिक्षा के वर्तमान अनुमानों के आधार पर भारत में 2020 में अतिरिक्त ग्रेजुएट रहेंगे, अत: भारत वैश्विक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में काम करने के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर सकता है, बशर्ते उच्च शिक्षा पर ध्यान दिया जाए और इसकी गुणवत्ता वैश्विक मानदंडों के अनुसार हो।