राजेंद्र जोशी
देहरादून। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद की लड़ाई में राजनीतिक अस्थिरता आ गई है। यह विपक्ष के कारण नहीं, बल्कि इसकी कारक खुद राज्य में सत्तारुढ़ भाजपा है जिसने अपने ही मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी को अपदस्थ करने के लिए मोर्चा खोल दिया है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा लिए भाजपा के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और उनके दूसरे विद्रोही सहयोगी नेता रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ विद्रोही भाजपा विधायकों के साथ रोज बैठकें कर रहे हैं। खंडूरी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग के साथ दबाव बनाते हुए ये दोनों दिल्ली में भाजपा हाईकमान के सामने विधायकों की परेड भी करा आए हैं। भाजपा आला कमान के नेतृत्व परिवर्तन से साफ इंकार के बाद भी कोश्यारी और निशंक का खंडूरी विरोधी अभियान जारी है। फिलहाल खंडूरी ने अपनों का विश्वास तो खोया है, फिर भी उनकी कुर्सी को खतरा नहीं दिखता है। सितंबर में यहां त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने हैं और इसके बाद भाजपा को फिर लोकसभा चुनाव का सामना करना है। इस पूरे राजनीतिक परिदृश्य को देखकर अब यही लगता है कि उत्तराखंड के आने वाले इन सभी चुनावों में भाजपा मुश्किल में होगी।
भुवन चंद खंडूरी से भाजपा विधायकों और नेताओं की नाराजगी कोई नई बात नहीं है। आज तो खैर यह अपने चरम पर है। शपथ के दिन से ही यह सब शुरू हो गया था, क्योंकि भाजपा के शक्तिशाली नेता भगत सिंह कोश्यारी समझते थे कि राज्य में विधानसभा चुनाव उनके नाम पर जीता गया है इसलिए उनके अलावा कोई और मुख्यमंत्री नहीं बनेगा, लेकिन भाजपा हाईकमान को खंडूरी भा गए और उनकी ताजपोशी कर दी गई। कुर्सी के लिए दो शक्तिशालियों के बीच की इस लड़ाई ने सबसे पहले उत्तराखंड के नगर पंचायतों के चुनाव में अपना रंग दिखाया जिसमें भाजपा को राजनीतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण कई नगर पंचायतों पर शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा। नारायण दत्त तिवारी भी हाईकमान से आए थे। कांग्रेस में अपने खिलाफ अभियान से बहुत परेशान होते रहे हैं। कांग्रेस की राजनीति में हरीश रावत उनके जगत प्रसिद्घ विरोधी माने जाते हैं यह कौन नहीं जानता। लेकिन रणनीतियों और जनता के बीच बने रह कर उन्होंने अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की, राज्य का विकास किया और जनता के भी खूब काम किए। खंडूरी साहब आते ही सिस्टम बदलने लग गए और उसके चक्कर में इतने सिमट गए कि उनका विरोध शुरू हो गया। यहां तक कि जो विरोध घर के भीतर था, वह सड़क पर फूट पड़ा जिसका खतरा आज खंडूरी की कुर्सी के लिए तो है ही, खुद भाजपा के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है। कुल मिलाकर एक बार फिर मुख्यमंत्री को हटाने को लेकर सियासत गर्मा गयी है। इस बार खण्डूरी के नेतृत्व के खिलाफ भाजपा के अधिकतर विधायक खुलकर सामने आ गये हैं।
उत्तराखंड सरकार के पांच काबीना मंत्रियों सहित 27 विधायकों ने भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मुलाकात की। खंडूरी की कार्यशैली से आहत भाजपा विधायकों के इस कदम को अब तक की सबसे प्रभावी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है लेकिन यह सत्ता परिवर्तन की हद तक शायद ही जा पाए। कोश्यारी के नेतृत्व में भाजपा के रूठे आधे से ज्यादा विधायकों ने राजनाथ सिंह सहित पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवानी, सुषमा स्वराज, अरूण जेटली आदि से मुलाकात के दौरान अपना दुखड़ा सुनाया। उस हार्डकोर मीटिंग में भाजपा के उत्तराखंड के पूर्व प्रभारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद थे। इससे एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। कोश्यारी खेमे के विधायकों ने खंडूरी के खिलाफ एक बार फिर ताल ठोक दी है। ज्यादातर विधायक भी कोश्यारी खेमे के हैं, लेकिन अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ के चलते व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के करीबी माने जाने वाले खंडूरी को मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया गया। इसके बाद कोश्यारी खेमे की खंडूरी से और दूरियां बढ़ती गई। कई दफा तो ये दूरियां सार्वजनिक मंच पर भी दिखाई दीं। बताते हैं कि कोश्यारी खेमे के सभी विधायक एक दफा पहले भी खंडूरी के नेतृत्व के खिलाफ खड़े हुए थे। लेकिन तब भाजपा आलाकमान ने उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी। सूत्रों के अनुसार इस बार स्थिति और भी विस्फोटक हो गयी है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल ’निशंक’ भी खंडूरी के खिलाफ खुलकर सामने आ गये हैं। निशंक अपनी गैरमौजूदगी में श्रीनगर मेडिकल कालेज के लोकार्पण किये जाने को लेकर मुख्यमंत्री से काफी समय से नाराज चल रहे हैं। इनके साथ भाजपा विधायकों का दिल्ली दौरा भी इसी नाराजगी का कारण माना जा रहा है। कोश्यारी को निशंक का पूरा समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के असंतुष्ट विधायकों पर विपक्ष भी खासा मेहरबान दिखाई दे रहा है। वह भाजपा विधायक दल में टूट होने और दलबदल के साथ ही वैकल्पिक सरकार की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। पंचायत चुनाव की तैयारियों में लगे राजनीतिक दल अब भाजपा विधायकों की खैर-ख्वाह में लग गये हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष डा हरक सिंह रावत पहले ही कह चुके हैं कि यदि भाजपा विधायक अपने दल से बगावत कर सरकार बनाने का दावा करते हैं, तो कांग्रेस उनकी सरकार को बाहर से समर्थन दे सकती है। अब यह अलग बात है कि यह रावत का उनका बयान है या उन्होंने यह कांग्रेस हाईकमान की ओर से बोला है। बहरहाल दिल्ली में राजनाथ सिंह से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक पांच मंत्रियों सहित 27 भाजपा विधायकों की मुलाकात ने राज्य का राजनैतिक तापमान बढ़ा दिया है। फिर भी भाजपा को तोड़ने और उससे अलग होने के प्रश्न पर इनमें कोई तैयार नहीं है जिससे यह मामला एक दबाव की राजनीति बनकर रह गया है। हां, इसका पंचायतों के त्रिस्तरीय चुनाव और लोकसभा चुनाव पर जरूर खराब से खराब असर दिखाई देगा।
भाजपा के कुछ विधायक तो किसी भी हालत में अब मुख्यमंत्री खंडूरी के नेतृत्व में काम करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे विधायकों से बातचीत करने पर पता चला है कि उनकी नाराजगी मुख्यमंत्री से कम, किंतु उनकी तिकड़ी से ज्यादा है।जिनके कारण मुख्यमंत्री विधायकों से भी और आम जनता से भी दूर होते जा रहे हैं। भाजपा के पास वर्तमान में 36 विधायक हैं और उन्हें तीन निर्दलीय विधायकों के साथ ही उक्रांद के तीनों विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। जबकि विपक्ष के नाम पर कांग्रेस के 20 तथा बसपा के 8 विधायक हैं। भाजपा विधायक दल में विघटन के दौरान दल-बदल कानून से बचने के लिए कम से कम 12 भाजपा विधायकों की आवश्यकता है। भाजपा के सात विधायकों से विपक्ष के तार जुडे़ होने और पांच अन्य विधायकों से बातचीत की की खबर भी खूब चल रही है। इनमें निर्दलीय और उक्रांद के विधायक भी साथ आते हैं तो बसपा भी संभावित सरकार का समर्थन कर सकती है। यही उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता है। भाजपा विधायक दल के अंदर चल रही इस उठा-पठक पार्टी काफी गंभीर है। भाजपा संगठन में ऐसी पार्टी विरोधी गतिविधियों पर काफी गम्भीर मंथन कर रहा है। जो भी है विभिन्न गुटों के दावे और सत्ता अभियान, भाजपा की टूट पर ही निर्भर करते हैं।
भुवन चंद खंडूरी अपनी कुर्सी बचाने के लिए कमर कसे हुए हैं। उनकी लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है। लेकिन उनकी सरकार ऐसे संकट में नहीं दिखती जैसे संकट की विपक्ष प्रतीक्षा कर रहा है। जहां तक भाजपा के असंतुष्टों के टूटने का सवाल है तो इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि इससे कोश्यारी को कोई लाभ नहीं मिलना। वैसे भी यह केवल नेतृत्व परिवर्तन से जुड़ा मामला है। भाजपा हाईकमान के लिए यह चिंता की बात तो हो ही गई है कि राज्य में पंचायत चुनाव होने हैं और आगे लोकसभा चुनाव हैं तो ऐसे वातावरण में चुनाव नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं जा पाएंगे। खंडूरी जिस तरह से चल रहे हैं उत्तराखंड के भाजपाई उसे पसंद नहीं करते। बहुत से सोचते हैं कि खंडूरी सिस्टम को सुधारना छोड़कर आज की धारा में चलें जोकि एक फौजी और वह भी खंडूरी के लिए चलना मुश्किल लगता है। भाजपा हाईकमान ने असंतुष्टों को यह साफ कह दिया बताते हैं कि वे मिल बैठकर अपने गिले शिकवे दूर करें और जो मुहिम चल रही है उसे बंद कर दें। इसलिए अब लगता है कि असंतुष्टों के दबाव में फिलहाल उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के आसार नहीं हैं। राजनीतिक अस्थिरता जरूर बनी रहेगी।