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Wednesday 20 November 2013 08:48:00 AM
हैदराबाद। बच्चों के 18वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में ‘जेंडर कंटेट-गर्ल्स मेड विजिबल’ के खुले मंच से बोलते हुए डेनमार्क के फिल्म निर्माता विबेका नोएर्गार्ड मुआसया ने कहा कि नारी मुक्ति के सभी मोर्चों पर श्रेष्ठता हासिल करने के बाद भी स्कैंडिनेवियाई देशों में महिला केंद्रीत फिल्मों की संख्या नगण्य है। मुआसया ने बताया कि इस क्षेत्र में महिला केंद्रीत फिल्मों के निर्माण में काफी कुछ किया जाना बाकी है।
अफगानिस्तान के फिल्म निर्माता सिदृक बरमाक ने जोर देकर कहा कि समाज को महिलाओं को सभी मोर्चों पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, महिलाओं को कहानी में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सिनेमा और कुछ नहीं समाज का आईना है और उनकी फिल्म समारोह में प्रदर्शन के लिए चुनी गई हैं। तायना फिल्म की निर्माता वर्जीनिया लिंबरगर ने कहा कि फिल्म में 90 प्रतिशत महिलाएं कर्मीदल के रूप में थीं। कहानी का विषय रेड इंडियन पर आधारित था, जो अपना वास्तविक मूल जानने के लिए एक योद्धा होने की इच्छा रखती है। पत्रकारिता की अध्यापक जेरू मुल्ला ने मंच की अध्यक्षता की।
बाल-रत्न तथा बालश्री पुरस्कार विजेता कुमारी किरणमई का कहना है कि 'संदेश आधारित फिल्में देखना शिक्षाप्रद होता है, माता-पिता तथा अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को शिक्षा के अलावा खेल-कूद जैसी अन्य गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।' आजकल माता-पिता पढ़ाई को अत्यधिक महत्व देते हैं और बच्चों पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं। किरणमई 17वें अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में जूरी की सदस्य थीं। उन्होंने कहा कि इस बार जिन फिल्मों का चयन किया गया है, वे संदेश आधारित, विषय आधरित तथा रोमांचक हैं। कुमारी किरणमई को उनकी चित्रकारी के लिए बाल रत्न तथा बालश्री पुरस्कारों के लिए चुना गया था। कई छात्रवृत्तियों के अलावा उनका नाम लिम्का बुक तथा अमेजन बुक में शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें कई छात्रवृत्तियां भी मिली हैं।