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अमरीका के गले की फांस हैं नरेंद्र मोदी

छद्म धर्मनिर्पेक्षवादियों के उकसावे में फंसा अमरीका

दिनेश शर्मा

Saturday 23 November 2013 09:58:20 AM

narendra modi and barack obama

अमरीका नहीं समझ पा रहा है कि भारत में उदय हो रहे नए राजनीतिक समीकरणों में वह अपने को कैसे स्‍थापित करे। भारत में अगले साल 2014 में लोकसभा चुनाव होने जा रहा है, जिसमें इस बार वहां के प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी या उसके नेतृत्‍व वाले गठबंधन एनडीए की सरकार बनने की प्रबल संभावना है और अब तक उसके लिए 'अवांछित' गुजरात के मुख्‍यमंत्री एवं देश के हिंदुओं में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेंद्र भाई मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार हैं। अमरीका के लिए इसमें दुविधा और असहज स्‍थिति यह है कि उसने भारत के कुछ छद्म धर्मनिर्पेक्षवादियों के उकसावे में आकर गुजरात दंगों का जिम्‍मेदार मानकर नरेंद्र भाई मोदी के अमरीका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा है, जो उसके गले की फांस बना हुआ है। अमरीका में ही इसको लेकर भारी गतिरोध है और अमरीकी प्रशासन पर दबाव है कि वह इसे अपनी भूल मानते हुए नरेंद्र मोदी के वीजा पर रोक को तुरंत हटाए, क्‍योंकि यह रोक अब अमरीकी हितों के खिलाफ जा रही है। अमरीका के पूर्व राष्‍ट्रपति जार्ज बुश ने तो यहां तक कहा है कि मोदी पर प्रतिबंध अमरीका की भयंकर भूल है, जो उसके लिए महंगी साबित हो सकती है। इसके बावजूद खबर है कि नरेंद्र मोदी को वीजा न जारी करने की अमरीकी नीति कायम रखने की मांग को लेकर अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसमें न केवल वीजा नीति में कोई बदलाव न करने की मांग है, अपितु उसमें भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की भी मांग की गई है।
गौरतलब है कि भारत में गुजरात प्रांत में सांप्रदायिक दंगों के कारण अमेरिका ने 2005 में गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को राजनयिक वीजा जारी करने से इंकार कर दिया था, तबसे अब तक अनेक अवसरों पर इस पर विवाद उठ चुका है और वीजा न जारी करने पर राजनीति होती आ रही है। कुछ मौके ऐसे आए जब नरेंद्र मोदी को वीजा देने के मामले में अमरीका ने अपनी नीति को बदलना चाहा, लेकिन फिर दबाव आया और अमरीका ने चुप्‍पी मार ली। इस पर अमरीका को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है। भारत में एक वर्ग ऐसा है, जो मोदी को अमरीकी वीजा का विरोध करता आ रहा है, जिसमें भारत और अमरीका के मुसलमानों और भारत में कांग्रेस के नेतृत्‍व वाले सत्‍तारुढ़ गठबंधन यूपीए के कुछ अति प्रभावशाली नेताओं एवं कुछ कूटनीतिक लांबियों का अघोषित 'खेल' है। इस 'खेल' में कुछ बड़े लोग भारत में कांग्रेस की अध्‍यक्ष सोनिया गांधी का भी नाम लेते हैं, अमरीका जिनकी कई मामलों में बात सुनता है और भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी के प्रति उसका 'सॉफ्ट कार्नर' माना जाता है। अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पेश प्रस्ताव से कई बड़े अर्थ निकलते हैं, जिनमें भारत से धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता की रक्षा की मांग की गई है और साथ ही अमेरिकी सरकार से इस मुद्दे को दोनों देशों की द्विपक्षीय सामरिक वार्ता में भी शामिल करने की मांग की गई। सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद कीथ एलिसन और विपक्षी दल रिपब्लिकन पार्टी के सांसद जो पिट्स समेत दर्जनभर सांसदों ने यह प्रस्ताव पेश किया था, बाद में यह प्रस्ताव सदन की विदेश मामलों पर एशिया और प्रशांत क्षेत्र की उप समिति को भेज दिया गया।
अमरीका में बार-बार के ऐसे प्रस्‍तावों ने राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के सामने बड़ी समस्‍याएं पैदा की हुई हैं और इससे अमरीका के हितों के नुकसान के वे विश्‍लेषण सही साबित हो रहे हैं, जो मोदी के वीजा पर प्रतिबंध के बाद विभिन्‍न राजनयिक बैठकों और अमरीकी एवं अमरीकी मूल के भारतीय समुदाय और भारत में किए जाते रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने कई बार वीडियो कांफ्रेंस से अमरीका में भारतीय मूल के कार्यक्रमों को संबोधित किया है। अमरीका में मोदी के खिलाफ झूंठा अभियान चलाने वाले अमरीका की नज़रों में बेनकाब भी हुए हैं, मगर यथास्‍थिति के बाद यही समझा गया है कि यह एक प्रायोजित अभियान है, जिसके तार भारत में शीर्ष सत्‍ता प्रतिष्‍ठान से जुड़े हैं, जिससे इस मामले में कुछ नहीं हो सकता और वैसा ही हो भी रहा है। अमरीका में नरेंद्र मोदी के प्रति जो बातें फैलाई गई थीं, वे निर्मूल मानी गई हैं, शायद यही कारण है कि अमरीकी विदेश विभाग अब कह रहा है कि यदि नरेंद्र मोदी वीजा के लिए आवेदन करते हैं, तो अमरीका अपने कानून के अनुसार उस पर विचार करेगा। उसकी वीजा राजनीति में यह बदलाव भी कोई यूं नहीं आया है, बल्‍कि भारत में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार होने के बाद देश भर में उनकी प्रचंड जनसभाओं को देखकर अमरीका ने कहना शुरू कर दिया है कि नरेंद्र मोदी वीजा के लिए आवेदन करते हैं, तो अमरीका उस पर विचार करेगा।
अमरीका यह भी कह रहा है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के साथ काम करने में उसे कोई दिक्‍कत नहीं है। दरअसल इस प्रकार के बयान देकर अमरीका एक नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर रहा है और यह नुकसान भारत की जनता में उसके विरोध के रूप में है, भारत के लिए अमरीकी नीति उसको भारत में कमजोर और चालाक साबित कर रही है। अमरीका, भारत को लेकर बड़ी गलतफहमी में जी रहा है, वह नहीं समझ पा रहा कि भारत का युवा वर्ग आज भारत का भाग्‍यविधाता है और दुनिया के रडार पर उसकी नज़र है, वह देख और जान रहा है कि अमरीका सहित दुनिया के देश आज क्‍या कर रहे हैं और उनकी भारत के प्रति क्‍या धारणा और अच्‍छी-बुरी नीति है। यही युवा वर्ग भारत के मामलों में अमरीका के हस्‍तक्षेप के मायने भी अच्‍छी तरह समझ रहा है, इसलिए उस पर अमरीका या उसकी मुंह देख वीजा नीति का कोई प्रभाव नहीं ‌दिखता है, वह आकाश मार्ग से गुज़रते जहाज को देखने के लिए आकाश की ओर नहीं देखता है, वह एक विचार और सुखद धारणा के साथ नरेंद्र मोदी के पीछे चल पड़ा है, जो आज भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंच चुके हैं।
अमरीका की नीति, एशिया के राजनेताओं के उसके प्रति रुझान और उनकी लोकप्रियता को देखकर तय होती है। एशिया में राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक स्‍थिरता अमरीका के यदि अनुकूल नहीं है, तो वह इसे बर्दाश्‍त नहीं कर पाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत और पाकिस्‍तान में उसकी मौजूदगी से अब तक अमरीका का महत्‍व तय होता रहा है, मगर अब इन दोनों देशों के जनमानस में यह भ्रम भी तेजी से टूट रहा है। भारत में पूरी तरह से विफल कमज़ोर शासन और राजनीतिक विघटन उसकी सबसे बड़ी सफलता और रणनीति है। इस समय भारत की सत्‍ता जिन हाथों में है, वे बहुत ही कमज़ोर और कई मामलों में अमरीका पर निर्भर हैं, संकटकाल में लड़खड़ाते हैं। कहा जाता है कि सच तो यह है कि भारत में कांग्रेस की अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को जितना भरोसा अमरीका पर है, उतना तो भारत पर भी नहीं है और अमरीका यह बात अच्‍छी तरह से जानता और व्‍यवहार में लाता है। भारत में इस बार कांग्रेस गठबंधन शासन का जाना लगभग तय माना जा रहा है और अमरीका भी पाला बदलकर एनडीए की तरफ जाता दिख रहा है। नरेंद्र मोदी को लेकर उसके सकारात्‍मक बयान भी आ रहे हैं, जिनमें अब उसके लिए वीजा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। नरेंद्र मोदी भी कभी अमरीका जाने को लालायित नहीं दिखे हैं, वीजा मामले में उकसाऊ राजनीति से प्रभावित अमरीका के प्रति नरेंद्र मोदी का कोई नकारात्‍मक भाव भी नहीं दिख रहा है, राष्‍ट्रीय राजनीति में उतरने और प्रधानमंत्री पद का दावेदार होने के बाद नरेंद्र मोदी में जो बदलाव देखे जा रहे हैं,उनमें एक बड़ा बदलाव यही है कि मोदी ने सबको साथ लेकर चलने की बात कहते हुए अपने को देश के सामने लक्ष्‍य के अनुरूप प्रस्‍तुत किया है।
जाहिर है कि नरेंद्र भाई मोदी को भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय में भी अनुकूलता की आवश्‍यकता है, जिसे वो कर भी रहे हैं और जिसमें यूरोप ने खासी दिलचस्‍पी ली है। ब्रिटेन तो एक तरह से खुलकर ही नरेंद्र मोदी को देश का अगला प्रधानमंत्री मान चुका है और उसने दूसरे देशों के लिए भी ऐसा संदेश छोड़ दिया है। अमरीका के लिए यह संदेश काफी है। यूरोप का भी मानना है कि भारत एक शक्‍तिशाली लोकतंत्र और देश के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है, जिसमें कौन प्रधानमंत्री हो यह उतना महत्‍वपूर्ण विषय नहीं है, बल्‍कि नेतृत्‍व कितना क्षमतावान और शक्‍तिशाली है, ये ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है। भारत के राजनेताओं में तुलनात्‍मक रूप से इस मामले में नरेंद्र भाई मोदी का पलड़ा शुरू से ही भारी चल रहा है। अमरीका को अच्‍छी तरह इसका भान है, किंतु वह भारत के प्रति अपनी नीति पर अड़ियल बने रहने के लिए मजबूर है। वह जानता है कि भारत के बगैर उसके बड़े उद्देश्‍य अधूरे हैं, भले ही उसके पास सुरक्षा परिषद सहित सब-कुछ है और भारत अभी इसके जैसे मंच पर नहीं है। ये स्‍थितियां नरेंद्र मोदी के आने के बाद निश्‍चित रूप से भारत के लिए महत्‍वहीन साबित होंगी, क्‍योंकि भारत में भाजपा या उसके गठबंधन एनडीए की सरकार आने के बाद विदेशनीति सहित कई नीतियां बदलेंगी, जिनसे अमरीका काफी हद तक प्रभावित होगा और ये नीतियां या तो अमरीका को भारत का अभिन्‍न मित्र बना देंगी या फिर अमरीका को अलग-थलग कर देंगी, शायद यही इशारा अमरीका के पूर्व राष्‍ट्रपति जार्ज बुश बार-बार कर रहे हैं।
भारत दुनिया का आज सबसे बड़ा बाजार है। चीन जापान जैसे देश भारतीय बाजार में अपने को स्‍थापित करने में लगे हैं। ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। अमरीका और उसका कारपोरेट भी भारत में निवेश के लिए जी-जान से लगे हैं और वे भारत में निवेश के लिए स्‍थिर माहौल चाहते हैं। नरेंद्र मोदी ने गुजरात राज्‍य के विकास के लिए कारपोरेट को सबसे ज्‍यादा आशांवित और प्रभावित किया है और निवेश एवं विकास का वातावरण दिया है। दूसरी ओर एक प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री मनमोहन सिंह के हाथ में साढ़े नौ साल से भारत की बागडोर है, किंतु भारत अर्थव्‍यवस्‍था और विदेशी पूंजी निवेश के मामले में कोई प्रगति नहीं कर पाया है। देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मामले में भी यहां की जनता भारत सरकार से बड़ी निराश है। भ्रष्‍टाचार और युवाओं की उपेक्षा से लोगों का यूपीए सरकार से मोहभंग है।
भारत में आतंकवाद, सुरक्षा भ्रष्‍टाचार और विकास, देश की विदेश नीति जैसे बड़े मुद्दे नरेंद्र मोदी के एजेंडे में हैं, जिन पर उन्‍हें भारत की जनता का बड़ा भारी समर्थन मिल रहा है। ये वो मुद्दे हैं, जो विश्‍व समुदाय की भी पसंद हैं। विश्‍व समुदाय नरेंद्र मोदी को भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगा है, किंतु अमरीका के मन में क्‍या है, यह फिलहाल पता नहीं है। भारत की पुरानी और नई स्‍थिति में जो परिर्वतन दिख रहा है, उसमें अमरीका कहीं देखता न रह जाए यह अमरीकियों की नई चिंता है, क्‍योंकि भारत को परेशान करने वाले पाकिस्‍तान और कश्‍मीर मुद्दे का इलाज नरेंद्र मोदी के पास है। भारत में आतंकवाद पर अमरीका का लीपापोती का रवैया और भारत की इस नई ताकत की उपेक्षा अमरीका के लिए चुनौती बढ़ाती ही जा रही है। माना जा रहा है कि इस सबको बहुत हल्‍के में लेने की अमरीका भयंकर भूल तो कर ही रहा है।

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