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Tuesday 14 January 2014 09:46:53 PM
सूरत। विश्व हिंदू परिषद के प्रन्यासी मंडल ने केंद्रीय प्रन्यासी मंडल एवं प्रबंध समिति की बैठक में भारत में कुछ असामाजिक व्यक्तियों के कुकृत्यों देखकर अत्यंत चिंता जताई है। बैठक में पारित एक प्रस्ताव में प्रन्यासी मंडल का कहना है कि आज समाज में दुष्कर्म, भ्रष्टाचार एवं विषमता का दौर चल रहा है। मानव, कुकर्मी एवं अर्थप्रिय बनकर धर्म-संस्कृति की श्रेष्ठताओं से परे हटकर अपसंस्कृतियुक्त बना राष्ट्र की पावन धाराओं को प्रदूषित कर रहा है। भारत की महान संस्कृति 'मातृवत परदारेषु' की रही है। इस देश का वासी 'परद्रव्येषु लोष्ठवत्' मात्र मानता ही नहीं था, बल्कि इन मूल्यों के अनुसार जीवन में व्यवहार भी करता था।
प्रस्ताव में कहा गया है कि देश में भ्रष्टाचार, दुराचार और शोषण की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी, क्योंकि प्रत्येक आबाल-वृद्ध 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की मान्यता द्वारा प्रत्येक देशवासी को अपना आत्मीय मानकर सभी के साथ भगवत्-भाव से जीता था, परन्तु वर्तमान के तकनीकि उपकरणों से जहां श्रेष्ठ जानकारियां प्राप्त हो रही हैं, वहीं ये उपकरण छोटे-बड़े सभी मानवों में उच्छृंखल भावों को भड़का रहे हैं। इससे भारतवासी प्रत्येक स्त्री में मां का दर्शन कर उसे सम्मानित व श्रद्धावनत होता था, इन उपकरणों से प्रसारित प्रदूषण ने उसे दुराचार की हद तक पहुंचा दिया है। आज तो दैवीरूपा कन्याएं भी सुरक्षित नहीं हैं। जनमन सांस्कृतिक व सामाजिक मान-मर्यादाओं से हटकर पतनोन्मुख बना दिखाई देता है।
यह बैठक 31 दिसंबर 2013 से 2 जनवरी 2014 सूरत (गुजरात) में 'महाराजा अग्रसेन भवन' में हुई। बैठक में और भी कई प्रस्ताव पारित किए गए। प्रन्यासी मण्डल की मान्यता है कि इस भयानक पतन से देशवासी को बचाना है तो शिक्षा-संस्कारों से श्रेष्ठ मूल्यों को शैशव अवस्था से ही पुन: प्रतिष्ठित करना होगा। विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में इन मूल्यों से संबंधित सामग्रियों को जोड़ना होगा। पश्चिमी संस्कृति का आक्रमण देशवासी की वेशभूषा, खानपान, दृश्य दर्शन पर है, इसके साथ इसाई मिशनरी और अनेक संस्थाओं द्वारा संचालित इंग्लिश मीडियम विद्यालयों में भी पश्चिमीकरण का जो दौर चल रहा है, उसे नियमपूर्वक संपूर्ण रूप से नियंत्रित करना होगा। प्रत्येक भारतीय को अपने-अपने घरों को संस्कार मंदिर के रूप में परिणित करना होगा। आधुनिक साधनों को भी हिंदू संस्कृति व मानवीय मूल्यों के प्रचार की जिम्मेदारी लेनी होगी व परंपरागत प्रवचन, कथा-कीर्तनों में भी आग्रहपूर्वक श्रेष्ठ मूल्यों के विषयों को जोड़ना होगा।
प्रन्यासी मंडल ने समाज से अपेक्षा की है कि उसकी मातृशक्ति भी अपनी कन्याओं में स्वाभिमान जागृत करे और शिक्षित बनने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करे, संपूर्ण घर-परिवार में सत्संग का वायुमंडल निर्माण कर सभी को संस्कारित बनाए। अनाचारी, गुंडा तत्वों का सामना करने का साहस और प्रतिकार करने की हिम्मत भी नारियों व कन्याओं में जगाए। इसके अलावा हर कन्या को कठोर संयमी एवं भावी गृहस्थी बनने तक सुकन्या बने रहने की शिक्षा भी दें, सद्गृहस्थ जीवन के आदर्श भी उनके सामने रखें। इस मार्गदर्शन से एक कन्या वीरांगना और ज्ञान गरिमा के साथ सुशिक्षित बन राष्ट्रीय कर्तव्य पूर्ति में पुरुषों के साथ कदम मिलाकर चल सकेगी और भारत माता के पूजा की थाली में सम्मिलित होकर मां की आरती में अपना स्वर गुंजायमान कर सकेगी।
प्रन्यासी मंडल ने भारत के नेतृत्व से आग्रह किया है कि आदर्शहीनता को त्यागकर भारतीय मूल्यों पर विश्वास रखकर देश में भावी पीढ़ी का त्यागपूर्वक नेतृत्व करे और सामाजिक प्रदूषण व अपसंस्कृति निर्माणकारी सभी व्यवस्थाओं को मूल्याधिष्ठित करे तभी और तभी नारी माँ रूप में, प्रत्येक कन्या दैवी रूप में तथा प्रत्येक भारतवासी यथार्थ आत्मीय रूप में व्यवहारकर्ता बनेगा, जिससे यह भारत पुन: विश्व के सामने सच्चे अर्थ में हिंदू संस्कृति युक्त श्रेष्ठ राष्ट्र रूप में स्थापित हो सकेगा।