स्वतंत्र आवाज़
word map

भ्रष्‍टाचार से देश में भारी गुस्सा-राष्‍ट्रपति

'सत्ता प्राप्त करने के लिए जनता से झूंठे वादे न करें'

'भारत की जनता देश में स्थिर सरकार के लिए करे मतदान'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 26 January 2014 06:42:57 AM

pranab mukherjee addressing the nation

नई दिल्‍ली। भारत के पैंसठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश-विदेश में बसे सभी भारतीयों, देश की सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों को बधाई देते हुए राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि भारतीय संविधान के व्यापक प्रावधानों से भारत एक सुंदर, जीवंत तथा कभी-कभार शोरगुल युक्त लोकतंत्र के रूप में विकसित हो चुका है, हमारे लिए लोकतंत्र कोई उपहार नहीं है, बल्कि हर एक नागरिक का मौलिक अधिकार है, जो सत्ताधारी हैं, उनके लिए लोकतंत्र एक पवित्र भरोसा है और जो इस भरोसे को तोड़ते हैं, वह राष्ट्र का अनादर करते हैं। उन्‍होंने कहा कि देश में कुछ निराशावादी लोकतंत्र के लिए हमारी प्रतिबद्धता का मखौल उड़ाते हैं, यदि कहीं खामियां नजर आती हैं तो यह उनके कारनामे हैं, जिन्होंने सत्ता को लालच की पूर्ति का मार्ग बना लिया है, यदि हमें कभी सड़क से हताशा के स्वर सुनाई देते हैं तो इसका कारण है कि पवित्र भरोसे को तोड़ा जा रहा है, जब हम देखते हैं कि हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को आत्मतुष्टि तथा अयोग्यता से कमजोर किया जा रहा है, तब हमें गुस्सा आता है और यह स्वाभाविक है।
राष्‍ट्रपति ने कहा कि हर एक भारतीय गणतंत्र दिवस का सम्मान करता है, चौंसठ वर्ष पूर्व इसी दिन हम भारत के लोगों ने आदर्श तथा साहस का शानदार प्रदर्शन करते हुए सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता तथा समानता प्रदान करने के लिए स्वयं को एक संप्रभुता संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य सौंपा था, हमने सभी नागरिकों के बीच भाई-चारा, व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता को बढ़ावा देने का कार्य अपने हाथ में लिया था, ये आदर्श आधुनिक भारतीय राज्य के पथ-प्रदर्शक बने। शांति की ओर तथा दशकों के औपनिवेशिक शासन को गरीबी से निकालकर पुनरुत्थान की दिशा में ले जाने के लिए लोकतंत्र हमारा सबसे मूल्यवान मार्गदर्शक बन गया। उन्‍होंने कहा कि भ्रष्टाचार ऐसा कैंसर है, जो लोकतंत्र को कमजोर करता है तथा हमारे राज्य की जड़ों को खोखला करता है, यदि भारत की जनता गुस्से में है, तो इसका कारण है कि उसे भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी दिखाई दे रही है, यदि सरकारें इन खामियों को दूर नहीं करतीं तो मतदाता सरकारों को हटा देंगे।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इसी तरह सार्वजनिक जीवन में पाखंड का बढ़ना भी खतरनाक है, चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते हैं, जो लोग मतदाताओं का भरोसा चाहते हैं, उन्हें केवल वही वादा करना चाहिए जो संभव है, सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है, लोकलुभावन अराजकता, शासन का विकल्प नहीं हो सकती, झूंठे वायदों की परिणति मोहभंग में होती है, जिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है-सत्ताधारी वर्ग। उन्‍होंने कहा कि यह क्रोध केवल तभी शांत होगा, जब सरकारें वह परिणाम देंगी, जिनके लिए उन्हें चुना गया था अर्थात सामाजिक और आर्थिक प्रगति और कछुए की चाल से नहीं, बल्कि घुड़दौड़ के घोड़े की गति से। महत्वाकांक्षी भारतीय युवा उसके भविष्य से विश्वासघात को क्षमा नहीं करेंगे, जो लोग सत्ता में हैं, उन्हें अपने और लोगों के बीच भरोसे में कमी को दूर करना होगा, जो लोग राजनीति में हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि हर एक चुनाव के साथ एक चेतावनी जुड़ी होती है, परिणाम दो अथवा बाहर हो जाओ।
राष्‍ट्रपति ने कहा कि मैं निराशावादी नहीं हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि लोकतंत्र में खुद में सुधार करने की विलक्षण योग्यता है, यह ऐसा चिकित्सक है, जो खुद के घावों को भर सकता है और पिछले कुछ वर्षों की खंडित तथा विवादास्पद राजनीति के बाद 2014 को घावों के भरने का वर्ष होना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पिछले दशक में भारत, विश्व की एक सबसे तेज़ रफ्तार से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, हमारी अर्थव्यवस्था में पिछले दो वर्ष में आई मंदी कुछ चिंता की बात हो सकती है, परंतु निराशा की स्थिति बिल्कुल नहीं है, पुनरुत्थान की हरी कोपलें दिखाई देने लगी हैं, इस वर्ष की पहली छमाही में कृषि विकास की दर बढ़कर 3.6 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था उत्साहजनक है। उन्‍होंने कहा कि वर्ष 2014 हमारे इतिहास में एक चुनौतीपूर्ण क्षण है, हमें राष्ट्रीय उद्देश्य तथा देशभक्ति के उस जज्बे को फिर से जगाने की जरूरत है, जो देश को अवनति से ऊपर उठाकर उसे वापस समृद्धि के मार्ग पर ले जाए। युवाओं को रोज़गार दें, वे गांवों और शहरों को 21वीं सदी के स्तर पर ले आएंगे। उन्हें एक मौका दें और आप उस भारत को देखकर दंग रह जाएंगे, जिसका निर्माण करने में वे सक्षम हैं।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि यदि भारत को स्थिर सरकार नहीं मिलती तो यह मौका नहीं आ पाएगा। इस वर्ष हम अपनी लोकसभा के 16वें आम चुनावों को देखेंगे, ऐसी खंडित सरकार, जो मनमौजी अवसरवादियों पर निर्भर हो, सदैव एक अप्रिय घटना होती है, यदि 2014 में ऐसा हुआ तो यह अनर्थकारी हो सकता है, हममें से हर एक मतदाता है, हममें से हर एक पर भारी जिम्मेदारी है, हम भारत को निराश नहीं कर सकते, अब समय आ गया है कि हम आत्ममंथन करें और काम पर लगें। उन्‍होंने कहा कि भारत केवल एक भौगोलिक क्षेत्र ही नहीं है, यह विचारों का, दर्शन का, प्रज्ञा का, औद्योगिक प्रतिभा का, शिल्प का, नवान्वेषण का तथा अनुभव का भी इतिहास है। भारत के भाग्योदय को कभी आपदा ने धोखा दिया है और कभी हमारी अपनी आत्मतुष्टि तथा कमजोरी ने। नियति ने हमें एक बार फिर से वह प्राप्त करने का अवसर दिया है, जो हम गवां चुके हैं, यदि हम इसमें चूकते हैं तो इसके लिए हम ही दोषी होंगे और कोई नहीं। उन्‍होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश सदैव खुद से तर्क-वितर्क करता है। यह स्वागत योग्य है, क्योंकि हम विचार-विमर्श और सहमति से समस्याएं हल करते हैं, बल प्रयोग से नहीं, परंतु विचारों के ये स्वस्थ मतभेद, हमारी शासन व्यवस्था के अंदर अस्वस्थ टकराव में नहीं बदलने चाहिएं।
राष्ट्रपति ने कहा कि इस बात पर आक्रोश है कि क्या हमें राज्य के सभी हिस्सों तक समतापूर्ण विकास पहुंचाने के लिए छोटे-छोटे राज्य बनाने चाहिएं? बहस वाजिब है, परंतु यह लोकतांत्रिक मानदंडों के अनुरूप होना चाहिए। फूट डालो और राज करो की राजनीति हमारे उपमहाद्वीप से भारी कीमत वसूल चुकी है, यदि हम एकजुट होकर कार्य नहीं करेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा। भारत को अपनी समस्याओं के समाधान खुद ढूंढने होंगे, हमें हर तरह के ज्ञान का स्वागत करना चाहिए, यदि हम ऐसा नहीं करते तो यह अपने देश को गहरे दलदल के बीच भटकने के लिए छोड़ने के समान होगा, हमें अविवेकपूर्ण नकल का आसान विकल्प नहीं अपनाना चाहिए, क्योंकि यह हमें भटकाव में डाल सकता है, भारत के पास सुनहरे भविष्य का निर्माण करने के लिए बौद्धिक कौशल, मानव संसाधन तथा वित्तीय पूंजी है, हमारे पास नवान्वेषी मानसिकता संपन्न, ऊर्जस्वी सिविल समाज है, हमारी जनता, चाहे वह गांवों में हो अथवा शहरों में, एक जीवंत, अनूठी चेतना तथा संस्कृति से जुड़ी है। हमारी सबसे शानदार पूंजी है मनुष्य।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि शिक्षा, भारतीय अनुभव का अविभाज्य हिस्सा रही है, मैं केवल तक्षशिला अथवा नालंदा जैसी प्राचीन उत्कृष्ट संस्थाओं के बारे में ही नहीं, वरन् हाल ही की 17वीं और 18वीं सदी की बात कर रहा हूं, आज हमारे उच्च शिक्षा के ढांचे में 650 से अधिक विश्वविद्यालय तथा 33000 से अधिक कॉलेज हैं, अब हमारा ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता पर होना चाहिए, हम शिक्षा में विश्व की अगुआई कर सकते हैं, बस यदि हम उस उच्च शिखर तक हमें ले जाने वाले संकल्प तथा नेतृत्व को पहचान लें, शिक्षा अब केवल कुलीन वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है, वरन् सबका अधिकार है, यह देश की नियति का बीजारोपण है, हमें एक ऐसी शिक्षा क्रांति शुरू करनी होगी जो राष्ट्रीय पुनरुत्थान की शुरुआत का केंद्र बन सके। उन्होंने कहा कि मैं जब यह दावा करता हूं कि भारत विश्व के लिए एक मिसाल बन सकता है, तो मैं न तो अविनीत हो रहा हूं और न ही झूठी प्रशंसा कर रहा हूं, क्योंकि जैसा कि महान ऋषि रबींद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि वास्तव में मानव मन तभी बेहतर ढंग से विकसित होता है, जब वह भय रहित हो, ज्ञान की खोज में अज्ञात क्षेत्रों में विचरण करने के लिए स्वतंत्र हो और जब लोगों के पास प्रस्ताव देने का और विरोध करने का मौलिक अधिकार हो।
राष्ट्रपति ने कहा कि इससे पहले कि मैं हमारे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आपको फिर से संबोधित करूं, नई सरकार बन चुकी होगी, आने वाले चुनाव को कौन जीतता है, यह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना यह बात कि चाहे जो जीते उसमें स्थाईत्व, ईमानदारी तथा भारत के विकास के प्रति अटूट प्रतिबद्धता होनी चाहिए, हमारी समस्याएं रातों-रात समाप्त नहीं होंगी, हम विश्व के एक ऐसे उथल-पुथल से प्रभावित हिस्से में रहते हैं, जहां पिछले कुछ समय के दौरान अस्थिरता पैदा करने वाले कारकों में बढ़ोतरी हुई है, सांप्रदायिक शक्तियां तथा आतंकवादी अब भी हमारी जनता के सौहार्द तथा हमारे राज्य की अखंडता को अस्थिर करना चाहेंगे, परंतु वे कभी कामयाब नहीं होंगे, हमारे सुरक्षा तथा सशस्त्र बलों ने मजबूत जन-समर्थन की ताकत से यह साबित कर दिया है कि वह उसी कुशलता से आंतरिक दुश्मन को भी कुचल सकते हैं, जिससे वह हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं। ऐसे बड़बोले लोग जो हमारी रक्षा सेवाओं की निष्ठा पर शक करते हैं, गैर जिम्मेदार हैं तथा उनका सार्वजनिक जीवन में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की असली ताकत उसके गणतंत्र में, उसकी प्रतिबद्धता के साहस में, उसके संविधान की दूरदर्शिता में तथा उसकी जनता की देशभक्ति में निहित है। वर्ष 1950 में हमारे गणतंत्र का उदय हुआ था और मुझे विश्वास है कि 2014 पुनरुत्थान का वर्ष होगा।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]