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Monday 23 June 2014 03:15:23 PM
अहमदाबाद। ‘रानी की वाव’ के शिलालेख को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की घोषणा की गई है। दोहा, कतर में इस समय चल रहे यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के सत्र में यह मान्यता प्रदान की गई। यूनेस्को ने इसे तकनीकी विकास का एक ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण मानते हुए मान्यता प्रदान की है, जिसमें जल-प्रबंधन की बेहतर व्यवस्था और भूमिगत जल का इस्तेमाल इस खूबी के साथ किया गया है कि व्यवस्था के साथ इसमें एक सौंदर्य भी झलकता है।
‘रानी की वाव’ 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है, जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है। यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुंदर नमूना है। यह एक काफी बड़ी और जटिल सरंचना वाली बावली है, जिसमें शिल्पकला से सजीं सात मंजिला सुंदर पट्टियां हैं जो मारू-गुर्जरा शैली की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती हैं। भू-गर्भीय परिवर्तनों के कारण आने वाली बाढ़ और लुप्त हुई सरस्वती नदी के कारण यह बहुमूल्य धरोहर तकरीबन सात दशकों तक गाद की परतों तले दबी रही। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे बड़े ही अनूठे तरीके से संरक्षित करके रखे रखा। इस बावली से संबंधित पूरे विवरण को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, सीवाईएआरके और स्कॉटिश टेन ने आपसी सहयोग से डिजिटल रूप में संभाल कर रख लिया है।
फरवरी 2013 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसे विश्व धरोहर सूची के लिए नामांकित किया था, ‘रानी की वाव’ को नामांकित करने की प्रक्रिया और इस संपत्ति के प्रबंधन के लिए अपनाई गई रणनीति यूनेस्को के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही अपनाई गई है। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और गुजरात सरकार ने मिलकर काम किया। गुजरात सरकार ने ‘रानी की वाव’ के आसपास के क्षेत्र को भी विकास योजना में संरक्षित बनाए रखने को समर्थन दिया है। राज्य सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के साथ मिलकर ‘रानी की वाव’ के आसपास और ऐतिहासिक सहस्रलिंग तालाब के आसपास के खुदाई वाले क्षेत्र और निकट के दूसरे क्षेत्र को भी विकास योजना में भविष्य के लिए संरक्षित घोषित किया है।
‘रानी की वाव’ के आस-पास के क्षेत्र को भी स्थानीय विकास योजना में संरक्षित बनाए रखना देशभर के ऐतिहासिक महत्व के स्थानों को स्थानीय विकास योजनाओं से जोड़ने का एक अच्छा उदाहरण है, जिसे देशभर के अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों के संबंध में भी अपनाया जाना चाहिए। ‘रानी की वाव’ ऐसी इकलौती बावली है, जो विश्व धरोहर सूची में शामिल हुई है, जो इस बात का सबूत है कि प्राचीन भारत में जल-प्रबंधन की व्यवस्था कितनी बेहतरीन थी। भारत की इस अनमोल धरोहर को विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाने में पाटण के स्थानीय लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान है, जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और राज्य सरकार को हर कदम पर अपना पूरा सहयोग दिया है।