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Tuesday 28 July 2015 01:36:08 AM
देहरादून। संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर जाखन देहरादून की एक दिवसीय कार्यशाला में मातृत्व सुख और गर्भपात की समस्याओं पर महत्वपूर्ण जानकारियां दी गईं। कार्यशाला में 100 से अधिक मेडिकल छात्रों, किशोरियों और महिलाओं ने शिरकत की। कार्यशाला की मुख्य वक्ता इंदिरा गांधी नेशनल अवार्ड से सम्मानित स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ सुजाता संजय ने कहा कि गर्भावस्था के 24 हफ्तों के अंदर शिशु के ह्रास को गर्भपात कहते हैं, मां बनना एक तकलीफदेह है, लेकिन यह एक सुखद एहसास भी है, अगर गर्भवती महिलाएं सतर्क रहें तो समय रहते लक्षणों को पहचानकर गर्भपात के खतरे से बचा जा सकता है। मैटरनिटी सेंटर के मैनेजर डॉ प्रतीक संजय ने बताया कि पिछले सात साल में शहर के आस-पास एवं दूरदराज के क्षेत्रों में मैटरनिटी सेंटर ने बहुत से नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए, जिनमें करीब तीन हजार रोगियों ने स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाया।
डॉ सुजाता संजय के अनुसार जब महिला पहली बार मां बनती है तो उसे गर्भावस्था के बारे में कुछ नहीं पता होता, वह गर्भावस्था को लेकर खुश और उत्साहित तो होती है, लेकिन अपना और गर्भ में बच्चे का कैसे ध्यान रखना है, यह जानकारी उसे नहीं होती, अपनी ओर से पूरा ध्यान रखने के बावजूद कई बार दुर्भाग्यवश गर्भपात हो जाता है, ऐसे में महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है कि वह गर्भपात के संकेतों को पहचानें और समय रहते डॉक्टर से संपर्क कर लें। डॉ सुजाता संजय ने सेमीनार में बताया कि यह एक अफसोस की बात है कि गर्भपात का गर्भावस्था परीक्षण के बाद पता चलता है। उन्होंने बताया कि एक शोध के अनुसार पांच में से एक गर्भवती महिला में गर्भपात होने की संभावना होती है। डॉ सुजाता संजय ने कहा कि यह देखा गया है कि कुछ स्वस्थ महिलाओं को भी गर्भपात होता है, कुछ महिलाओं में गर्भपात के बारे में नियमित प्रसवपूर्व मुलाकात के दौरान पता चलता है, जब डॉक्टर को शिशु की धड़कन नहीं मिलती, इसे मिस्ड मिस्कैरेज कहा जाता है।
डॉ सुजाता संजय ने कहा कि कभी-कभी महिलाओं को प्रसवपूर्व जांच के लिए जाने तक पता नहीं होता है कि उनका गर्भपात हो गया है, यदि गर्भपात हो गया है तो उसका पता अल्ट्रासाउंड से ही चल सकता है, गर्भपात के मुख्य कारणों में असामान्य क्रोमोजोम, वायरस के इंफैक्शन और एडोक्राइन की बीमारियां होती हैं। इसके अलावा यौन संचारित संक्रमण जैसे कि क्लैमाइडिया या फिर और पॉलीसिस्टिक अंडाशय का दोष, धूम्रपान, मदिरापान और कोकीन, जैसे ड्रग्स एवं कैफीन या कॉफी गर्भपात का कारण बन सकते हैं। अधिक वजन होना, मधुमेह या थॉयराइड का अनियंत्रित होना, चिपचिपाता खून (स्टिकी रक्त सिंड्रोम) या एंटी फोस्फो लिपिड सिंड्रोम (APS½ जो रक्त वाहिकाओं में जो रक्त के थक्के बनाने लगता है, गर्भपात के कारण हो सकते हैं। साधारण बुखार, मलेरिया होना तथा गर्भवती महिला का पेट के बल नीचे गिरना भी गर्भपात की संभावना को बढ़ा देती है। आमिनोसेंटेसिस से महिलाओं का गर्भपात हो सकता है। सीवीएस, जो गर्भावस्था के लगभग 12वें हफ्ते में की जाती है, एक और दो प्रतिशत महिलाओं में गर्भपात का कारण बन सकता है।
डॉ सुजाता संजय ने कहा कि गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में के निचले हिस्से में दर्द होना, बार-बार पेशाब के लिए जाना और पेशाब करते समय निचले हिस्से में दर्द होना, सफेद और गुलाबी रंग का बहुत ज्यादा डिस्चार्ज होना, भ्रूण का मूवमेंट बंद होना गर्भपात के लक्षण होते हैं, ऐसे में तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। वजन में गिरावट आना, ब्रेस्ट का कड़ा होना, मितली आना, हाईब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी में समस्या भी गर्भपात के लक्षण हैं। गर्भावस्था के दौरान पहले तीन महीने महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं, इस दौरान उन्हें यह ध्यान रखना जरूरी हो जाता है कि वे जो कुछ भी खाएंगी, वह उनके मुंह और फेफड़ों से गर्भ में पल रहे उनके बच्चे तक पहुंचेगा, बाद का गर्भपात लगभग 1 प्रतिशत महिलाओं में होता है, कुछ महिलाओं को बार-बार होने वाले गर्भपात के दर्द का अनुभव करना पड़ता है, उनमें तीन से अधिक गर्भपात एक के बाद एक लगातार होते हैं।
गर्भपात के बाद की ज्यादातर समस्याएं गर्भपात के 12 सप्ताह के अंदर होती हैं, अगर गर्भपात में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई है तो थोड़ी सी ब्लीडिंग के बाद महिला का शरीर सामान्य हो जाता है, लेकिन कई बार गर्भपात के बाद समस्याएं बढ़ती जाती हैं और अगली बार गर्भधारण करने में भी परेशानी होती है, अगर गर्भपात होने के बाद विशेष लक्षण जैसे-योनि से बदबूदार चिपचिपा पदार्थ निकलना, तेज बुखार होना, पेट में दर्द, ज्यादा और लगातार ब्लीडिंग होना, ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। जिस महिला का गर्भपात हुआ हो, उसे 6 महीने तक दोबारा गर्भधारण करने से बचना चाहिए। वही अधिक उम्र की जो महिलाएं गर्भपात होने के तुरंत बाद गर्भवती होना चाहती है तो उन्हें हतोत्साहित नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्हें गर्भपात होने का खतरा भी ज्यादा होता है, ऐसे में अगर उनसे गर्भधारण के लिए इंतजार कराया जाण्, तो गर्भावस्था सफल होने की उम्मीदें कम हो जाती हैं। इस बारे में अपने डॉक्टर से मिल कर सलाह लेनी चाहिए।
डॉ सुजाता संजय ने कार्यशाला में कहा कि इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए, कि अगर गर्भपात ठीक से नहीं हुआ है तो बच्चेदानी में कुछ टिश्यू रह जाते हैं। ऐसे में डी एंड सी आवश्यक होता है, अन्यथा अगली बार फिर से गर्भपात होने का खतरा रहता है। ऐसे बच्चेदानी में इन्फेक्शन होने का खतरा भी बढ़ जाता है। डॉ सुजाता संजय का मानना है कि कामकाजी महिलाओं में गर्भपात की समस्या ज्यादा होती है, अगर सावधान रहें और थोड़ा परहेज करें तो महिलाएं इससे बच सकती हैं। ऐसी महिलाएं मिस्कैरेज की संभावनाओं को काफी हद तक कम कर सकती हैं। जिन कारणों से गर्भपात होने की संभावनाएं होती हैं, उन सब बातों से सतर्कता बरते। गर्भावस्था में हल्के व्यायाम करें, बस किसी भी उच्च प्रभाव खेल से दूर रहे, जिसमें पेट के बल गिरने का डर या फिर झटका लगने का डर हो। गर्भावस्था के दौरान संतुलित एवं सुपाच्य आहार लें, गिरने एवं फिसलने से बचें, वजन ना उठाएं, पेट पर जोर न दें अपने सुरक्षित गर्भ की दृष्टि से महिलाओं को इस दौरान तब तक एक्स-रे और सीटी स्कैन नहीं कराना चाहिए, जब तक कि डॉक्टर न कहें। इस तरह से इन सब बातों का ध्यान रखकर महिलाएं काफी हद तक गर्भपात की आशंका कम कर सकती हैं।
कार्यशाला के दौरान ख्याति प्राप्त डॉ बीके एस संजय ने कैल्शियम के बारे में अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान होने वाली बीमारियों में कैल्शियम की कमी एक मुख्य कारण है जो कि बाद में एक जटिल रूप ले लेती है। गर्भावस्था में कैल्शियम की कमी से पेलविक बोन कमजोर हो जाने के कारण टेढ़ी हो जाती है, जिससे सरल प्रसव होना अस्वाभाविक हो जाता है, इस स्थिति में सिजेरियन ही होता है, साथ ही इसका प्रभाव उसके गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है। गर्भवती महिलाओं को घर में फिसलने से एवं यात्रा करने से बचना चाहिए, क्योंकि यात्रा के के दौरान झटके लगने की संभावना ज्यादा होती है, जिस कारण गर्भपात जैसी समस्या आ जाती है। डॉ बीके एस संजय ने बताया कि गर्भवस्था के दौरान कैल्शियम, विटामिंस, फॉलिक एसिड, आयरन एवं मल्टी विटामिंस युक्त भोज्य पदार्थ दूध, दूध से बनी हुई चीजें, ताजे मौसमी फल एवं मोटे अनाज ज्वार, बाजरा एवं रागी की रोटी का प्रचुर मात्रा में सेवन करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि प्रसव के उपरांत शिशु और मां दोनों को दूध का सेवन कम से कम छ: माह तक अवश्य करना चाहिए, ताकि कैल्शियम की कमी के दुष्प्रभाव से दोनों ही बच सके। कैल्शियम की कमी से बच्चों में रिकट्स एवं माताओं में आस्टीयो मलेशिया होने की संभावना बढ़ जाती है। नि:शुल्क शिविरों को सफल बनाने में समाज तथा स्टाफ के योगदान के लिए डॉ प्रतीक संजय ने आभार जताया।