नैथन एम एडम्स
पहली सितंबर 1992 को तीसरे पहर इकहरे बदन का दाढ़ी वाला एक नौजवान न्यूयार्क के जॉन एफ कैनेडी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के आव्रजन स्थल पर पहुंचा। उसके पासपोर्ट में उसे इराक का 25 वर्षीय रमजी अहमद युसूफ बताया गया था जो पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की उड़ान 703 से कराची से यहां आया था। वहां पर बैठे वर्दीधारी इंस्पेक्टर ने नजरें ऊपर उठाई। ‘यह तो अमरीका में प्रवेश के लिए वीजा नहीं है, मिस्टर यूसुफ, ’उसने कहा।
यात्री ने बेबसी से कंधे उचकाए और कहा, ‘मैं राजनीतिक शरण के लिए आवेदन करना चाहता हूं।’ उसने बताया कि वह इराक वापस लौटा तो उसे सरकार विरोधी गतिविधियों के चलते गिरफ्तार कर लिया जाएगा और शायद फांसी भी दे दी जाए। काउंटर पर बैठे दूसरे आव्रजन अधिकारी ने यूसुफ का नाम और पासपोर्ट नंबर एक कंप्यूटर में दर्ज किया और फिर अपराधियों और संदिग्ध आतंकवादियों वाली सूची से मिलाने के लिए बटन दबाया। रमजी अहमद युसुफ का कोई विवरण उसमें नहीं था। वस्तुतः कंप्यूटर व्यवस्था यहां धरी की धरी रह गई और जैसा कि बाद में संघीय पुलिस ने मामला दायर किया, यूसुफ का कोई विवरण इसमें नहीं था। यूसुफ एक अत्यंत कुशल आतंकवादी था जो कमीज बदलने वाले अंदाज में नाम बदल लेता था।
खैर इस यात्री की उंगलियों के निशान लिए गए, तसवीर ली गई और उससे स्थानीय पता पूछा गया। फिर उसे शरण के लिए औपचारिक अर्जी देने के लिए अमरीकी आव्रजन एवं देशीयकरण सेवा के दफ्तर में आने के लिए तारीख दे दी गई।
अब यूसुफ को देश में कहीं भी जाने की छूट मिल चुकी थी ताकि संघीय आरोप पत्र के अनुसार वह अपनी वास्तविक मुहिम पर सक्रिय हो सके। अमरीका में हत्याओं और बम विस्फोट का घातक अभियान चलाने पर तुले फिलिस्तीनी, मिस्त्री और सूडान के इसलामी आतंकवादियों के शिथिल संगठन की सहायता कर सके।
इस इसलामी क्रांतिकारी जत्थे में इस देश में बसते जा रहे मुसलमानों में से कुछ लोगों को भी भर्ती किया गया था। दूसरों ने अफगानिस्तान से सोवियत फौजों को निकाल बाहर करने की लड़ाई लड़ी थी और इन का चयन एवं प्रशिक्षण ईरानी और उनके सहयोगी उग्रवादियों ने किया था। अब इनमें से अनेक न्यूयॉर्क के बु्रकलिन और न्यू जर्सी के जर्सी सिटी की मस्जिदों में नमाज अदा करते हैं जहां 55 वर्षीय निर्वासित मिस्त्री इमाम शेख उमर अब्दुल रहमान अकसर तकरीरें किया करते थे। यह नेत्रहीन महाशय मिस्र की सरकार को उखाड़ फेंकने का उपदेश देते हैं। वे पाश्चात्य विश्व में अमरीका को ही इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए अपने अनुयायियों से कहा करते हैं कि ‘बहा दो अमरीकी खून, खुद उन की सरजमीं पर।’
संघीय अभियोग पत्र के अनुसार यूसुफ ने सबसे पहले उस बैंक खाते तक अपनी पहुंच बनाई जो बम विस्फोटों के लिए खोला गया था। सरकारी सूत्रों के अनुसार मुख्यतः मध्य पूर्व और पश्चिमी यूरोप के बैंकों के माध्यम से इस खाते में करीब 1,00,000 डॉलर जुटाया गया था और इसका अधिकांश हिस्सा ईरान से आया था। आरोप है कि यूसुफ ने आम तौर पर उपलब्ध सस्ते रसायनों और उर्वरकों के सहारे विस्फोट तैयार करने में मदद की थी।
आठ दिसंबर को यूसुफ ने राजनीतिकरण शरण संबंधी सुनवाई स्थगित करने की मांग की। उसने आव्रजन संबधी मामलों की सुनवाई करने वाले तीन न्यायाधीशों से कहा कि उसने अभी तक अपना वकील ही तय नहीं किया है, उसे फिर 26 जनवरी 1993 को पेश होने को कहा गया। उस दिन यूसुफ ने अपने वकील के माध्यम से दावा किया कि वाहन दुर्घटना के चलते वह हाजिर नहीं हो पा रहा है। सुनवाई की तीसरी तारीख तय की गई जो कि बेकार साबित हुई।
न्यूयॉर्क नगर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में 26 फरवरी को दोपहर बाद जबरदस्त विस्फोट हुआ। छह लोग मारे गए और करीब 1,000 घायल हो गए। यों लक्ष्य और भी अधिक लोगों की जान लेना था। पूरी 110 मंजिला इमारत की एक भी मंजिल उड़ गई होती तो मृतकों की संख्या 20,000 से ऊपर पहुंच गई होती।
पांच हफ्तों के अंदर ही संघीय जांच ब्यूरो ने पांच संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया। ब्यूरो ने बम बनाने के लिए रखे गए रसायनों के भंडार में यूसुफ की उंगलियों के निशान भी पाए। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। बम विस्फोट के कुछ घंटे पहले ही यूसुफ कराची लौट चुका था।
जून के उत्तरार्ध में आठ अन्य लोग गिरफ्तार किए गए, जिन में से पांच को विस्फोटकों को तैयार करने के आरोप में पकड़ा गया था। कुछ पर ट्रेड सेंटर में विस्फोट कराने के षड्यंत्र का आरोप भी था, पर उनकी पहचान नही हो पाई। इस बार निशाने और भी भयावह थे। चार जुलाई या इसके आसपास ही न्यूयॉर्क नगर की फेडरल बिल्डिंग, संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय और लिंकन एवं हॉलैंड सुरंगों में विस्फोट किया जाना था। न्यूयॉर्क से रिपब्लिकन सीनेटर ऐल्फांस डी एमैटो और उस समय संयुक्त राष्ट्र महासचिव बुतरस बुतरस घाली समेत अनेक लोगों की हत्या करने की योजना भी बनी थी। संघीय जांच ब्यूरो के एक मुखबिर ने चुपचाप शेख रहमान और 4 जुलाई के षड़यंत्र में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कुछ लोगों की बातचीत टेप कर ली थी। आरोप पत्र में कहा गया है कि इस बातचीत से जाहिर है कि इस धार्मिक नेता ने बम विस्फोट की योजना के लिए अपनी दुआएं दी थीं। कुल मिलाकर शेख और 21 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया, उन पर मामला चलाया गया है। लेकिन इन गिरफ्तारियों भर से अमरीकी भूमि पर से आतंकवाद का खात्मा नहीं हो जाएगा। उस वक्त के सीआईए के निदेशक आरजेम्स वूल्सी सावधान भी करते हैं। ‘अमरीका आज अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का प्रमुख लक्ष्य बन गया है।’ यहां और मध्य पूर्व के गुप्तचर एवं सुरक्षा अधिकारियों को इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि आतंकवाद को कौन देश सबसे ज्यादा बढ़ावा और समर्थन दे रहा है। यह देश हैं पाकिस्तान और ईरान।
उनका मानना है कि तेहरान को षड्यंत्रों की जानकारी जरूर होगी क्योंकि शेख रहमान ने सूडान और मिस्र में ईरान समर्थित अपने चेलों से लगातार संपर्क रखे हैं। लेकिन ईरान की भागीदारी इससे कहीं और भी ज्यादा हो सकती है। सन् 1991 में जून में कनाडा पुलिस ने टोरंटों में 29 वर्षीय ईरानी मंसूर अहानी को गिरफ्तार किया। उसके मकान पर छापा मारा गया तो वहां उन लोगों के नाम वाले हवाई जहाज के टिकट बरामद हुए जिन पर 4 जुलाई के विस्फोट के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप है। आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञों की छानबीन से यह बात सामने आई कि अहानी ईरानी गुप्तचर अधिकारी है और रपट है कि उसे कनाडा से भागकर मध्य पूर्व आने वाले आतंकवादियों की मदद के लिए भेजा गया था। उसी साल फरवरी में करीब 50 देशों के 300 मुस्लिम प्रतिनिधि ईरान के पवित्र नगर कौम में जमा हुए। इनमें दो दर्जन से ज्यादा वो आतंकवादी सरगने भी शामिल थे जिनके सहयोगी अमरीका में उपस्थित है। इसके बाद आतंकवादियों ने ईरान के सुरक्षा एवं सूचना मंत्रालय की अनेक कार्यशालाओं में भी हिस्सा लिया। वहां उन लोगों ने अमरीका और यूरोप के लक्ष्यों पर अभूतपूर्व आतंकवादी हमले शुरू करने पर विचार विमर्श किया। नामी इमारतों को बम से उड़ाने और किसी बड़े शहर की जल वितरण प्रणाली को ईरान के इस्फहान में विकसित हो रहे एक मारक जैव रसायन से जहरीला बनाने जैसी योजनाओं पर विचार हुआ।
‘इस पूरे इलाके में इस्लामी प्रभुत्व और अमरीका को पंगु बना देना 15 वर्षों के जिहाद का मुख्य उद्देश्य रहा है,’ कहते हैं ईरान के पूर्व मंत्री और विद्वान डॉ असद हुमायूं, जो अमरीका में रहते हैं। दुनिया के साम्यवाद में मस्क्वा का जो स्थान था, वही स्थान जिहाद और क्रांतिकारी अंतरराष्ट्रीय धर्मवाद के लिए तेहरान का है।’ ईरान सरकार नियमित रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने कार्यालय को काफी रकम भेजा करती है। यह रकम उन राजनयिक पेटियों के मारफत जाती है जिनकी जांच पड़ताल नहीं की जा सकती। धार्मिक उग्रवादी संगठनों के लिए इसी से पैसा दिया जाता है। गुप्तचर सूत्रों के अनुसार शेखर रहमान को भी इसी में से करीब 1,00,000 डॉलर की रकम दी गई जो राजनयिक प्रतिनिधिमंडल के लोगों ने सूटकेस में भर कर दी थी।
आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञों के अनुसार ‘द फाउंडेशन फॉर द आप्रेस्ड’ नामक संगठन भी है जो अपने मुख्यालय यानी न्यूयॉर्क के 850-पार्क एवेन्यू स्थित बारह मंजिलें भवन का स्वामित्व रखता है। ईरान में इसके निदेशक हैं मुशीन रफीकदस्त जो उग्र अमरीका विरोधी रिवोल्यूशनरी गार्ड के पूर्व प्रमुख हैं। इन सूत्रों का कहना है कि फाउंडेशन के कार्यालयों का इस्तेमाल अमरीका में चलने वाले कट्टर इसलामी संगठनों को पैसा और मदद देने के लिए किया जाता है।
सन् 1981 में अमरीका द्वारा ईरान से संबंध तोड़े जाने के बाद से अमरीकी विदेश मंत्रालय ने राजधानी वाशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास से उसे ‘विशेष हित शाखा’ चलने देने की अनुमति दे रखी है। पर असल में इस विशेष शाखा ने ही थोड़ी दूरी पर एक बड़ी इमारत में अपना कामकाज जमा रखा है। इस विशेष हित शाखा के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी साइरस नासिरी को कई साल पहले अधिकारियों ने न्यूयॉर्क में एक बड़े ब्रीफकेस के साथ पकड़ा था जिसमें बस बनाने की योजना वाले दस्तावेज ठुसे थे। अमरीका छोड़ने के बाद यह जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र के यूरोपीय मुख्यालय में ईरान का राजदूत बन गया। आज इस विशेष हित शाखा में तैनात ईरानी गुप्तचर अधिकारी और राजनयिक वाशिंगटन क्षेत्र की मस्जिदों और इस्लामी तालीम केंद्रों में संभावित आतंकवादियों की भर्ती में मदद करते हैं।
अमरीका के 40 लाख प्रवासी मुसलमानों में से करीब एक चौथाई ईरानी हैं और ये सभी जबरदस्त मेहनती परिवारों के सदस्य हैं। आतंकवादी हिंसा भड़काने और धार्मिक पुनरुत्थान की ईरानी नीति से ये सभी प्रायः असहमत हैं। लेकिन अब ऐसे लोगों की गिनती बढ़ती जा रही है जो जिहादी संगठनकर्ताओं के प्रभाव में आते जा रहे हैं। मध्य पूर्व के लगभग सभी ही प्रमुख आतंकवादी गिरोहों ने अमरीका के प्रवासी समुदायों के बीच महत्वपूर्ण जमीन बना ली है। कहते हैं आतंकवाद के प्रतिकार के इजरायइली विशेषज्ञ एरियल मेरारी ईरान के सहयोग से ये गिरोह हाल में हुए ऐतिहासिक फिलिस्तीन इजराइली संधि का भी उग्र विरोध कर रहे हैं। ऐसे कुछ गिरोहों के बारे में बुनियादी जानकारियां इस प्रकार हैं।
इसलामी प्रतिरोध आंदोलन, फिलिस्तीनः फिलिस्तीनी धार्मिक उग्रवादियों द्वारा 1988 में स्थापित एवं ईरान से प्रति वर्ष लाखों डॉलर की मदद पाने वाला यह गिरोह आज मध्य पूर्व का एक सबसे मारक गिरोह बन गया है। इसके बंदूकधारियों ने असंख्य इजराइली औरतों मर्दों और बच्चों की हत्या की है। सन् 1990 की एक इजराइली कार्रवाई के बाद इस गिरोह के लोगों ने शिकागो और डलास में कुछ दिखाऊ कार्यालय और इसलामी प्रतिष्ठान भी बना लिए हैं। वर्ल्ड टे्रड सेंटर में हुए विस्फोट के एक प्रमुखख्संदिग्ध अपराधी ने संघीय जांच ब्यूरो के एक मुखबिर को बताया भी था कि वह निरंतर इस संगठन के लोगों के संपर्क में था।
संगठन की राजनीतिक शाखा के प्रधान मूसा अबू मरजुक ने वाशिंगटन के निकट ही वरजीनिया के स्प्रिंगडेल में अपना निर्वासन का मुख्यालय खोला है। ईरान के इस प्रिय अतिथि को पिछले पतझड़ में आलोच्य संगठन का ‘दूतावास’ खोलने का न्यौता भी ईरान से मिला था। सन् 1990 के क्रिसमस के समय इस आतंकवादी गिरोह ने मिजूरी के कैनसास नगर में अपना तीसरा विश्व सम्मेलन आयोजित किया। साल भर बाद फीनिक्स में हुए अगले सम्मेलन में इस संगठन के प्रतिनिधि और करीब 4,000 समर्थक और मददगार शामिल हुए। ऐसे सम्मेलन धार्मिक कठमुल्लों-कुछ तो ईरान के भी के लिए अपने धर्म प्रचार और इजरायल एवं उसके मित्र अमरीका के विरुद्ध जहर उगलने के मंच साबित हुए हैं।
द पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑव फिलिस्तीनः सीरिया, लीबिया और ईरान के समर्थन से चलने वाले इस मोर्चे का सरगना है जॉर्ज हबाश जिस ने अमरीका, इजराइल और नरमपंथी अरब अधिकारियों पर हुए अनेक हमलों में प्रमुख भूमिका निभाई है। इस संगठन की करतूतों में दो अमरीकी विमानों का अपहरण और तेल अबीब के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 1972 में 20 से अधिक मासूम नागरिकों की हत्या करना भी शामिल है। इस संगठन के करीब 150 लोग अमरीका में हैं जिनमें से कुछ अवैध रूप से भी रह रहे हैं। इजराइली सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार इन लोगों ने मध्य पूर्व और यूरोप में हबाश के कोषों में लाखों डॉलर जमा कराए हैं।
हिजबुल्लाः ईरान द्वारा प्रशिक्षित एवं नियंत्रित हिजबुल्ला आत्मघाती दस्तों ने ही 1983 में लेबनान के बेरुत स्थित अमरीकी दूतावास के संधि और सैनिक निवास स्थल को भूमिसात किया था। इस संगठन ने सीआईए के शाखा प्रमुख विलियम बकली समेत करीब दर्जन भर पश्चिमी लोगों का अपहरण भी किया। बकली ने तो इनकी लंबी यातना के कारण ही दम तोड़ दिया था। अब अमरीकी हिजबुल्ला उग्रवादी मिशीगन के डियरबॉर्न, शिकागो और लास एंजल्स की मुस्लिम प्रवासी बस्तियों में बढ़ गए हैं। अमरीका में इसकी सदस्य संख्या कई हजार है और इसलामी क्रांतिकारिता का इस का लक्ष्य नित नए नौजवानों को खींच रहा है।
इस उद्देश्य से सहानुभूति रखने वालों ने टीवी का समय तक खरीद रखा है जिसके मुसलमान दर्शकों को अरबी और ईरान की भाषा फारसी में उपदेश सुनने को मिलते हैं। लास एंजल्स के चैनल 18 तथा वाशिंगटन के चैनल 56 पर ‘द राइजिंग सन’ शीर्षक वाला ऐसा ही एक कार्यक्रम आता है जिसमें इस्लाम के दुश्मनों के विरुद्ध जिहाद की महत्ता बताई जाती है। गुप्तचर एजेंसियों का कहना है कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि अमरीकी हिजबुल्ला रंगरूटों को लेबनान और सूडान के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों तक में भेजा गया है।
अबू निदाल का संगठनः कुख्यात अबू निदाल के साथी बमबार और हत्यारों ने लगभग 900 लोगों को मारा है। इनमें 27 दिसंबर 1985 को रोम और विएना के हवाई अड्डों पर मशीनगनों और हथगोलों से जो नरसंहार किए गए उससे प्रभावित लोगों में 125 से ज्यादा विमान यात्री भी शामिल हैं। ईरानी आर्थिक सहायता से चल रहे इस संगठन के बारे में अनुमान है कि आज के शिकागो, मिलवाकी, सेंट लूइस और लास एंजलस के करीब 150 लोग गुपचुप रूप से सदस्य हैं।
अमरीकी संघीय जांच ब्यूरो के सेंट लूइस के एजेंटों ने करीब सात साल तक लगे रहने के बाद पिछले अप्रैल में अबू निदाल की एक चौकड़ी को तोड़ने में सफलता पाई। इस गिरोह ने रॉकेट लांचर समेत काफी सारे हथियारों का जखीरा वाशिंगटन स्थित इजराइली दूतावास पर हमले के लिए जुटा कर इस योजना पर चर्चा भी कर ली थी।
पूरी दुनिया को खाक हो जाने दो-विवरण बताते हैं कि गिरोह की रणनीति तय करने वाली एक बैठक में इसके सदस्य जेइन ईसा ने यह कहा था। फिर उसने अमरीका में रहने वाले 3,000 यहूदियों की हत्या करने की वकालत भी की। बाद में ईसा ने अपनी 16 वर्षीया बेटी की हत्या कर दी। कारण? उसे संदेह था कि वह इस गिरोह को धोखा देकर अमरीकी अधिकारियों को सब कुछ बता देगी। उसने चाकू भोंककर उसकी हत्या की तो उसके मकान में लगे एफबीआई के गुप्त ट्रांसमीटरों ने उसकी चीख भी दर्ज की थी। अब वह मिजूरी के जेल की कालकोठरी में है।
आतंकवाद प्रतिकार विशेषज्ञ रॉबर्ट कूपरमैन का, जो वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में काम करते हैं, अनुमान है कि अमरीका में अबू निदाल के छह और गिरोह पूरी तरह सक्रिए है। आज के शरण लेने के झूठ के सहारे या गुप्त रूप से अमरीका में प्रवेश करने वाले आतंकवादियों को रोकने की कोई सार्थक व्यवस्था नहीं है। आव्रजन विभाग के एक परेशान अधिकारी कहते हैं। हमारे दरवाजे एकदम से खुले हैं।
महमूद अबूहलीम जो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाले विस्फोट कांड में अभियुक्त ठहराया गया है का मामला ही बहुत साफ तौर पर बताता है कि आतंकवादी कमजोर आव्रजन कानूनों की आड़ में किस आसानी से काम कर जाते हैं। वह 1981 में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादात की हत्या के कुछ समय पहले ही काहिरा से जरमनी रवाना हुआ था। फिर जल्दी ही मिस्त्री जांच पड़ताल से उस का रिश्ता सादात की हत्या करने वाले संगठन से जुड़ा मिला। पश्चिम जरमनी की अदालतों ने राजनीतिक शरण के उसके आवेदन को ठुकरा दिया। लेकिन अबूहलीम 4 अक्टूबर को न्यूयार्क आ गया।
म्यूनिक स्थित अमरीकी वाणिज्य प्रदूतावास द्वारा जारी उसका पर्यअन वीसा मात्र छह माह की यात्रा के लिए था। लेकिन अबूहलीम को मालूम था कि इस बात की जांच आव्रजन एवं देशीयकरण सेवा नहीं करेगी कि इस अवधि के समाप्त होने से पहले वह अमरीका से निकाला गया या नहीं। फिर अवैध रूप से रहने के बावजूद उसे नौकरी और कार चालन का लाइसेंस तक पाने में परेशानी नहीं हुई। सन् 1988 के पतझड़ में उसने 1986 के आव्रजन सुधार एवं नियंत्रण कानून के तहत स्थायी प्रवास के लिए आवेदन किया। सन् 1983 से 1986 के बीच खेती से जुड़े काम में 90 दिन गुजारने का प्रमाण देने वाले किसी व्यक्ति को कृषि श्रमिक माफी योजना के तहत स्थायी आवास की अनुमति मिल भी जाती है।
अबूहलीम को ग्रीन कार्ड भी मिल गया। उसके ब्रुकलिन वाले पते पर भी किसी की नजर नहीं गई जबकि देश के कृषि क्षेत्रों में उसकी गिनती होनी मुश्किल ही है। अबूहलीम पर जब तक संघीय जांच ब्यूरो की नजर पड़ती वह कार चालक बन चुका था और शेख उमर अब्दुल रहमान का एक संगठनकर्ता भी उसके मिस्र के आतंकवादियों वाले संबंधों से अनजान जांच ब्यूरो ने उस पर सरसरी निगाह ही रखी और जनवरी में यानी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाले धमाके से कुल छह सप्ताह पूर्व यह निगरानी तक समाप्त कर दी।
जांच ब्यूरो को 1991 के अंत में तगड़ा झटका लगा जब आतंकवाद प्रतिकार के विशेषज्ञों ने गुलाम हुसैन शिराजी नामक जिस व्यक्ति की ईरान के शीर्षस्थ भेदिए के रूप में शिनाख्त की, वह आव्रजन सेवा से अमरीका में स्थायी निवास का वीसा लिए बैठा लिया। फ्रांसीसी अधिकारियों के अनुसार शिराजी ने ही ईरान के निर्वासित प्रधानमंत्री शाहपुर बख्तियार की हत्या की योजना अगस्त 1991 में राजधानी पारी में बनाई थी। फ्रांस की ओर जाते समय ईरानी हत्यारे दस्ते ने इस्तांबुल के दो सुरक्षित घरों से अमरीकी वेस्ट कोस्ट के व्यावसायिक एवं आवासीय क्षत्रों के विभिन्न नंबरों पर कई फोन भी किए। शिराजी ऐसी कई अमरीकी कंपनियों से जुड़ा था जिनके मालिक गुप्त रूप से ईरानी भेदिए ही थे।
ऐसे में आश्चर्य नहीं कि अमरीका एकदम से आतंकवादियों का अखाड़ा बन चुका है। आव्रजन नियंत्रण व्यवस्था इतनी पुरानी या अवास्तविक है कि काम ही नहीं करती। न्यू जर्सी के न्यूर्याक स्थित क्षेत्रीय शरण कार्यालय के ही कुल 22 इंस्पेक्टरों ने गत वर्ष राजनीतिक शरण के कोई 50,000 आवेदनों की पड़ताल की। स्वयं आव्रजन एवं देशीयकरण सेवा की रपट है कि हर वर्ष कोई पांच लाख विदेशी यात्री अपने वीसा की समाप्ति के बाद एकदम से विलुप्त ही हो जाते हैं।
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के धमाके ने जाता दिया है कि आतंकवादियों के प्रहारों से कोई भी देश अछूता नहीं रह सकता। विविध जांच पड़तालों से जाहिर हो गया है कि ईरान के प्रोत्साहन और समर्थन से चलने वाले उग्र इसलामी आतंकवादियों की बर्बर मंशा कैसी और कितने दूरगामी अर्थ लिए हैं।
आतंकवाद के अभिशाप से शायद ही कोई देश मुक्त हो और इससे मुक्ति के लिए जरूरत है तो अंतरराष्ट्रीय सहयोग की। मामला चाहे कोलंबिया के कोकीन के व्यापारियों का हो चाहे उत्तरी आयरलैंड के आतंकवादियों या दुनिया के किसी भी कोने के राजनीतिक उग्रवादियों का, यह संदेश सर्वत्र फैल जाना चाहिए कि मतांधता के नाम पर किए जाने वाले हर आतंकवाद से निर्णायक रूप से तत्काल निबटा जाएगा, तभी दुनिया भर के निरीह नागरिक इन घातक प्रहारों से मुक्ति का अनुभव कर सकेंगे।