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Thursday 8 October 2015 05:48:39 AM
चित्तौड़गढ़। प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था संभावना ने विख्यात हिंदी कथाकार अखिलेश पर केंद्रित 'समकालीन परिदृश्य और अखिलेश का साहित्य' राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया, जिसमें अनेक हिंदी विद्वानों ने अखिलेश की रचनाओं पर अपने विचार व्यक्त किए। उद्घाटन सत्र को अखिलेश ने संबोधित किया और कहा है कि शिल्प और भाषा फंदे की तरह है, लेखक के पास भी यथार्थ, संवेदना, विचार, भावों इत्यादि के गोले के लच्छे होते हैं और वह फंदा डालता है। उन्होंने कहा कि जो आपके अंदर है, यदि आप सावधान न हुए, वह नष्ट भी करता है, रूग्ण बनाता है, चाहे ज़िंदगी हो या साहित्य, आप किसी छवि, विचार या उम्मीद से मोहग्रस्त रहे और जो नया आपके नजदीक आने के लिए छटपटा रहा है एवं उसको अनदेखा किया तो फिर अंधकूप में गिरना होगा। उन्होंने अपने चर्चित उपन्यास 'निर्वासन' तथा 'आत्मकथ्य भूगोल की कला' के कुछ अंश भी सुनाए।
सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष के प्रोफेसर माधव हाड़ा ने कहा कि किसी भी रचना की सफलता का साक्ष्य है कि पाठक महसूस करने लगे कि यह मेरी रचना है। उन्होंने कहा कि शिल्प और यथार्थ को दो ध्रुव मानने की परिपाटी के बीच अखिलेश ही ऐसे रचनाकार हैं, जिनके पास ऐसा दुर्लभ संयम है कि रचना का यथार्थ का निर्मम रूप सामने आए और आख्यान की कला भी पूरी दिखाई दे। उन्होंने कहा कि यह हमारी जातीय परंपरा की याद दिलाने वाला गद्य है, जिसमें बतरस का सुख है तो औपनिवेशिक राष्ट्र के स्वतंत्रचेता मानस का स्वतंत्र अहसास भी है। 'बनास जन' के संपादक डॉ पल्लव ने 'संभावना' के इतिहास का वर्णन करते हुए सेमीनार की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अपने लेखन और संपादन के कारण अखिलेश हमारे समय के सांस्कृतिक योद्धा हैं।
जिला पुलिस अधीक्षक प्रसन्न खमेसरा ने नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने की आवश्यकता बताते हुए अपनी अध्ययनशीलता के प्रसंग सुनाए। सेमीनार के निदेशक डॉ कनक जैन ने अतिथियों का परिचय दिया। चंदेरिया लेड जिंक स्मेल्टर मजदूर यूनियन के महासचिव घनश्याम सिंह राणावत ने अतिथियों का स्वागत किया। चंदेरिया जिंक स्मेल्टर के यूनिट हेड राजेश कुंडु एवं पुलिस अधीक्षक खमेसरा ने प्रतिभागी साहित्यकारों को स्मृति चिन्ह भेंट किए। संभावना के अध्यक्ष डॉ केसी शर्मा ने साहित्य-संस्कृति के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता व्यक्त की। 'नब्बे के दशक की हिंदी कहानी और अखिलेश' शीर्षक से हुए दूसरे सत्र में ज्ञानपीठ युवा सम्मान विजेता डॉ राजीव कुमार ने पत्र वाचन में कहा कि अखिलेश ने सत्ता की क्रूरता, सामाजिकता के ह्रास और मानवीय मूल्यों के चरण की अभिव्यक्ति को अपनी कहानियों का प्रस्थान बिंदु बनाया। जनपक्षधरता का यह प्रमाण है कि परिवार, प्रेम, मूल्यगत ह्रास, राजनैतिक लोलुपता और व्यवस्था के दुष्चक्र को अखिलेश अपनी कहानियों में गंभीरता से प्रस्तुत करते हैं।
मुख्य वक्ता आगरा से आए युवा आलोचक डॉ प्रियम अंकित ने अखिलेश की कहानी 'चिट्ठी' को दिलो दिमाग पर छा जाने वाली रचना बताते हुए कहा कि भौतिक नैतिक संकट को भांपने वाली यह रचना बताती है कि अखिलेश भावुकता से दूर रहते हैं, उनकी भाषा और शैली की ताकत उनकी कहानियों में आ रहे खिलदंड़ेपन से देखी जा सकती है। उनका यह शिल्प बदल रहे सामाजिक यथार्थ से उपजा है और अपने नएपन के कारण नब्बे की पीढ़ी के बाद के कथाकारों पर इसका गहरा असर है। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास ने नब्बे के आसपास हुए सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तनों को रेखांकित किया, जिनका गहरा असर रचनाशीलता पर है। अध्यक्षता कर रहे कवि आलोचक डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि कहानियों ने ही अखिलेश के व्यक्तित्व को रचा है और घनानंद की तरह वे 'मोहिं तो मोरे कवित्त बनावत' अर्थात निजी मौलिक शैली का आविष्कार करते हैं। डॉ व्यास ने कहा कि आदमी और आदमीयत के लिए अखिलेश की कहानी कला को सच्चे अर्थों में जनधर्मी और सच्चा माना जाएगा।
सेमीनार के तीसरे सत्र में 'उपन्यास में अखिलेश' विषय पर मुख्य वक्ता और आलोचक डॉ पल्लव ने कहा कि अखिलेश का औपन्यासिक लेखन हमारे समय की जटिल स्थितियों का उद्घाटन करता है और इस जटिलता की जड़ों की तलाश करता है। उन्होंने 'निर्वासन' को मनुष्यता के निर्वासन से जोड़ते हुए कहा कि जिन दिनों राजसत्ताएं हत्याओं और मनुष्य विरोधी कृत्यों का समर्थन कर रही हों, तब यह उपन्यास मनुष्यता के पक्ष में बड़ा क्रिटिक रचता है। राजस्थान विश्वविद्यालय में हिंद की सहायक आचार्य डॉ रेणु व्यास ने कहा कि युवा बेरोज़गार की पीड़ा का यथार्थ अंकन अखिलेश के उपन्यास 'अन्वेषण' उपन्यास की सफलता है, किंतु इसी धुंधली आशा का अन्वेषण इस उपन्यास की सार्थकता है। वरिष्ठ आलोचक प्रोफेसर नवलकिशोर ने कहा कि 'निर्वासन' पिछले सौ-सवा सौ वर्ष से आधुनिक समय में गतिमान सभ्यताओं के उत्तरोत्तर विकास में मौजूद मानवीय नियति के अकेलेपन से उत्सर्जित भयानक हाहाकार को अपने भीतर समाहित किए हुए है। महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ राजेंद्र सिंघवी ने अतिथियों का परिचय भी दिया।
साहित्यिक पत्रकारिता और तद्भव विषय पर मुख्य वक्ता डूंगरपुर कालेज के प्राध्यापक डॉ हिमांशु पंड्या ने अखिलेश की संपादित पत्रिका 'तद्भव' की डेढ़ दशक की विकास यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि इस दशक की महत्वपूर्ण रचनाशीलता का तद्भव में रेखांकन हुआ, 'तद्भव' के हर नए अंक का आना हिंदी समाज में एक बौद्धिक उत्तेजना का परिचायक होता है, यह पत्रिका अकादमिक होते हुए भी अपने दौर के महत्वपूर्ण सवालों से रू-ब-रू हुई। अखिलेश ने सेमीनार के आयोजकों का आभार प्रदर्शित करते हुए कहा कि चित्तौड़गढ़ के इस आयोजन में आना अभिभूत करने वाला है। 'तद्भव' के पाठक और महाविद्यालय प्राध्यापक डॉ राजेश चौधरी ने पत्रिका से अपने जुड़ाव की बात करते हुए इसकी उपलब्धियों की चर्चा की। सत्र की अध्यक्षता कर रहे 'चौपाल' पत्रिका के संपादक डॉ कामेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि लघु पत्रिकाएं अपने समय की सच्चाइयों को सार्वजनिक करने का विकल्प रही हैं। उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता का यह दौर भूमंडलीकरण के समानांतर स्थानिकता और देशजता का मंच उपलब्ध करवा रहा है। उन्होंने कहा कि साहित्य और लघु पत्रिकाएं समाज के मानसिक एवं बौद्धिक उत्तेजन के लिए आवश्यक साधन हैं, जिससे मनुष्य जीवन को बेहतर एवंगुणवत्तापूर्ण बनाया जा सके।
सेमिनार सत्र का संयोजन बीएन कालेज उदयपुर के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ हुसैनी बोहरा ने किया। सेमिनार में कट्टरतावादियों के शिकार बने शहीदों एमएम कालबुर्गी, गोविंद पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर के प्रति दो मिनिट का मौन रख श्रद्धांजलि दी गई। विख्यात कवि वीरेन डंगवाल को भी इसी सत्र में श्रद्धांजलि दी गई। आयोजन स्थल पर लगी लघु पत्रिका प्रदर्शनी का उद्घाटन कवि-विचारक सदाशिव श्रोत्रिय ने किया। प्रदर्शनी में हिंदी की लगभग दो सौ लघु पत्रिकाएं प्रदर्शित की गई थीं। दो दिन के इस आयोजन में पत्रकार जेपी दशोरा, नटवर त्रिपाठी, संतोष शर्मा, गोपाल जाट, सत्येंद्र सनाढ्य, जीएनएस चौहान, डॉ अखिलेश चाष्टा, अश्लेष दशोरा, अजय सिंह, केके दशोरा, हरीश खत्री, सत्यनारायण खटीक, महेंद्र नंदकिशोर, बाबू खां, केएम भंडारी, मुन्नालाल डाकोत, कृष्णा सिन्हा, भावना शर्मा, शीतल पुरोहित सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।