लॉवेल पोंट
आहार विज्ञान में हो रहे अग्रणी अनुसंधान क्षेत्र में आप का स्वागत है, जहां शोधकर्ता दैनिक खाद्य पदार्थों की रोग प्रतिरोधी और दीर्घायु देने की क्षमताओं का पता लगा रहे हैं। कुछ शोधकर्ता यह काम प्रयोगशालाओं में कर रहे हैं और कुछ भिन्न संस्कृति वाले समुदायों के आहारों का उन समुदायों में कैंसर व हृदय रोग की दर कम होने से क्या संबंध है, इसी की खोज में लगे हैं। इन शोधकर्ताओं की खोज आप को दीर्घायु बना सकती है और आप के स्वाद को भी अधिक अंतरराष्ट्रीय बना सकती है।
हृदवाहिका रोगों के विशेषज्ञ संक्रामक रोग विज्ञानी डॉ गैरी फ्रेज़र ने अनाज से बने अपने नाश्ते में गिरियों अर्थात बादाम एवं मूंगफली को भी शामिल कर लिया है। लास एंजल्स के समीप स्थित लोमा लिंडा विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र में फ्रेज़र और उसके सहयोगियों ने सेवेंथ-डे एडवेंटिस्ट समुदाय के 26,500 लोगों का जो न धूम्रपान न मदिरापान करते हैं और पूर्णरूपेण शाकाहारी हैं-अध्ययन किया। उन्हें पता चला कि वे लोग जो सप्ताह में पांच बार या अधिक, थोड़ी सी उपरोक्त गिरियां खाते थे, उन में ह्दय संवाहिकाओं संबंधी रोग होने का खतरा उन लोगों की अपेक्षा आधा होता है जो शायद ही कभी मेवे खाते हों। ये गिरियां नमक रहित हों तो बेहतर होती हैं तथा भुनी या कच्ची होने पर एकल असंतृप्त और बहु असंतृप्त वसा तथा विटामिन ई की अच्छी स्रोत हैं, फ्रेज़र कहते हैं। इन में मैग्रीशियम भी होता है जो हृदय गति की अनियमितता से बचाव में सहायता करता है।
भूमध्यसागर से जुड़े देशों में रहने वाले लोग सामान्यतः स्वस्थ और दीर्घायु होते हैं। उन के भोजन की कुछ विशेषताएं-ताजे फल, सब्जियां और साबुत अनाज का नियमित सेवन-आज प्रचलित स्वास्थ्यवर्धक संतुलित आहार की धारणा के अनुरूप हैं। लेकिन अन्य विशेषताएं इन धारणाओं से मेल नहीं खातीं। उदाहरण के लिए वैज्ञानिक एक ऐसे स्वास्थ्य संबंधी रहस्य से हैरान हैं जो आम तौर पर फ्रेंच पैराडॉक्स के नाम से जाना जाता है। फ्रांसीसी उतनी ही मात्रा में संतृप्त बसा लेते हैं। जितनी अमरीकी लोग, तब भी फ्रांसीसियों में हृदय रोग से होने वाली मृत्यु की दर, अमरीकियों की आलोच्य मृत्यु दर की केवल 40 प्रतिशत है।
कुछ शोधकर्ता हृदय रोग से उनके इस बचाव का कारण मुख्यतः अंगूरी सुरा का सेवन मानते हैं। दक्षिणी पश्चिमी फ्रांस में औसत पुरुष भोजन के साथ प्रति दिन दो से तीन गिलास सुरा पीते हैं, जिसमें अधिकतर लाल सुरा होती है।
हृदयरोग विज्ञानी डॉ. आर्थर क्लाट्स्की के अनुसार अलकोहल वाले पेय पदार्थों का मामूली से सीमित सेवन करने वालों (एक दिन में दो पेग से अधिक नहीं) में हृदय-धमनी में विकार की दर बहुत कम होती है। स्वयं अलकोहल ही इस बचाव का कारण लगता है, क्लाट्स्की का कहना है।
ऐसा भी संभव है कि सुरा के गैर अलकोहली रसायन भी स्वास्थ्यप्रद होते हों। इथाका, न्यू यार्क, स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय के फल संवर्धन विज्ञानी लेरॉय क्रीजी अंगूरों से उत्पन्न होने वाले एक पदार्थ का अध्ययन कर रहे हैं जिस में कवक से लड़ने की क्षमता है। रेस्वेराट्रॉल नामक यह पदार्थ एक प्राकृतिक कीटनाशक है जिसके बारे में जापान में पशुओं पर किए गए शोध कार्य से पता चला है कि यह रक्त में वसा एवं कोलस्टरॉल के स्तर को घटाता है।
रेस्वेराट्रॉल के अन्य प्रमुख स्रोत हैं लाल या बैंजनी अंगूरों का रस और कृत्रिम रूप से सुखाई गई किशमिश। सूर्य का प्रकाश इस रसायन को नष्ट कर सकता है, क्रीजी कहते हैं। इसलिए वही किशमिश लीजिए जिसे धूप में न सुखाया गया हो।
लाल सुरा में भी क्वेर्सेटिन होता है जिस के प्रयोगशाला के जंतुओं पर किए गए प्रयोगशाला के जंतुओं पर किए गए प्रयोग से उसके कैंसररोधी गुणों के बारे में पता चला है। जैव रसायनशास्त्री टेरोंस लेटन के अनुसार यह रसायन बड़ी मात्रा में लाल अंगूरों, लाल और पीली प्याज, ब्रोकोली (इतालवी पत्ता गोभी) और पीले सीताफल में पाया जाता है। लेटन के अनुसार ऐसा लगता है कि क्वेर्सेटिन रसायन पाचन तंत्र में तब तक निष्क्रिय रहता है जब तक जीवाणु उस के साथ कोई रासायनिक क्रिया नहीं करते या शराब के खमीर चढ़ाने वाली नांद में खमीर के साथ उस की कोई क्रिया नहीं होती। इस क्रिया के फलस्वरूप यह प्रकृति के संभवतः सबसे अधिक प्रभावशाली कैंसररोधी रसायन का रूप धारण कर लेता है।भूमध्यसागरीय क्षेत्रों के भोजन की चर्चा होते ही लोगों को तत्काल ही लहसुन और प्याज का ख्याल आ जाता है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से जैव गंधक यौगिकों से भरपूर इन कंदों के आश्चर्यजनक औषधीय गुणों का पता चल रहा है।
परख नली में किए गए प्रयोगों में गंधक के ये यौगिक जीवाणुओं, कवक और विषाणुओं को नष्ट करते हैं। शरीर के भीतर पुराने लहसुन का सत रक्त का थक्का बनने के समय में कमी करता लगता है जिससे रक्त के थक्के जमने और हृदय रोग के खतरे कम हो जाते हैं। लहसुन का रक्त को पतला करने का गुण ऐस्पिरिन के समान हो सकता है। द जनरल ऑव अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन� भारत में किए गए एक अध्यन से प्राप्त जानकारी का हवाला देते हुए बताता है कि हृदय रोग से ग्रस्त 222 रोगियों द्वारा प्रति दिन छह से दस ग्राम लहसुन का सेवन करने से �मृत्यु दर और अघातक रीई़फार्कशनों (रक्त संचारण न होने के कारण मांसपेशी का मृत होना) की संभावना घट जाती है।� (रक्त पतला करने की औषधि का सेवन करने वाले रोगियों को लहसुन के सेवन से पूर्व अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।)
चीन में किए गए संक्रमण संबंधी अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि विविध किस्म के प्याज से भरपूर आहार खाने वाले लोगों में उदर कैंसर की संभावना घट जाती है। इसमें छोटी गांठ वाली सुकंद प्याज, साधारण प्याज और स्फोट प्याज जैसी अन्य वनस्पति जैसे चाइव, शैलॉट शामिल हैं।
जीव जंतुओं पर किए गए अध्ययनों से कई नए वैज्ञानिक प्रमाण सामने आए हैं जो जापान में प्रचलित हरी चाय को शीघ्र ही एक लोकप्रिय पेय का दरजा दिला देंगे। न्यू जर्सी स्थित रटगर्ज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने चूहों को हरी चाय खिलाई तो पता चला कि इन कृंतकों में त्वचा का कैंसर (पराबैंजनी प्रकाश जनित) लगभग 50 प्रतिशत घट गया। वैलहाला, न्यू यॉर्क, स्थित अमरीकी स्वास्थ्य प्रतिष्ठान के रसायन कैंसरजन विभाग के सह प्रमुख फंग लंग शुंग हरी चाय में मिलने वाले एपीगैलोकेटेचिन गैलेट (इजीसीजी) नामक रसायन का अध्ययन कर रहे हैं, और उनके शोध दल को पता चला है कि यह शक्तिशाली प्रति ऑक्सीकारक रसायन चूहो को फेफड़ों के कैंसर से बचाता है।
जापानी पुरुष अमरीकी पुरुषों की तुलना में दोगुना धूम्रपान करते हैं, शुंग कहते हैं, फिर भी उन में फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मृत्यु दर लगभग आधी है। संभवतः यह जापानियों के रोजाना हरी चाय पीने के कारण हो।
प्राच्य देशों में सोयाबीन हजारों वर्षों से प्रमुख आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। जापान की राष्ट्रीय कैंसर केंद्र अनुसंधान संस्था के शोधकर्ता ताकेशी हिरायामा के 1982 में 2,50,000 जापानियों पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि वे लोग जो प्रति दिन सोयाबीन की लपसी का सूप पीते हैं, उन की जठर कैंसर से होने वाली मृत्यु की संभावना उन लोगों की तुलना में बहुत कम है जो कभी-कभार भी यह सूप बिलकुल नहीं पीते। सोयाबीन में प्राकृतिक यप से पाया जाने वाले यौगिक जेनिस्टीन कैंसर उत्पन्न करने वाले जीनों को अवरुद्ध कर देता है। जेनिस्टीन तोफू नामक सोयाबीन के दही, सोया दूध, सोयाबीन से निकाले गए प्रोटीन और अधिकांश सोयाबीन के आटे में पाया जाता है।
सोयाबीन का सिरका एक ऐसी प्रक्रिया से बनाया जाता है जिससे जेनिस्टीन समाप्त हो जाता है। सूक्ष्मजीवविज्ञानी माइकेल पारीजा के अनुसार तो इस के बावजूद पारंपरिक सोया सिरके (खमीर उठा कर) का प्रमुख गंध तत्व-जिसे एचईएमएफ (हाइड्राक्सीएथिल जेथिल-फ्यूरानोन) कहते हैं- अभी तक जंतुओं में खोजे गए अत्यधिक प्रभावशाली कैंसररोधी तत्वों में से एक है।
ग्रीनलैंडवासी एस्कीमो लोगों के स्वास्थ्य का अध्ययन करने पर वैज्ञानिक आश्चर्य में पड़ गए। ये लोग प्रचुर मात्रा में वसा खाते हैं, लेकिन फिर भी इन में हृदय रोग से होने वाली मृतयु दर बहुत कम है। इस का कारण एस्कीमो लोगों के आहार में मछली की प्रचुर मात्रा का होना है। सामन बांगड़ा (मैकरल), हिलसा (हेरिंग) और अन्य मछलियों में ऐसे असाधारण तेल होते हैं जिन्हें वैज्ञानिकों ने ओमेगा-3 वसा अम्ल (फैटी एसिड) नाम दिया है। लंबे समय तक सेवन करने से, मछली के ये तेल रक्त को पतला करने, कोलस्टरॉल को कम करने, शोध प्रतिक्रिया को घटाने, धमनियों के संकुचन और कड़ेपन को कम करने में सहायक प्रतीत होते हैं, और जानवरों में किए गए हाल के शोध के अनुसार वृहदांत्र के कैंसर से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
कोशिका जीवविज्ञानी माइकेल जे. वारगोविच के अनुसार अभी तक जठरांत्र शोध विशेषज्ञों का अपने रोगियों को मछली के तेल के कैप्सूल गटकने की सलाह देने का कोई कारण नहीं मिला है। लेकिन निश्चित है, कि ऐसे आहार की सलाह दी जाए जिस में ठंडे जल में पाई जाने वाली मछलियां भी शामि हों।
आधुनिक आहार - इतालवी पत्तागोभी और उससे संबंधित क्रूसाकार सब्जियों जैसे बंदगोभी, चोकी गोभी (ब्रसूल्ज स्प्राउट), जलकुंभी, करमकल्ला (केल) व अन्य- जिन्हें उन के फूलों की पंखडि़यों की क्रूसाकार संरचना के कारण यह नाम दिया गया है - के प्रति हाल में रुझान आया है। बाल्टीमोर स्थित जांस हॉपकिंज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने मार्च 1881 में बताया कि इतालवी पत्तागोभी का गंधक से भरपूर रसायन सल्फोरैफीन इस गोभी की कैंसररोधी क्रिया का एक महत्वपूर्ण भाग हो सकता है।
सल्फोरैफीन के अलावा आप की मां के ब्रोकोलो खाओ कहने के पीछे अन्य कारण भी थे, न्यू यॉर्क सिटी स्थित निवारक अर्बुद विज्ञान प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जॉन मीक्नोवीच कहते हैं। क्रूसाकार सब्जियों में इंडोल नामक रसायन इतनी प्रचुरता से होते हैं कि वे जानवरों में कैंसर पैदा करने वाले कई पदार्थों को रोकने में सक्षम हैं।
हमारे शोध से पता चला है कि शोधित इंडोल के कैप्सूल एस्ट्रोजन हारमोन को नष्ट करने की प्रक्रिया तेज कर देते हैं जिस से स्तन कैंसर का खतरा कम होता है। मीक्नोवीच कहते हैं। चूहों पर किए गए प्रयोगों से हमें पता चला है कि क्रूसाकार इंडोल स्तन में स्वतः होने वाले अर्बुदों की संभावना, उनके आकार एवं विस्तार को बहुत अधिक घटा देता है।
निकट भविष्य में कैसे आहार के प्रति लोगों की रूचि बढ़ेगी? उनमें से एक हैं नींबू जाति के फल जिन्हें लंबे समय तक विटामिन सी का श्रेष्ठ स्रोत माना जाता रहा है, लेकिन अब वैज्ञानिक उनमें स्वास्थ्यप्रद रसायनों के भंडार होने की संभावना के बारे में अध्ययन कर रहे हैं। आहार विशेषज्ञ डॉ. जेम्स सरडा के अध्ययन में उच्च कोलस्टरॉल स्तर वाले व्यक्तियों को दो चकोतरो के बराबर चकोतरे में पाए जाने वाले रसायन पेक्टिन के कैप्सूल प्रति दिन चार सप्ताह तक दिए गए। इन सभी का कोलस्टरॉल स्तर औसतन लगभग आठ प्रतिशत कम हो गया। कोलस्टरॉल स्तर में एक प्रतिशत कमी से हृदय रोग का खतरा दो प्रतिशत कमी से हृदय रोग का खतरा दे प्रतिशत कम हो जाता है। सरडा कहते हैं, इसलिए इन लोगों में हम ने हृदय रोग का खतरा औसतन लगभग 16 प्रतिशत कम कर दिया। प्रयोगशाला के जानवरों में जिन को एक वर्ष तक उच्च वसा युक्त आहार दिया गया था और जिन में धमनियों का संकुचन और कड़ापन था, उनमें से पेक्टिन दिए जाने वालों की धमनियों में, पेक्टिन न लेने वालों की अपेक्षा 62 प्रतिशत कम प्लाक पाया गया। पेक्टिन एक घुलनशील रेशा है जो नींबू जाति के फलों में होता है, रस में नहीं, सरडा के अनुसार, हम कह सकते हैं कि प्रति दिन दो चकोतरे खाने से हृदय रोग चिकित्सक की आवश्यकता नहीं होगी।
अब जबकि शोधकर्ता विशेष आहारों के रोग प्रतिरोधी तत्वों का अध्ययन कर रहे हैं तो यह ध्यान रहे कि हमारा निकट उद्देश्य एक अधिक स्वास्थ्यप्रद आहार खोजना है। नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान की सलाह के अनुसार मांस और वसा के सेवन को सीमित कर हमें अधिक फल, सब्जियां, अनाज और फलियां खानी चाहिए।
एक ही प्रकार के आहार पर अधिक बल देना मूर्खतापूर्ण है, पोषाहार अनुसंधानकर्ता हरबर्ट पीयरसन कहते हैं। हम एक प्रकार का भोजन नहीं करते हैं। हम कई प्रकार के खाद्य पदार्थों का मिश्रण खाते हैं जिन से हमें हर प्रकार के पोषक एवं रोगों से बचाव करने वाले तत्व मिल सकें। हमें अभी उन खाद्य पदार्थों के बारे में बहुत कुछ जानना है जो हमारे शरीर का पोषण और उपचार करते हैं, लेकिन यह हमारा दायित्व है कि हम अपने खाद्य पदार्थों के चुनाव में स्वाद के साथ बुद्धि का भी प्रयोग करें।
यह पुरानी कहावत सही है- आप जैसा खाते हैं, वैसा हीआप का व्यक्तित्व बनता है, पीयरसन अंत में कहते हैं। और आप को यह चुनाव प्रतिदिन करना है।