स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 23 December 2015 03:21:06 AM
बैंगलूरू। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय के दूसरे दीक्षांत समारोह में शामिल हुए। यह 2009 में प्रारंभ किए गए 6 विश्वविद्यालयों में एक है, ये विश्वविद्यालय अधिकतर देश के पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित किए गए हैं, ताकि लोगों की शिक्षा तक पहुंच बढ़ सके। राष्ट्रपति ने कहा कि कर्नाटक ऐतिहासिक भूमि है और यह बहु-सांस्कृतिक, बहु-नस्ल और बहु-भाषाई स्वभाव की भूमि है। उन्होंने कहा कि बौद्ध मत, जैन मत, वीर-शैववाद या लिंगायत और इस्लाम यहां फले-बढ़े हैं, वचन आंदोलन, सूफी संत, कीर्तनकार तथा तत्व पदकारों ने इस क्षेत्र की जनता के मन को गढ़ा है, ऊर्दू और फारसी साहित्य तथा कन्नड़ लोक साहित्य यहां फले-फूले हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि यहां के दो विश्वविद्यालयों-अनुभव मनटप वासवन्ना तथा महमूद गवन का मदरसा में देश और विदेश से बुद्धिजीवि आते थे, यहां प्राचीन बौद्ध शिक्षा केंद्र सन्नति तथा नगवी घटिकास्थान की भी चर्चा करनी होगी। समकालीन शैक्षिक संस्थाओं का दायित्व ज्ञान की इस परंपरा को आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि मैं इस काम में कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय की भूमिका को महत्वपूर्ण रूप से देखता हूं, नया विश्वविद्यालय होने के बावजूद यह विश्वविद्यालय पूर्ववर्ती शिक्षाविदों के तय मानकों को प्राप्त करने के लिए शैक्षिक प्राथमिकताएं तय कर सकता है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय ने कम समय में शानदार प्रगति की है, विश्वविद्यालय क्षेत्र के युवाओं की नियति तय करने की दिशा में सही तरीके से आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि मजबूत शिक्षा प्रणाली के आधार पर अतीत में देशों ने गरीबी, सामाजिक बुराइयों तथा आर्थिक उथल-पुतल का सामना किया है। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में ज्ञान का खूब प्रचार-प्रसार हुआ, हमारे यहा नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी तथा ओदंतपुरी जो महान शिक्षा केंद्र हुए, ये संस्थान विद्वानों की ज्ञान-पीपासा बढ़ाते थे, लेकिन अब स्थिति भिन्न है, हमारे उच्च शिक्षा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में पिछड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्ष में विभिन्न अवसरों पर मैं भारतीय संस्थानों से आग्रह कर रहा हूं कि वे अपने परिचय को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने के लिए सक्रिय दृष्टिकोण अपनाएं, ऊंची रैंकिग से मनोबल बढ़ता है, विद्यार्थियों के लिए रोज़गार का अवसर बढ़ता है और अच्छे शिक्षकों और विद्यार्थियों को आकर्षित करने में मदद मिलती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि परिवर्तन के साथ प्रगति आती है। यह सत्य शिक्षा प्रणाली के साथ भी लागू होता है, विश्वस्तरीय फैकल्टी के बल पर ही विश्वस्तरीय शिक्षा संभव है। उन्होंने कहा कि हमारे संस्थानों को फैकल्टी विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए, इससे सैद्धांतिक ढांचे में परिवर्तन होता है और पुराने विचारों की जगह नए विचार लेते हैं, जानने की उत्सुकता के साथ हमारे शिक्षक अपने-अपने क्षेत्रों में नवीनतम जानकारी हासिल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि 2016 तक 40 करोड़ से अधिक विद्यार्थी किसी न किसी रूप में शिक्षा ले रहे होंगे। उन्होंने कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली को तीन चुनौतियों-पहुंच, वहनीयता और गुणवत्ता से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि यह बात इस तथ्य से मेल खाती है कि 2022 तक 30 करोड़ युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देने का लक्ष्य तय किया गया है और मेरे विचार से टेक्नोलॉजी नेतृत्व वाले माडल शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण देने में समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं, उदाहरण के लिए ओपन आनलाइन कोर्सेज 2008 के बाद से बड़े पैमाने पर आए हैं, विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों ने यह टेक्नोलॉजी माडल अपनाया है। उन्होंने कहा कि एक अच्छी शिक्षा प्रणाली वह है जो विद्यार्थियों में सामाजिक दायित्व की भावना को विकसित करे, शैक्षिक ढांचे में विद्यार्थियों को समाज के साथ सहभागिता करने लायक बनाया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए ऊंचे दर्जे के विद्यार्थी को पास-पड़ोस के अच्छे स्कूल में शिक्षा देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।