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Monday 22 February 2016 05:59:18 AM
पटना। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने पूर्वी राज्यों में दूसरी हरित क्रांति के संबंध में किए जा रहे कार्यों की समीक्षा का दायित्व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पटना को सौंपा है। राधामोहन सिंह ने आज पटना में संस्थान के 16वें स्थापना दिवस के मौके पर इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि संस्थान अपनी विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए दूसरी हरित क्रांति के क्षेत्र में हो रहे कार्यों की समीक्षा तथा इसमें आने वाली विभिन्न कठिनाइयों से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को अवगत करवाता रहेगा, ताकि दूसरी हरित क्रांति के क्षेत्र में पूर्वी राज्य तीव्रता के साथ आगे बढ़ सकें, इस कार्य के लिए जो संसाधनों की आवश्यकता होगी, उसे उपलब्ध कराए जाएंगे। उन्होंने कहा कि दूसरी हरित क्रांति, जो न सिर्फ अनाज, दलहन, तिलहन तक सीमित है, बल्कि श्वेत क्रांति, नीली क्रांति में भी पूर्वी राज्यों में विकास और उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं।
राधामोहन सिंह ने कहा कि कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान इस संबंध में विस्तृत रूप से सभी राज्यों से परामर्श कर भारत सरकार को अवगत कराएगा। उन्होंने कहा कि पूर्वी क्षेत्र में यही एकमात्र संस्थान है, जो खेती से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर कार्य कर रहा है। उन्होंने संस्थान में 343.84 लाख रूपए की कुल लागत से बनाए गए कृषक छात्रावास को पूर्वी राज्यों के किसानों के लिए समर्पित किया। इस छात्रावास में कुल सात कमरे, तीन डॉरमेट्री तथा एक प्रशिक्षण हॉल है। इस मौके पर कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले किसानों और कृषि संबंधी शोध कार्यों के प्रचार एवं प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पत्रकारों को सम्मानित किया गया। राधामोहन सिंह ने कहा कि खेती में ऊर्जा की बहुत बड़ी आवश्यकता होती है, इसलिए हमारी सरकार सौर ऊर्जा के कृषि में उपयोग पर भी विशेष ध्यान दे रही है।
कृषि मंत्री ने कहा कि पूर्वी क्षेत्र में साल भर में 250 से 300 दिन गर्म धूप खिली रहती है, जिसकी सौर ऊर्जा क्षमता 4.0 से 4.3 किलोवाट प्रति वर्गमीटर प्रतिदिन है, इस ऊर्जा का उपयोग प्रकाश करने के अलावा भूजल दोहन, कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव वाली मशीनों के उपयोग, मत्स्य पालन के जलाशयों में ऑक्सीजन की मात्रा को संतुलित करने इत्यादि में किया जा सकता है। कृषि मंत्री ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में पूर्वी क्षेत्र चावल, सब्जी एवं मीठे जल की मछलियों के उत्पादन में अग्रणी है, यह क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर चावल, सब्जी एवं मछली उत्पादन में क्रमशः 50 प्रतिशत, 45 प्रतिशत एवं 38 प्रतिशत की भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है, यदि इस क्षेत्र के समुचित विकास पर ध्यान दिया जाए तो यह क्षेत्र अनाज के साथ ही दलहन, तिलहन, फल-सब्जियों, दुग्ध एवं मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम है।
राधामोहन सिंह ने कहा कि कृषि यांत्रिकीकरण, जलवायु परिवर्तन का खेती पर दुष्प्रभाव, आर्द्र भूमि की अधिकता, अत्यधिक जनसंख्या घनत्व, भूमिहीन किसानों की आजीविका, 100 लाख हेक्टेअर धान परती भूमि का विकास एक महत्वपूर्ण चुनौती है, इस दिशा में पूरे जोश से कार्य करने की आवश्यकता है। कृषि मंत्री ने कहा कि यह संस्थान न केवल धान, गेहूं या दलहन, तिलहन के क्षेत्र में कार्य कर रहा है, बल्कि फसल विविधीकरण, पशुधन विकास, मत्स्य प्रबंधन, जल प्रबंधन, बागवानी, क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य कर रहा है। संस्थान का कार्य सातों पूर्वी राज्यों में टिकाऊ खेती के लिए कार्य करना है, जिसका भौगोलिक क्षेत्रफल मात्र 22.5 प्रतिशत है, जबकि जनसंख्या 34 प्रतिशत है, इसी प्रकार कुल पशुधन का 31 प्रतिशत पशुधन भी इस क्षेत्र में पाया जाता है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस भूभाग में प्राकृतिक संसाधन जल, जमीन, जंगल इत्यादि पर कितना ज्यादा दवाब है, इसके बावजूद इस पूर्वी भू-भाग पर पूरे देश की खाद्य सुरक्षा निर्भर करती है।