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महिलाओं का केवल एक दिन गुणगान?

नारी अब न तो अबला है और ना ही पैरों की जूती

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष आलेख

Friday 25 May 2018 06:06:00 PM

नाज़िया इलाही खान

नाज़िया इलाही खान

international women's day

'महिलाओं का दिन' सुनकर बड़ा अजीब लगता है! क्या हर दिन केवल पुरुषों का है, महिलाओं का नहीं? पुरुष बहुल समाज में महिलाओं का एक दिन निश्चित करके संभवतया यह जताने की चेष्टा की गई है कि प्रकृति की यह रचना अभी पूरी नहीं हुई है, इसे कुंदन बनाने के लिए अभी ना जाने कितनी भट्टियों में झोंका जाएगा, निखार लाया जाएगा, तब उसे पुरुषों के बराबर होने का 'श्रेय' प्राप्त हो सकता है, लेकिन समाज को अब यह समझ लेना चाहिए कि युग ने करवट ले ली है, आज की नारी पुरुषों से किसी मामले में पीछे नहीं है। एक समय था, जब महिला को अबला कहकर पुकारा जाता था और अज्ञानी बुद्धिजीवी इसे नरक का द्वार और अभिमानी पुरुष पैरों की जूती कहकर अस्वीकार करते थे। समय बदल गया है, आज नारी न तो अबला है और ना ही उसे पैरों की जूती कहा जा सकता है। सभी बाधाओं, पूर्वाग्रह और भेदभाव के बावजूद महिलाएं आज राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, अंतरिक्ष सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं।
हिम्मत एवं दृढ़ता के साथ आरोप सहते हुए, गालियां सुनते हुए आज जीवन के युद्ध क्षेत्र में अपने आंचल को ध्वज की भांति प्रयोग कर रही हैं। सेना, वायुसेना, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में नित नए उदाहरण स्थापित कर रही हैं। सदियों से समाज ने स्त्री को आदर्श और परंपराओं की घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का काम किया है, मगर औरत कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, पीटी उषा, किरण बेदी, कंचन चौधरी भट्टाचार्य, वंदना शिवा, चंदा कोचर, सुषमा मुखोपाध्याय, कप्तान दुर्गा बनर्जी, लेफ्टिनेंट जनरल पुनीत अरोड़ा, साइना नेहवाल, निरुपमा राऊ, कृष्णा पूनिया, ऐरोम शर्मीला, मेघा पाटेकर, अरुणा राय जैसी शक्ति बन गई है। वह समाज को नई दिशा दिखा रही है और विश्व स्तर पर नाम रोशन कर रही है। महिला शिक्षा-प्रशिक्षण और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-दिन खुलते जा रहे हैं। उनके लिए नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है। हाल के वर्षों में महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया है, अतीत के तीन दशकों में महिलाओं ने कॉर्पोरेट में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। सामाजिक नैतिकता के प्रतिबंध से गुजरते हुए घर और कार्यस्थल पर स्वयं को व्यापार और प्रशासन में सफलता से स्थापित किया है।
भारत में महिला व्यावसायिक वर्ग ने नए कारोबार आरम्भ करने और उन्हें सफलतापूर्वक चलाने के कई उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। भारत में सफल महिला उद्यमियों में राधा भाटिया (अध्यक्ष बर्ड समूह), रानी श्रीनिवासन (अध्यक्ष और सीईओ, टरैक्टरस एंड फार्म इक्विपमेंट्स), प्रिया पॉल (अध्यक्ष एजी पार्क होटल), शहनाज़ हुसैन (सीईओ शहनाज हरबलस इंक), एकता कपूर (संयुक्त प्रबंध निदेशक बालाजी टेली फिल्म्स) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में सबसे अधिक स्थान प्राप्त करने वाली महिलाओं में इंदिरा कृष्णमूर्ति (अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पेप्सी), नेनालाल किदवई (समूह महाप्रबंधक और कंट्री हेड एचएसबीसी इंडिया), चंदा कोचर (सीईओ और प्रबंध निदेशक आईसीआईसी बैंक)। ये वो नाम हैं, जिन्होंने महिला के नेतृत्व और क्षमता के अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। अरस्तू ने कभी कहा था कि 'औरतें कुछ सुविधाओं के अभाव के कारण महिलाएं हैं, मगर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे सभी सतही नियम और शर्तों का कोई मतलब नहीं रह गया है, महिला अपनी क्षमता के दम पर खुद को बेहतर और मजबूत साबित कर रही है।
औरत अगर आगे बढ़ना चाहती है तो उसके अधिकारों का हनन क्यों किया जा रहा है? आज भी समाज में बेटी पैदा होने पर नाक भौं चढ़ा ली जाती हैं। कुछ माता-पिता बेटे-बेटियों में अंतर करते हैं, तो आखिर क्यों? क्या केवल यह एहसास कराने के लिए कि वह स्त्री है? गली कूचों में होने वाले महिलाओं के अपमान की सैकड़ों घटनाएं खुली कहानी है, ऐसे में महिलाओं का एक दिन मनाकर समाज हमें क्या बताना चाहता है? जब तक समाज इस दोहरी भूमिका से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक महिला की स्वतंत्रता अधूरी है। सही मायने में महिला दिवस का उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, वैचारिक रूप से पूर्ण स्वतंत्रता मिलेगी, जहां उन्हें कोई परेशान नहीं करेगा, भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, बलात्कार नहीं किया जाएगा, दहेज के लालच में महिला को सरेआम जिंदा नहीं जलाया जाएगा, उसे बेचा नहीं जाएगा, समाज के हर महत्वपूर्ण निर्णय में उसके दृष्टिकोण को समझा जाएगा। आवश्यकता समाज में एक जुनून पैदा करने की है, जिसमें हर औरत महिला होने पर गर्व करे, ना कि पश्चाताप कि काश मैं लड़का होती!

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