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Friday 1 April 2016 01:39:55 AM
पणजी। आचार्य अभिनवगुप्त सहस्त्राब्दी समारोह की 'अभिनव संदेश यात्रा' का विधिवत शुभारंभ 31 मार्च को गोवा और तमिलनाडु से हुआ। गोवा के प्रसिद्ध शिव मंदिर के महंत भूषण नीलकंठ भावे के नेतृत्व में मंत्रोच्चार और मंगलाचारण के साथ संदेश यात्रा शुरू हुई। यात्रा के पहले चरण में ग्रुप बी ने गोवा के पांच प्रमुख मंदिरों के बीच जाकर पूजा अर्चना की, इसके बाद कश्मीर से विस्थापित होकर आए सारस्वत ब्राह्मणों के बीच जनसंपर्क भी किया गया। दूसरी ओर ग्रुप ए ने तमिलनाडु के कामाक्षी मंदिर में प्रात: कलश पूजन करके यात्रा का शुभारंभ किया। संदेश यात्रा को दो हिस्सों में बांटा गया है, इसका समापन 10 जून को जम्मू-कश्मीर में होगा। ग्रुप ए की संदेश यात्रा का उद्घाटन चंद्रशेखरेंद्रा सरस्वती विश्व महाविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रोफेसर श्रीनिवासन ने किया।
अभिनव संदेश यात्रा के अवसर पर तमिलनाडु के प्रचारक राजेंद्रन और अजय भारती मौजूद थे। प्रोफेसर श्रीनिवासन ने कहा कि दक्षिण से उत्तर तक भारत के हर कोने में अभिनवगुप्त के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना इस संदेश यात्रा का लक्ष्य है, यह पूरे भारत को एक सूत्र में जोड़ेगी। ग्रुप बी की यात्रा की संयोजक शक्ति मुंशी ने कहा कि इस यात्रा का उद्देश्य पूरे भारत को एकात्मता के सूत्र में पिरोना है, इसके साथ ही कश्मीर से विस्थापित हिंदू समाज को पुन: एक बार उनकी जन्मभूमि का स्मरण कराना है। शक्ति मुंशी ने कहा कि संदेश यात्रा के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे कश्मीरी समाज के लोगों से जनसंपर्क किया जाएगा और उनसे कश्मीर चलने की अपील की जाएगी। उन्होंने बताया कि जहां-जहां कश्मीरी समाज के लोग रहते हैं, उनसे मिलकर वहां की मिट्टी और पवित्र नदी के जल को एक कलश में एकत्रित किया जाएगा, जिसे यात्रा समाप्ति के बाद कश्मीर में भैरव गुफा तक ले जाया जाएगा। भैरव गुफा वह पवित्र स्थान है, जहां आज से हजारों साल पहले कश्मीरी शैव दर्शन के प्रकांड विद्वान आचार्य अभिनवगुप्त अपने शिष्यों के साथ शिव में विलीन हुए हैं।
ज्ञातव्य है कि आचार्य अभिनवगुप्त कश्मीरी शैव दर्शन के प्रखर विद्वान और महान दार्शनिक थे, आगम व प्रत्यत्भिज्ञा दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य होने के साथ ही वे साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। परमार्थसार, प्रत्यत्भिज्ञा विमर्शनी, गीतार्थ संग्रह जैसे ग्रथों की रचना करने के साथ ही उन्होंने भारतमुनि के नाट्यशास्त्र और आनंदवर्धन के ध्वन्यालोक पर टीका भी की, जो आज कालजयी कृतियों में गिनी जाती है। अभिनवगुप्त को मंत्र सिद्ध साधक और भैरव का अवतार माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर अपनी भूमिका का निर्वहन कर वे अपने शिष्यों के साथ शिव स्तुति करते हुए कश्मीर के बड़गाम के बीरवा नामक ग्राम में एक गुफा में शिवलीन हो गए। इस घटना के एक हजार साल पूरे होने की स्मृति में अभिनवगुप्त सहस्त्राब्दी समारोह मनाया जा रहा है और देशभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
अभिनव संदेश यात्रा भी इसी कड़ी का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसके जरिए कश्मीर को शेष भारत से और शेष भारत के लोगों को कश्मीर से जोड़ा जा सकेगा। यात्रा में शामिल जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के अवनीश राजपूत ने बताया कि यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य अभिनवगुप्त के महाप्रयाण के सहस्त्राब्दी समारोह के आयोजन का अवसर हमें प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के इस पुरोधा का जीवन हम सबके लिए प्रेरणादायी है, दार्शिनक स्तर पर समन्वय के जो सूत्र आचार्य अभिनवगुप्त ने छोड़े हैं, उसके सिरे पकड़कर आज उपस्थित दार्शनिक, लौकिक और आध्यात्मिक समस्याओं के समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है।