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Wednesday 13 April 2016 05:03:35 AM
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने संत गाडगे प्रेक्षागृह में हिंदी-उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी के सम्मान समारोह में साहित्यकार एवं गीतकार कुंवर बेचैन को 'निराला सम्मान' तथा शायर मुन्नवर राना को 'निशान-ए-ग़ालिब सम्मान' से अलंकृत किया। समारोह में 'साहित्य शिरोमणि अवार्ड' आईएएस अधिकारी रहे योगेंद्र नारायण, उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद के निदेशक गौरव कृष्ण बंसल, केके बिड़ला ग्रुप के सुरेश, नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष बलदेव शर्मा, कवि सर्वेश अस्थाना और सागर त्रिपाठी को दिया गया। उर्दू की सेवा के लिए अरबी फारसी-उर्दू विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलपति खान मसूद, प्रोफेसर सगीर इब्राहिम, डॉ जुबैर फारूख, अंबर बहराइची, माजिद देवबंदी, मोहम्मद सगीर बुखारी (कतर), हबीब नबी (मस्कट), तारिक कमर (ईटीवी उर्दू) को सम्मानित किया गया।
समाज सेवा सम्मान मुरधीधर आहूजा एवं डॉ नितिन सूद को दिया गया। पुस्तक के लिए विशेष सम्मान से डॉ हसन काज़मी, मोहम्मद खालिद और गौरव कृष्ण बंसल को सम्मानित किया गया। राज्यपाल ने गौरव कृष्ण बंसल के उपन्यास 'चबूतरा' तथा शाहिदा सिद्दीकी के काव्य संग्रह 'लम्हा-लम्हा' का विमोचन भी किया। राज्यपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदुस्तान ही एक ऐसा देश है, जहां अनेक भाषाएं प्रचलित हैं, हिंदी सभी भाषाओं की बड़ी बहन है, हिंदी भाषा के बाद सबसे ज्यादा उर्दू भाषा सभी प्रदेशों में बोली और समझी जाती है। उन्होंने कहा कि हिंदी और उर्दू देश की बड़ी भाषाएं हैं। राम नाईक ने सम्मान समारोह में अंग्रेजी में प्रशस्ति पत्र देखकर सुझाव दिया कि हिंदी और उर्दू भाषा की अपनी श्रेष्ठता है और अच्छा हो कि सम्मान पत्र की भाषा भी भारतीय हो। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हिंदी और उर्दू के श्रेष्ठ साहित्य को अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवादित किया जाए। उन्होंने कहा कि पूरा समाज अभियान चलाकर इस कार्य को करे तो दूसरी भाषाओं का साहित्य पढ़ने को मिलेगा।
लखनऊ के महापौर डॉ दिनेश शर्मा और अवार्ड कमेटी के सचिव अतहर नबी ने भी अपने विचार रखे। सम्मान समारोह में डॉ अम्मार रिज़वी, सिराज़ मेहदी, डॉ इर्तिजा करीम और हिंदी और उर्दू के जाने-माने कवि एवं शायर उपस्थित थे। सम्मान समारोह के बाद कवि सम्मेलन-मुशायरा हुआ, जिसमें सागर त्रिपाठी ने पैगंबर मोहम्मद पर नात-पाक प्रस्तुत की और सरस्वती वंदना भी की। शायर मुन्नवर राना ने माँ और देश पर अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। उन्होंने चंद शेर पढे़ कि ऐसे उडूं कि जाल न आए खुदा करे, रस्ते में अस्पताल न आए खुदा करे, यह मादरे वतन है मेरा, इस पर कभी जवाल न आए खुदा करे।