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Wednesday 27 April 2016 07:06:30 AM
लखनऊ। हिंदुस्तान में ब्रिटिश शासन में ईस्ट इंडिया कंपनी ने दो आने का यह सिक्का चलाया था। इतिहासविदों के अनुसार तब यह सिक्का खूब चला। इतिहासकार कहते हैं कि वास्तव में हिंदुओं को रिझाने के लिए यह अंग्रेजों की नीति का जीता-जागता उदाहरण है। फर्क इतना है कि उस समय यह सिक्का जोर-शोर से चला और यदि आज देश में इस तरह का सिक्का चला दिया गया होता तो धर्मनिर्पेक्षवादियों ने देश को सर पर उठा लिया होता। यूएन भी इस विवाद में कूद पड़ता। लोकसभा नहीं चल पाती। फतवे आ जाते।
ब्रिटिश काल में इस सिक्के का विरोध करने की किसी की हैसियत नहीं थी। ऐसा कोई दृष्टांत भी नहीं है, जिसमें उस वक्त इस सिक्के के चलन को लेकर धार्मिक आधार पर झगड़े झंझट सामने आए हों। समझदार लोगों ने अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति को समझते हुए इसकी अनदेखी भी की होगी और वैसे भी इस प्रकार के मामलों में अंग्रेजी शासन के सामने आज के जैसा वितंडा खड़ा करने की किसी की हिम्मत भी नहीं रही होगी। लगता है कि इस सिक्के में जो आकृति है, उसके पीछे अंग्रेजों की हिंदू समुदाय को खुश करने की गज़ब की रणनीति रही होगी?