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बेचारा पाकिस्‍तान!

शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

पाकिस्तान-Pakistan

पाकिस्तानको एक बेचारा पाकिस्तान कहें तो यह अतिश्योक्ति नही होगी। पाकिस्तान भले ही इकसठ साल पहले एक देश के रूप में वजूद में आया हो लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि सत्ताधारी वर्ग एवं सरकार की शोषक नीतियों गरीबी, बेरोजगारी, खाद्यान्न संकट, अत्याचार, सामंतवादी व्यवस्था, सैन्य तानाशाही और सबसे बढ़कर आतंकवाद ने पाकिस्तान को एक विफल राष्ट्र के रूप में खड़ा कर दिया है। पाकिस्तान की सेना देश में अस्थिरता पैदा कर सत्ता पर काबिज होना चाहती है। दक्षिण एशिया मामलों के जानकार और शिक्षाविद् खलील भटूट का कहना है कि अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होने के बाद धर्म के नाम पर भारत से अलग हुए पाकिस्तान में लाखों लोग इस उम्मीद के साथ गए थे कि उन्हें समानता और विकास पर आधारित एक नया आशियाना मिल गया है। लेकिन हिन्दू, सिख और मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक हिंसा और घृणा के बाद पाकिस्तान में आज भी गरीबी और जलालत का ही दौर है। भारत से अपना घर-बार छोड़ कर गए लाखों मुसलमानों के सपनों को सत्ताधारी वर्ग, सामंतवादी व्यवस्था, सैन्य तानाशाही आदि ने धूल में मिला दिया है। मुम्बई पर आतंकी हमले के बाद लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेटरों को निशाना बनाया जाना एक विफल राष्ट्र के रूप में पाक की छवि प्रस्तुत करता है।
इंस्टीटयूट आफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस के टी खुश्चेव ने कहा कि आर्थिक संकट के बीच पाकिस्तान में आतंकवाद उसके लिए गंभीर चुनौती बन गया है और उसके उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत, आतंकवाद के ऐसे गढ़ बन गए हैं, जिन्‍होंने इस सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने दायरे में ले लिया है। खुश्चेव का कहना है कि मुंबई पर आतंकी हमले के बाद भारत-पाक के बीच बढ़े तनाव के मद्देनजर पाकिस्तान ने आतंकवादियों के खिलाफ अभियान को लगभग रोक दिया। इसके कारण तालिबान अल-कायदा एवं अन्य आतंकवादी संगठनों को अपना आधार मजबूत बनाने का मौका मिल गया, उन्होंने स्वात घाटी में तो अपना साम्राज्‍य ही स्‍थापित कर लिया है। फाटा क्षेत्र में विशेष तौर पर वजीरिस्तान में पाक सुरक्षा बलों ने तालिबान के समक्ष आत्मसमर्पण ही कर दिया है। इसके बाद ही पाक सरकार को तालिबानी आतंवादियों से समझौता करना पड़ा और शरियत लागू करने की उनकी मांग माननी पड़ी।
विदेशी मामलों के अनेक विशेषज्ञों का भी कहना है कि लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमले के बाद आईएसआई के पूर्व प्रमुख हामिद गुल ने हमलावरों के भारत की ओर से आने की आशंका व्यक्त की। पाकिस्तान सरकार ने हालांकि इस पर कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि पाक सरकार ने इस सम्बंध में इसलिए कुछ नहीं कहा क्योंकि यह दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि पाक सरकार ने भारत से बेहतर संयम बरता है और मुम्बई पर आतंकी हमले से उसका कुछ लेना देना नहीं है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई वहां इतनी अस्थिरता फैलाना चाहती है ताकि लोगों में धारणा फैल जाए कि पाकिस्तान की जनतांत्रिक सरकार हालात पर काबू नहीं कर सकती है। वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मतभेद का फायदा उठा कर एक बार फिर सत्ता पर कब्जा कर लेना चाहती है, इसलिए पाकिस्तान में कभी तख्ता पलट भी हो सकता है।
उधर लाहौर में श्रीलंकाई खिलाड़ियों पर हमले को लेकर पाकिस्तान की बयानबाजियां उसे विश्‍व समुदाय में और ज्‍यादा संदिग्‍ध बना रही हैं। उसकी सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों में तालमेल का कितना अभाव है, यह इस हमले में सामने आया है। पहले पाकिस्तान ने हमले में भारत का हाथ बताया और उसके बाद पाकिस्‍तान सरकार का बयान आया कि इसमें भारत का कोई हाथ नहीं है बल्‍कि अलकायदा का इसमें हाथ नजर आता है। इसी बीच पाकिस्‍तान ने इसमें लिट‍टे को भी घसीटने की कोशिश की थी लेकिन यह कार्ड भी टिक नहीं सका। खिलाड़ियों पर अंधाधुंध फायरिंग के कुछ ही देर बाद आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहमान मलिक ने इसमें 'विदेशी हाथ' कहा था। जब देखा गया कि हमलावर तो वहां से टहलते हुए निकले हैं तो कहा जाने लगा कि सुरक्षा व्‍यवस्‍था लचर थी। पाकिस्‍तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी सुरक्षा में चूक को जिम्मेदार ठहराया और साफ कह दिया कि पाकिस्तान के पास इस हमले में भारत के खिलाफ सबूत हैं कहां? पाकिस्तान में ही सवाल उठ रहा है कि आखिर किस आधार पर ये बयानबाजियां हो रही हैं।
पाकिस्तान के प्रमुख अखबारों ने भी अपने संपादकीय में कहा है कि हमले के कुछ ही मिनट बाद इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा देना बेतुका था। अब तक न तो किसी हमलावर को पकड़ा गया और न ही कोई अन्य सुबूत मिले, फिर भी भारत को घसीटने का कोई मतलब नहीं बनता। यहां के 'डेली टाइम्स' ने तो यहां तक लिखा है कि पाकिस्तान के ऐसी हरकतों से भारत के साथ संबंध और ज्‍यादा खराब ही हो रहे हैं। पाकिस्तानी अखबारों ने सरकार को सलाह दी है कि वह दूसरों पर दोष मढ़ने के बजाय अपने देश में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दे, क्योंकि अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि पाकिस्तान असुरक्षित देश बन चुका है। पाकिस्तान में इससे ज्‍यादा और क्‍या होगा कि पूर्व राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने लाहौर में हमलावरों को जवाब नहीं देने के लिए सुरक्षा बलों को आड़े हाथों लिया है। मुशर्रफ ने कहा कि हमला किसी सूनसान इलाके में नहीं हुआ था, ऐसे में पहले तो सुरक्षा बलों को हमलावरों को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए था, और वहां मौजूद आम लोगों को भी हमलावरों को पकड़ने के लिए आगे आना चाहिए था। एक वीडियो में देखा गया कि हमलावर लाहौर की गलियों से इत्मिनान से निकल गए। दूर-दूर तक उनके पीछे एक सिपाही भी नहीं था।
इन हमलों के आधार पर भारत, श्रीलंका को साथ लेकर पाकिस्‍तान पर दबाव बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है हालांकि कोलंबो की दिलचस्पी लिट्टे को घेरने में ज्यादा है। यही वजह है कि श्रीलंका अपने क्रिकेटरों पर हुए हमले में तमिल उग्रवादियों के शामिल होने की बात भी इसकी जांच में शामिल करना चाहता है। श्रीलंका चाहता है कि लाहौर की घटना में लश्कर के साथ लिट्टे की भूमिका का भी पता लगाया जाए। जाहिर है कि पाकिस्तान को यह कूटनीतिक दृष्टि से ज्यादा ठीक जंचेगा। वैसे भी लाहौर हमले की वजह से आतंकवाद के मुद्दे पर घिरते जा रहे इस्लामाबाद के नुमांइदे दूसरे मुल्क में मौजूद आतंकवादी संगठनों पर आरोप मढ़ने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहेंगे।
श्रीलंका का मकसद तो केवल लिट्टे पर दबाव बनाना है। लाहौर हमले के परिप्रेक्ष्य में कोलंबो में श्रीलंकाई विदेश मंत्री ने इस दिशा में खासा प्रयास भी किया है। श्रीलंकाई मंत्री ने पाकिस्‍तान के उन बयानों को आधार बनाया है जिनमें उन्होंने कहा था कि आतंकवादियों ने हमला क्रिकेटरों को बंधक बनाने की मंशा से भी किया हो सकता है। यह कहने की जरूरत नहीं कि श्रीलंका के खिलाड़ियों के बंधक होने पर फायदा किसे होता। कुछ दिनों में श्रीलंका में सेना और खुफिया एजेंसी के तमाम अधिकारियों से बातचीत का ब्‍यौरा सामने आ जाएगा। पाक अधिकारियों को इससे जो भी हासिल हो, लेकिन श्रीलंका, पाकिस्‍तान का इस्तेमाल अपने कूटनीतिक मकसद के लिए जरूर करेगा।

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