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Thursday 11 August 2016 06:33:35 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने भारतीय हरित कृषि परियोजना पर आयोजित राष्ट्रीय प्रारंभिक कार्यशाला के उद्घाटन में कहा है कि भारतीय कृषि को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें एक तरफ बढ़ती हुई आबादी के लिए खाद्य सामाग्री की आपूर्ति की चुनौतियां हैं और दूसरी प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग और कृषि भूमि पर बढ़ते हुए दबाव का सामना बड़ी चुनौती है, जिसका अधिकांश किसान भाईयों को सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन एवं इसके फलस्वरूप जो विपरित परिस्थितियां पैदा हो रहीं हैं, उन सबका प्रभाव हम देख ही रहे हैं, बावजूद इसके मोदी सरकार ने आगामी 6 वर्ष में किसानों की आय को दुगुना करने का लक्ष्य रखा है, जो निश्चित रूप से हमारे पास बड़ी जिम्मेवारी है और हम इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं।
राधामोहन सिंह ने कहा कि भारत की जैव विविधता सम्मेलन को प्रस्तुत 5वीं राष्ट्रीय रिपोर्ट इस बात को इंगित करती है कि कृषि के विस्तार और कृषि तीव्रता में वृद्धि के कारण भूमि उपयोग में परिवर्तन से देश के कई भागों में अत्यधिक दबाव पैदा हुआ है और यह दबाव मुख्य रूप से वन क्षेत्रों में कमी और वन क्षेत्रों के विखंडित, वेट लैंड समाप्त होने एवं चारागाह मैदानों को कृषि क्षेत्र में परिवर्तित होने के कारण हुआ है, इससे खाद्यान्न की समस्या का तो कुछ हद तक निदान हुआ है, लेकिन इसकी वजह से जैव विविधता में कमी आई है और वन्य जीवों एवं मनुष्यों के बीच संघर्ष बढ़ा है। कृषिमंत्री ने कहा कि भारत सरकार इन समस्याओं के निदान हेतु विभिन्न योजनाएं जैसे-जलवायु स्मार्ट कृषि, सतत भूमि उपयोग एवं प्रबंधन, जैविक उत्पादन, स्थानीय और पारांपरिक ज्ञान का उपयोग तथा कृषि जैव विविधता सरंक्षण जैसी युक्तियों का उपयोग कर रहा है, इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर भी कई कार्यक्रम जैसे कि कृषि के सतत विकास के लिए राष्ट्रीय मिशन, समेकित बागवानी विकास मिशन, राष्ट्रीय पशु विकास मिशन और परंपरागत कृषि विकास योजना इत्यादि का कार्यांवयन किया जा रहा है।
कृषिमंत्री ने कहा कि कार्यशाला में चर्चा और विचार विमर्शों के आधार पर भारत में सतत कृषि हेतु नीति और पद्धतियों में रूपांतकारी परिवर्तन प्राप्त करने पर पूर्ण परियोजना दस्तावेज़ को भारत में कार्यांवयन के लिए अंतिम रूप दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत में वर्ष 1991 में वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा प्रारंभ हुई, जो वैश्विक पर्यावरणीय मामलों का समाधान करती है, जीईएफ वैश्विक पर्यावरणीय लाभों हेतु लगातार वित्तपोषण प्रदान करके नवाचारों हेतु वित्तीय समर्थन देता है, जीईएफ का 6 चक्र 5 वर्ष की अवधि के लिए है और इसने सतत कृषि विकास, भूमि अवक्रमण, जैव विविधता और सतत वन प्रबंधन को लक्षित किया है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के साथ इसका सीधा संपर्क है। उन्होंने कहा कि पहली बार वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा ने 5 राज्यों उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और मिजोरम में विभिन्न कार्यों के क्रियांवयन के लिए 'भारत में सतत कृषि हेतु नीति और पद्धतियों में रूपांतकारी परिवर्तन प्राप्त करना' पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की परियोजना का अनुमोदन किया है। इस परियोजना पर भारत को लगभग 37 मिलियन डालर अनुदान के रूप में प्राप्त हुआ है, परियोजना 7 वर्ष की अवधि में राज्य के कृषि विभाग कार्यांवित करेंगे।
परियोजना के अनुपालन के लिए वित्त मंत्रालय, भारत सरकार का आर्थिक कार्य विभाग, भारत के जीईएफ का राजनैतिक फोकल प्वाइंट है, जो नीति तथा अभिशासन संबंधी मामलों के लिए जिम्मेवार है, जबकि पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत के जीईएफ का कार्यात्मक फोकल प्वाइंट है, जिसके ऊपर जीईएफ कार्यक्रमों के समंवयन की जिम्मेवारी है। कार्यशाला में संबंधित विभागों के सचिव, केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी, गैर सरकारी संगठन एवं संबंधित राज्यों के प्रगतिशील किसानों सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यशाला का आयोजन पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और खाद्य एवं कृषि संगठन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। एक दिवसीय कार्यशाला में सचिव एसके पट्टनायक, सचिव डॉ त्रिलोचन मोहापात्रा, संयुक्त सचिव एसबी सिन्हा और संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के भारतीय प्रतिनिधि डॉ श्याम खड़का उपस्थित थे।