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Saturday 09 February 2013 06:24:18 AM
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय कानून में ‘किशोर’ की परिभाषा की सांविधानिक वैधता के सवाल पर गौर करने का निश्चय किया है। इसमें अपराध की संगीनता के बावजूद 18 साल से चंद सप्ताह कम आयु का होने पर भी ऐसे अपराधी को नाबालिग ही माना गया है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि हम इस मामले पर गौर करेंगे, क्योंकि यह आयु निर्धारण से संबंधित है। न्यायाधीशों ने कहा कि यह कानून का सवाल है और गंभीर अपराध में आरोपी पर बालिग के रूप में मुकदमा चलाने का निर्णय करते समय उसकी आयु के निर्धारण का अपराध की गंभीरता से कुछ तो तालमेल होना चाहिए।
न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले में उठाए गए मसलों पर विचार के लिए अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती से सहयोग करने का आग्रह किया है। इस याचिका में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून में प्रदत्त किशोर की परिभाषा को निरस्त करने का भी अनुरोध किया गया है। न्यायालय ने अटार्नी जनरल को इस मामले में विधि मंत्रालय और गृह मंत्रालय की ओर से हलफनामा तथा संबंधित रिपोर्ट 29 मार्च तक दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अब तीन अप्रैल को आगे सुनवाई होगी।
यह याचिका कमल कुमार पांडे और सुकुमार नाम के वकीलों ने दायर की है। याचिका में किशोर न्याय कानून की धारा 2 (एल), धारा 10 और 17 के प्रावधानों के तर्कहीन, मनमाना और असंवैधानिक होने का दावा किया गया है। अटार्नी जनरल ने कहा कि न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति की रिपोर्ट ने सभी बिंदुओं पर गौर किया है, लेकिन उसने किशोर का वर्गीकरण करने के लिए उसकी उम्र कम करने की सिफारिश करने से परहेज किया है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि वे न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट पर गौर नहीं करेंगे, क्योंकि उसके समक्ष शुद्ध रूप से कानून का मसला था।
अटार्नी जनरल वाहनवती ने कहा है कि केंद्र सरकार इस मामले में न्यायालय के साथ सहयोग के लिए तैयार है और राज्य सरकारों से भी इस विषय पर गौर करने के लिए कहा जा सकता था। उन्होंने कहा कि कुछ गैर सरकारी संगठन भी इस विषय पर काफी सक्रिय हैं। न्यायाधीशों ने इस पर कहा कि राज्यों की इसमें कोई भूमिका नहीं है और हम गैर सरकारी संगठनों को नहीं सुनेंगे। न्यायालय ने कहा कि चूंकि यह मामला आयु निर्धारण से संबंधित है और किशोर न्याय कानून अंतरराष्ट्रीय कंनवेन्शन पर आधारित है। ऐसे भी कई देश हैं, जिन्होंने किशोर की उम्र परिभाषित करने के इरादे से इसे 16 साल निर्धारित किया है तो कुछ ने 18 साल ही रखा है।
न्यायाधीशों ने कहा कि हम सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के संदर्भ में ही इस पर विचार कर रहे है। इससे पहले, जनहित याचिका में आरोपी व्यक्ति को ‘किशोर’ के रूप में वर्गीकृत करना विधि के विपरीत है और किशोर न्याय कानून में प्रदत्त संबंधित प्रावधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि इस कानून में प्रदत्त किशोर की परिभाषा कानून के प्रतिकूल है।उनका तर्क है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 82 और 83 में किशोर की परिभाषा में अधिक बेहतर वर्गीकरण है। धारा 82 के अनुसार सात साल से कम आयु के किसी बालक का कृत्य अपराध नहीं है, जबकि धारा 83 के अनुसार सात साल से अधिक और 12 साल से कम आयु के ऐसे बच्चे का कोई भी कृत्य अपराध नहीं है, जो किसी कृत्य को समझने या अपने आचरण के स्वरूप तथा परिणाम समझने के लिए परिपक्व नहीं हुआ है। न्यायालय का यह निश्चय दिल्ली में पिछले साल 16 दिसंबर को 23 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार की घटना में शामिल छह आरोपियों में से एक के नाबालिग होने की बात सामने आने के बाद से अधिक महत्वपूर्ण है। इस वारदात के बाद से ही किशोर न्याय कानून के तहत किशोर की आयु का मामला चर्चा में है।
वाहनवती ने कहा कि इस मसले पर गौर करते समय यह ध्यान रखना होगा कि यह किशोर के कृत्य का सवाल नहीं है, बल्कि यह भी सोचना होगा कि उसने ऐसा क्यों किया और यह भी संबंधित तथ्य है कि समाज ने उसे विफल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि किशोर को वर्गीकृत करते समय उसकी उम्र सीमा कम करके 16 साल की जाए या फिर इसे 18 साल रखा जाए या इस मसले पर निर्णय का सवाल अदालत के विवेक पर छोड़ना होगा। याचिकाकर्ताओं के अनुसार राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की वर्ष 2011 की रिपोर्ट के अपराध के आंकड़ों से पता चलता है कि 18 साल से कम आयु के किशोरों के अपराधों में कुल मिलाकर करीब दो फीसदी का इजाफा हुआ है। यही नहीं, 2011 में किशोरों ने 33887 अपराध किए जिसमें से 4443 अपराध करने वाले किशोरों ने उच्चतर माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त की थी और 27577 किशोर अपराधी अपने परिवारों के साथ रह रहे थे, जबकि सिर्फ 1924 किशोर ही बेघर थे। याचिका के अनुसार इन किशोर अपराधियों में से लगभग दो तिहाई किशोर 16 से 18 आयु वर्ग के हैं। याचिका में कहा गया है कि 2010 की तुलना में 2011 में किशोरों के अपराधों में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।