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भारत में हाशिये पर जा रहा घरेलू क्रिकेट

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क्रिकेट-cricket

मुंबई। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के अब तक के व्यस्त कार्यक्रम के कारण भारतीय खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट को अपना समय नहीं दे पाते थे, इस बात की कड़ी ओलाचना होती थी और खिलाड़ियों पर घरेलू क्रिकेट को तवज्जो नहीं देने के आरोप लगाये जाते थे। अब तो बीसीसीआई भी घरेलू क्रिकेट ढांचे की उपेक्षा कर रहा है। देवधर ट्राफी जैसी प्रतियोगिता को स्थगित किया गया है तो दूसरी तरफ घरेलू क्रिकेट की स्थापित प्रतियोगिताओं पर कारपोरेट टूर्नामेंट और आईपीएल चैपियंस टूर्नामेंट को तरजीह दी गई है। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में घरेलू क्रिकेट ढांचे को मजबूत किया जा रहा है और भारत में इसे हाशिये पर धकेला जा रहा है। यदि इसी तरह से चलता रहा तो आने वाले समय में रणजी ट्राफी जैसी प्रतियोगिताएं भी दोयम दर्जे की बनकर रह सकती हैं।

किसी देश की मजबूत क्रिकेट टीम के पीछे उस देश का सुस्थापित और व्यवस्थित घरेलू क्रिकेट ढांचा होता है। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया की मजबूत क्रिकेट टीम के पीछे उनका घरेलू क्रिकेट ढांचा है। बरसों तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शीर्ष रहने वाली आस्ट्रेलियाई टीम की सफलता का कारण उसका घरेलू क्रिकेट ढांचा है और दुनिया में इसे सर्वश्रेष्ठ घरेलू क्रिकेट ढांचा माना गया है। भारत में रणजी ट्राफी हमेशा से ही राष्ट्रीय टीम में चयन का आधार रही है। देश में पहले यदि एक बच्चा अपने हाथ में बल्ला थामता था तो उसका पहला सपना रणजी खेलना होता था, परंतु अब सब कुछ बदल गया है। अब पहला लक्ष्य आईपीएल खेलना हो गया है। पांच साल पहले तक यह आवाज उठती रही कि भारतीय टीम का अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम इस प्रकार से तय किया जाए कि टेस्ट खिलाड़ी भी रणजी ट्राफी में हिस्सा ले सकें। टेस्ट क्रिकेट के असफल खिलाड़ी को वापसी के लिए रणजी ट्राफी में ही खेलने के लिए भेजा जाता था। सौरव गांगुली ने अपनी अंतिम बार वापसी रणजी और दिलीप ट्राफी में शानदार प्रदर्शन करके की थी, पर अब राष्ट्रीय टीम में स्थान बनाने के लिए रणजी खेलने की आवश्यकता नहीं है। अब आप आईपीएल में अच्छा प्रदर्शन कर राष्ट्रीय टीम में आ सकते हैं प्रज्ञान ओझा और यूसुफ पठान इसी का उदाहरण हैं।

घरेलू क्रिकेट ढांचे को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट बरसों बाद भी प्रभावित नहीं कर पाई, लेकिन लगता है आईपीएल ने दो सालों में ही इसे प्रभावित कर दिया है। आईपीएल की सफलता से घरेलू ढांचा चरमरा गया है। यही कारण है कि बीसीसीआई को कारपोरेट टूर्नामेंट आयोजित करवाने के लिए तो समय मिल गया है लेकिन देवधर ट्राफी के लिए समय नहीं है। राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों के लिए पूरे सत्र मे इतना समय बिलकुल नहीं है कि वे अपने प्रदेश की रणजी टीम में खेल सकें परंतु आईपीएल चैम्पियंस में खेलने के लिए उन्हे पूरा समय दिया गया है। यह साफ तौर पर घरेलू क्रिकेट की उपेक्षा है। जब घरेलू क्रिकेट से चयन की संभावनाएं ही नहीं होंगी तो कोई क्यों घरेलू क्रिकेट खेलेगा? इस प्रकार से घरेलू क्रिकेट की उपेक्षा होगी तो जिन मैदानो में ये खेले जाएंगे वहां इन्हे देखने कौन आयेगा? ऐसे में आर्थिक घाटा होने से इनका आयोजन करना भी मुश्किल हो जायेगा।

रणजी ट्राफी, दिलीप ट्राफी और देवधर ट्राफी के आयोजन का चरणबद्ध ढांचा है। इन प्रतियोगिताओ में खिलाड़ी प्रतिभा को मांजा जाता है। तीनो प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन कर निकलने वाला खिलाड़ी क्रिकेट के हर फार्मेट में सफल रहता है। वर्तमान में क्रिकेट के तीनो ही फार्मेट में खेल रहे भारतीय खिलाड़ी किसी आईपीएल की नहीं बल्कि इन तीनो प्रतियोगिताओं की उपज मानी जाती है। आईपीएल चैम्पियंस और कारपोरेट टूर्नामेंट आयोजित करवाना अच्छी बात है। परंतु भारतीय क्रिकेट के आधारभूत ढांचे को मजबूत करना, सर्वोच्च प्राथमिकता में होना चाहिए और इसे मजबूत करके ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टेस्ट खिलाड़ी पैदा किए जा सकते हैं।

घरेलू क्रिकेट ढांचे को मजबूत करने का यह मतलब कदापि नहीं है कि क्रिकेट के बदलते स्वरूप से हम अपने आप को अलग कर लें। बात सिर्फ सामंजस्य बैठाने की है। यह समझना बहुत जरूरी है कि रणजी ट्राफी जैसे ढांचे से ही प्रतिभाएं ठेठ गांव से निकल कर राष्ट्रीय स्तर तक आ सकती हैं। एक खिलाड़ी के चयन के लिए रणजी, दिलीप और देवधर ट्राफी जैसी प्रतियोगिताओ में प्रदर्शन को तरजीह दी जानी चाहिए। राष्ट्रीय टीम में खेल रहे खिलाड़ियों के लिए भी कम से कम एक अथवा दो मैच इन प्रतियोगिता में खेलना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। जब इन आधारभूत प्रतियोगितओ के ढांचे को मजबूत किया जायेगा तो आईपीएल जैसी प्रतियोगिताओ में भी और प्रतिभाशाली खिलाड़ी आयेंगे। इससे न केवल राष्ट्रीय टीम मजबूत होगी बल्कि आईपीएल जैसी प्रतियोगिता का भी आकर्षण बढ़ेगा।

क्रिकेट में एक और घुन लगा है और वो यह है कि सुनने में आता ही रहता है कि क्रिकेट खिलाड़ी का चयन पैसे लेकर किया जा रहा है। क्रिकेट कोचिंग की स्थिति तो और भी भयानक होती जा रही है। गली-गली में कुकुरमुत्तों की तरह से क्रिकेट कोचिंग सेंटर पैदा हो गए हैं और ये क्रिकेट के माफियाओं की आय का एक बड़ा जरिया बन गए हैं। बच्चों को क्रिकेट के प्रशिक्षण में ठगा जा रहा है और बाकायदा उन्हें सब्जबाग दिखाकर क्रिकेट से और पढ़ाई से भी बरबाद किया जा रहा है। उत्तर भारत में और दिल्ली जैसी जगहों पर भी यह धंधा जोर पकड़ रहा है। इससे प्रतिभाओं के विकसित होने में बहुत मुश्किलें हो रही हैं और जुगाड़ू लोग अपने लिए पैसा और सोर्स लगाकर प्रतिभाओं का रास्ता रोक रहे हैं। अधिकांश क्रिकेट कोचिंग सेंटर घरेलू क्रिकेट को समृद्ध बनाने में एक तरह से ग्रहण साबित हो रहे हैं।

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