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Wednesday 26 October 2016 02:44:05 AM
उदयपुर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (मान्य) विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 'आलोचक से मिलिए' का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम नई दिल्ली से प्रकाशित हिंदी की लघु पत्रिका 'बनास जन' के हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक प्रोफेसर नवलकिशोर एवं प्रोफेसर माधव हाड़ा पर प्रकाशित अतिरिक्तांकों को केंद्र में रखकर आयोजित किया गया। प्रोफेसर नवलकिशोर के आलोचना कर्म पर चर्चा करते हुए प्रोफेसर सत्यनारायण व्यास ने कहा कि प्रोफेसर नवलकिशोर राजस्थान में हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष हैं, इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व में किसी प्रकार का अंतर्विरोध नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर नवलकिशोर वादमुक्त चिंतक हैं, इनकी आलोचना सृजनात्मक आलोचना है, इनके कृतित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने मानववाद को आधार बनाकर अपनी आलोचना पद्धति को स्थापित किया है, अतः वैचारिक उदारता इनके आलोचना कर्म की विशिष्टता बन गई।
प्रोफेसर सत्यनारायण व्यास ने कहा कि मार्क्सवाद और आस्तित्ववाद का सामंजस्य कर प्रोफेसर नवलकिशोर ने अभूतपूर्व कार्य किया है। प्रोफेसर नवलकिशोर से संवाद अंक पर चर्चा करते हुए प्रोफेसर सत्यनारायण व्यास ने बताया कि डॉ रेणु व्यास ने प्रोफेसर नवलकिशोर से बहुत प्रासंगिक विषयों पर बातचीत कर उनके आलोचना कर्म को सप्रयास रेखांकित किया है, इस साक्षात्कार के माध्यम से हम प्रोफेसर नवलकिशोर के आलोचना कर्म से बहुत करीब से परिचित हो पाते हैं। हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ मलय पानेरी ने प्रोफेसर माधव हाड़ा की बहुचर्चित पुस्तक 'पंचरंग' चोला पहर सखी री, पर आधारित 'बनास जन' पत्रिका के अतिरिक्तांक 'फिर से मीरा' पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रोफेसर माधव हाड़ा ने मीरा के समय और समाज की ऐतिहासिक दृष्टि से पड़ताल की है और उन्होंने अपने निष्कर्ष पर्याप्त वस्तुनिष्ठता रखते हुए निकाले हैं।
डॉ मलय पानेरी ने कहा कि डॉ माधव हाड़ा के ये निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि मीरा का समय ठहरा हुआ समय था और मीरा किसी सत्तारूढ़ की बेटी नहीं थी। उन्होंने मीरा की साधारण स्त्री की छवि को स्थापित कर इतिहास और साहित्य लोक में प्रचलित छवि से उसे बाहर निकाला है, यह पुस्तक की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। आलोचक प्रोफेसर नवलकिशोर ने अपनी आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पद्धति वादकेंद्रित न होकर समावेशीकरण पर आधारित है, अतः अन्य पद्धतियों की तुलना में यह अधिक न्यायसंगत ढंग से कार्य करती है, इसकी वैश्विक दृष्टि इसे अधिक विश्वसनीय बनाती है। प्रोफेसर नवलकिशोर ने कहा कि 'बनास जन' हिंदी की श्रेष्ठ लघु पत्रिकाओं में गिनी जाती है, इसका पूरा श्रेय युवा संपादक डॉ पल्लव को जाता है, जिन्होंने थोड़े ही समय में अपने संपादकीय कौशल का परिचय देकर राष्ट्रीय स्तर पर इस पत्रिका की पहचान बनाई है।
प्रोफेसर माधव हाड़ा ने बताया कि दिल्ली जैसे महानगर में कई साहित्यिक एवं शोध पत्रिकाएं निकलती हैं, किंतु पल्लव संपादित 'बनास जन' इतने कम समय में ही शीर्ष पत्रिकाओं में गण्य हो गई है। प्रोफेसर माधव हाड़ा ने आलोचना के उपकरणों की महत्ता को उजागर करते हुए कहा कि आयातित उपकरणों से हमारी अपनी कृतियों का मूल्यांकन करना अनुचित है, हमारे अपने उपकरणों से ही किसी रचना की सम्यक समीक्षा संभव है। मंचस्थ अतिथियों ने 'बनास जन' के दोनों अंकों का विमोचन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रमजीवी महाविद्यालय की अघिष्ठाता प्रोफेसर सुमन पामेचा ने की। कार्यक्रम का संचालन जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (मान्य) विश्वविद्यालय उदयपुर के हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ ममता पानेरी ने किया और धन्यवाद डॉ राजेश शर्मा ने दिया।