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Wednesday 29 March 2017 12:18:14 PM
लखनऊ। समाजवादी सरकार में कई विभागों के मंत्री और ईमानदार छवि के रूप में विख्यात एवं राज्य की प्राथमिक शिक्षा में बड़े सुधारात्मक कार्य के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे समाजवादी पार्टी विधानमंडल दल के नेता रामगोविंद चौधरी की नई विधानसभा में अब नेता प्रतिपक्ष की पारी शुरू हो गई है, मगर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नेता विरोधी दल के रूप में रामगोविंद चौधरी को मान्यता दिये जाने के संबंध में भारत के संविधान के अनुच्छेद 175(2) अंतर्गत नवगठित विधानसभा के विचारार्थ संदेश भेजा है। संदेश में कहा गया है कि नवगठित विधानसभा, निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 16वीं विधानसभा के अंतिम कार्य दिवस 27 मार्च 2017 को नवगठित 17वीं विधानसभा के लिए रामगोविंद चौधरी सदस्य विधानसभा एवं नेता समाजवादी पार्टी विधान मंडलदल को 27 मार्च 2017 से नेता विरोधी दल के रूप में अभिज्ञात करने हेतु लिए गए निर्णय के लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक औचित्य के प्रश्न पर विचार करे।
विधानसभा सचिवालय के संसदीय अनुभाग ने 27 मार्च 2017 को ही अधिसूचना जारी कर दी थी कि नवगठित 17वीं विधानसभा के लिये रामगोविंद चौधरी को नेता विरोधी दल के रूप में अभिज्ञात किया गया है, मगर राजभवन के अनुसार विधानसभा के सामान्य निर्वाचन के फलस्वरूप नवगठित विधानसभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा ही नवगठित विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को अभिज्ञात करने की परम्परा रही है। राजभवन का कहना है कि नेता विरोधी दल को अभिज्ञात करने का कदाचित कोई अन्य उदाहरण देश के किसी राज्य में उपलब्ध नहीं है, जब किसी विधानसभा के कार्यकाल के अंतिम दिवस पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नवगठित अथवा आने वाली नई विधानसभा, जिसका कि विधानसभा अध्यक्ष सदस्य भी निर्वाचित नहीं हो सका हो, अगले पांच वर्ष के लिए नेता विपक्ष को अभिज्ञात किया गया हो।
राजभवन के पत्र में कहा गया है कि दीर्घ समय से देश के समस्त राज्यों की विधानसभाओं में नेता विपक्ष के चयन या अभिज्ञान के संबंध में चली आ रही स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का अनुपालन उत्तर प्रदेश की नवगठित 17वीं विधानसभा के नेता विपक्ष के चयन अथवा अभिज्ञान के प्रकरण में क्यों नहीं किया गया, यह उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय से निर्गत अधिसूचना दिनांक 27 मार्च 2017 से स्पष्ट नहीं होता है। विधानसभा में नेता विरोधी दल को अभिज्ञात करना अथवा नहीं करना विधानसभा अध्यक्ष का विवेकाधिकार है न कि संवैधानिक बाध्यता। राजभवन के पत्र में यह भी कहा गया है कि 27 मार्च को जारी अधिसूचना में यह स्पष्ट नहीं है कि नेता विपक्ष के चयन का मामला यदि नवगठित विधानसभा के नये अध्यक्ष पर छोड़ा गया होता तो किस प्रकार की संवैधानिक शून्यता अथवा संकट अथवा असंवैधानिकता उत्पन्न होने की संभावना थी।