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Sunday 16 April 2017 02:51:11 AM
हरिद्वार (उत्तराखंड)। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय के पंचम दीक्षांत समारोह में कहा है कि विश्वविद्यालय मात्र डिग्रियां बांटने का हाट बाजार न होकर सच्चे मनुष्य, बड़े मनुष्य, महान मनुष्य और सर्वांगपूर्ण मनुष्य बनाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूर्ण करें, जहां के ऊर्जावान आचार्य और प्राणवान विद्यार्थी मिलकर प्राणऊर्जा का ऐसा प्रवाह पैदा कर सकें, जिससे पूरे देश के प्राण लहलहा उठें और सारी धरती पर जीवन-मूल्यों के वरदान बरसने लगें। उन्होंने कहा कि जीवन विद्या के आलोक केंद्र एवं ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश स्तंभ के रूप में इस विश्वविद्यालय का सृजन युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के दिव्य संकल्प से हुआ है।
डॉ प्रणय पंड्या ने कहा कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग है, जो मूल्य आधारित शिक्षा, वैज्ञानिक अध्यात्मवाद, जीवन प्रबंधन, शिक्षा के साथ विद्या, दीक्षांत के साथ दीक्षारंभ, प्राच्य और आधुनिक शिक्षा एवं उन्नयन आदि पाठ्यक्रमों एवं कार्यक्रमों के रूप में शिक्षा जगत को नए प्रयोग प्रदान करने का माध्यम बन चुका है, जहां शिक्षा ही नहीं, संस्कारों का भी अर्जन-उपार्जन होता है, यहां विद्यार्थियों को उनके विषय की सामाजिक उपयोगिता का बोध कराने के साथ ही उनके अंदर सामाजिक दायित्व की भावना का विकास भी किया जाता है, यहां के प्रत्येक पाठ्यक्रम के साथ जीवन प्रबंधन का अनिवार्य शिक्षण, जीवन जीने की कला और कुशलता का नियमित प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। डॉ प्रणय पंड्या ने विश्वविद्यालय के योग विभाग, भारतीय मनोविज्ञान, पत्रकारिता, पर्यटन प्रबंधन सहित विभिन्न विभागों की गतिविधियों की विस्तार से जानकारी दी।
कुलाधिपति डॉ प्रणय पण्ड्या ने छात्रों से कहा कि विश्वविद्यालय ने जो उनको शिक्षा के साथ संस्कार और जीवन की गुणवत्ता दी है, उसे वे जहां भी जाएं, उस क्षेत्र को अपने व्यक्तित्व से प्रकाशित करें। उन्होंने कहा कि वे जितना खरे उतरेंगे, उतना ही हम सब गौरवांवित होंगे। उन्होंने कहा कि यहां से विदा होते हुए यह ध्यान रहे कि आप सब स्नातक, परास्नातक होकर अपने जीवन समर में कर्मयोग और कर्तव्य के कुरूक्षेत्र में प्रवेश करने जा रहे हैं। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप कहा कि अपने कर्तव्यपथ पर अनवरत अग्रसर होते रहें, योगः कर्मसु कौशलम्, समत्वं योग उच्यते एवं करिष्ये वचनं तव जैसे गीता के अमृतसूत्रों को सदैव हृदय में धारण किए रहें।
दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि कैलाश सत्यार्थी और राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पॉल, कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ने विश्वविद्यालय के समाचार पत्र संस्कृति संचार, संस्कृति मंजूषा, ज्ञान प्रवाह और रैनांसा का विमोचन किया। कुलाधिपति ने मुख्य अतिथि और राज्यपाल को स्मृति चिन्ह और शॉल धारणकराकर उनको सम्मानित भी किया। इस अवसर पर शांतिकुंज की संरक्षिका शैल जीजी, व्यवस्थापक गौरीशंकर शर्मा, विश्वविद्यालय के कुलसचिव संदीप कुमार, विश्वविद्यालय परिवार, समस्त नूतन और पूर्व छात्र तथा देश-विदेश से आए अतिथिगण उपस्थित थे।
दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि कैलाश सत्यार्थी ने इस मौके पर कहा कि मेरी प्रेरणा अध्यात्म है, मेरे यहां आने का कारण भी यही रहा कि यह विश्वविद्यालय सम्पूर्ण समाज को आध्यात्मिक करने का प्रयत्न कर रहा है। उन्होंने कहा कि छात्र दीक्षांत समारोह के माध्यम से पंचामृत लेकर जा रहे हैं, जिसमें अध्यात्म, विज्ञान, शिक्षा, संस्कार और सेवा सम्मिलित है। उन्होंने भी कहा कि ऐसा पंचामृत आज के दौर में कम ही विश्वविद्यालय देते हैं। उन्होंने कहा कि देव विश्वविद्यालय का परिसर विद्या और शिक्षा की सुगंध से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि आज का दिन माता-पिता और गुरुजनों को कृतज्ञता समर्पित करने का दिन है, छात्र जहां भी जाएं इस शिक्षा और विद्या के संगम को समाज में फैलाने का कार्य करते रहें। आपका कार्य ऐसा हो, जो देश के विकास का भागीदार कहलाए।
देसंविवि के कुलपति शरद पारधी ने बताया कि यह विश्वविद्यालय 2002 में लगभग 100 विद्यार्थियों एवं चार संकायों से शुरू हुआ था, जो आज 10 बड़े विभाग, 18 उप विभाग एवं 58 पाठ्यक्रमों के साथ दृढ़ता से खड़ा है और पिछले 15 वर्ष में 150 से अधिक पीएचडी उपाधि प्रदान कर देश-विदेश में शोध कार्यों को नई दिशा दे रहा है। उन्होंने कहा कि ज्ञानदीक्षा देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की विशेषता है। कुलपति ने विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त उपाधियों की चर्चा की। प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने दीक्षांत समारोह की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि यह अद्वितीय विश्वविद्यालय है, जिसके कण-कण में भारतीय संस्कृति का वास है। उन्होंने भी कहा कि यह दीक्षांत कोई डिग्री बांटने का समारोहभर नहीं है, यह पूर्वमिलन का समावर्तन समारोह है, जिसमें छात्र उस विश्वविद्यालय के दीक्षांत विधार्थी हैं, जो प्रेम, सद्भावना और दूसरों की सहायता करने के लिए हर क्षण तत्पर रहते हैं।
दीक्षांत समारोह में ये उपाधियां बांटी गईं-कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड फोर्ड को डी लिट्, डॉ इनिया त्रिंकुनिने लिथुआनिया को पीएचडी की मानद उपाधि, विश्वविद्यालय स्तर पर 2013 के लिए संगु पावनी, 2014 के लिए प्रज्ञा सिंह, 2015 के लिए श्रद्धा खरे, 2016 में स्मृति श्रीवास्तव को गोल्ड मेडल। इसके साथ ही विभिन्न विषयों में प्रथम स्थान प्राप्त 46 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। पीएचडी-79, स्नातकोत्तर-473, स्नातक-540, डिप्लोमा-108, पीजी डिप्लोमा-64 एवं प्रमाण-पत्र-471 इत्यादि उपाधियां प्रदान की गईं।