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Saturday 23 September 2017 03:21:03 AM
नागपुर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने कहा है कि विपस्सना भगवान बुद्ध की वो तकनीक है, जो हमें अपनी अंतरमन से जोड़ती है, यह हमारे मस्तिष्क और शरीर की शुद्धि का प्रभावी उपाय है और इसके जरिए आधुनिक युग में बढ़ते तनाव का सामना करने की शक्ति मिलती है। राष्ट्रपति ने कहा कि यदि विपस्सना का अभ्यास सही रूप से किया जाए तो इससे वही लाभ मिल सकते हैं, जो हम कुछ दवाओं से प्राप्त करते हैं, इस तरह विपस्सना के लिए लाभदायक है। उन्होंने कहा कि योगा के समान विपस्सना भी किसी धर्म से सम्बद्ध नहीं है, यह मानवता के कल्याण की तकनीक है। राष्ट्रपति ने कहा कि बौद्ध दर्शन के विचारों का प्रतिबिंब हमारे संविधान में दिखाई देता है, विशेषतौर पर समानता, सद्भाव और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के परिपेक्ष्य में हम अपने संविधान को पाते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि पुरात्न भारत में लोकतांद्धिक पद्धति दिखाई देती है, लोकतांत्रिक पद्धति की जड़ें भारत में पुरात्न समय से है, इस संदर्भ में उन्होंने बौद्ध संघों में लोकतांत्रिक परम्परा के चलन का उदाहरण भी दिया।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने कहा कि हमारा भारतीय संविधान भी मूलतः बौद्ध दर्शन के आदर्शों पर आधारित है, जिसमें मानव-मानव के बीच समानता, भ्रातृत्व और सामाजिक न्याय का सामंजस्य दिखता है। रामनाथ कोविद ने कहा कि संविधान के निर्माता बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में कहा था कि हमारे लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी और पुरानी हैं, इस संदर्भ में उन्होंने भगवान बुद्ध की परंपरा का उदाहरण दिया था, उन्होंने कहा था कि भारत में संसदीय प्रणाली की जानकारी मौजूद थी, यह प्रणाली बौद्ध भिक्षु संघों द्वारा व्यवहार में लाई जाती थी, भिक्षु संघों ने इनका प्रयोग उस समय की राजनीतिक सभाओं से सीखा था, बौद्ध संघों में प्रस्ताव, संकल्प, कोरम, सचेतक, मतगणना, निंदा प्रस्ताव आदि के नियम थे और आधुनिक संविधान की रचना करके बाबासाहब ने इसी प्राचीन लोकतांत्रिक परंपरा की फिर से प्रतिष्ठा की।
राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान बुद्ध के दर्शन में सामाजिक परिवर्तन केंद्र बिंदु है, इस भावना ने सामाजिक परिवर्तन के कई आंदोलनों को प्रेरणा दी, इस तरह के कुछ आंदोलन महाराष्ट्र में भी हुए, जो 19वीं और 20वीं शताब्दी में देश के अन्य भागों में भी सामाजिक परिवर्तन के आंदोलनों की प्रेरक शक्ति बने। रामनाथ कोविद ने कहा कि बौद्ध दर्शन के मूल में एक क्रांतिकारी चेतना है, जिसने पूरी मानवता को अभिभूत कर दिया है, यह भारत से निकलकर श्रीलंका, चीन, जापान और इस तरह एशिया से होते हुए पूरी दुनिया में अपनी जड़े जमा चुका है। इससे पहले राष्ट्रपति ने दीक्षा भूमि का दौरा भी किया और बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की।