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Saturday 02 March 2013 04:21:07 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल आज तीन कठिन क्षेत्रों में संघर्ष कर रहा है-पूर्वोत्तर क्षेत्र विद्रोह, जम्मू-कश्मीर उग्रवाद और वामपंथी उग्रवाद यानि नक्सलियों से प्रभावित क्षेत्र। इन तीनों में से नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है, जिस पर पिछले वर्षों में संघर्ष की जटिलता को देखते हुए अधिक ध्यान देना पड़ा है। तथाकथित नक्सलवादी या माओवादी गंभीर चुनौती बने हुए हैं। केवल उनके अनेक अत्याचारों के कारण नहीं, बल्कि जिस गति से यह और अधिक इलाकों में फैल रहा है, उसके कारण यह गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल विश्व का सबसे बड़ा अर्ध-सैनिक बल माना जाता है। समय के साथ-साथ इसका रूप बहुमुखी और बहु-आयामी हो गया है और विभिन्न प्रकार के विरोधियों से संघर्ष करते हुए, इसे कई प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। आवश्यकता के अनुसार अपने को ढालना केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की विशिष्टता है, जिसे सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए खतरा पैदा करने वाली आंतरिक सुरक्षा से संबंधित अनेक जटिल समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
इस बल की स्थापना अपराधियों और डकैतों से निपटने के लिए 1939 में क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के रूप में हुई थी, लेकिन इस बल से अपेक्षाएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। पिछले दशकों में इसने अपने कौशल और दक्षता का परिचय देते हुए घरेलू मोर्चे पर शत्रु को चुनौती दी है। चाहे वह वामपंथी उग्रवादियों का क्षेत्र हो, पूर्वोत्तर का जोखिम भरा पहाड़ी इलाका हो, पंजाब के कट्टर उग्रवादी हों या जम्मू-कश्मीर में पनप रहे आतंकवादी हों, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस हर परीक्षा में उतारी जाती है। उग्रवादियों के साथ संघर्ष करने के अलावा केंद्रीय रिज़र्व पुलिस ने आम चुनावों, अमरनाथ यात्रा, जम्मू-कश्मीर आंदोलन, कंधमाल की घटना जैसी अनेक परिस्थितियों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय आपदा के समय भी केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल सहयोग करने वाले बलों में सबसे आगे दिखाई देता है।
केंद्रीय रिज़र्व पुलिस आज तीन कठिन क्षेत्रों में संघर्ष कर रहा है-पूर्वोत्तर क्षेत्र विद्रोह, जम्मू-कश्मीर उग्रवाद और वामपंथी उग्रवाद यानि नक्सलियों से प्रभावित क्षेत्र। नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस की मौजूदगी और लगातार उसकी गतिविधियों के परिणामस्वरूप नक्सलवाद के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में कुछ कमी आई है और बड़ी संख्या में गैर-कानूनी हथियार भी बरामद हुए हैं। चौबीस नवंबर 2011 को योजनाबद्ध कार्रवाई में सीआरपीएफ और इसके विशिष्ट संगठन कोबरा के कमांडो को बहुत बड़ी कामयाबी मिली। एक ओर तो सीआरपीएफ ने नक्सलियों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाया और बड़ी आक्रामक कार्रवाई की, दूसरी ओर उनके बीच नागरिक कल्याण कार्यक्रम भी शुरू करके उनके समाज की बेहतरी के लिए कार्य किया है।
केंद्रीय रिज़र्व पुलिस नक्सलियों के बीच नागरिक कल्याण से संबंधित कार्यक्रम चला रही है, जो बुनियादी तौर पर समाज के कमजोर वर्गों और छात्रों की सहायता के कार्यक्रम हैं। ये कार्यक्रम ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में चलाए जा रहे हैं, जहां अभी तक स्थानीय प्रशासन पहुंच ही नहीं पाया है। इस प्रकार उन क्षेत्रों में इन कार्यक्रमों ने प्रशासन और स्थानीय जनता के बीच एक पुल का काम किया है और जिला प्रशासन को स्थानीय लोगों की समस्याओं की सीधे जानकारी मिल रही है। हालांकि इस समय बल का ज्यादा ध्यान नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में है, लेकिन जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर क्षेत्र की समस्याओं को भी नजरअंदाज नहीं किया गया है, वहां लगातार निगरानी के साथ-साथ राष्ट्र विरोधी तत्वों पर नजर रखी जा रही है।
प्रशिक्षण और मनोबल किसी भी वर्दीधारी बल की रीढ़ की हड्डी होते हैं। आजकल जिस तरह से कार्रवाई करनी होती है, उसे देखते हुए प्रत्येक जवान को हर लिहाज़ से स्वावलंबी होना होता है। उसके पास रात को देखने के लिए उपकरण, आधुनिक हथियार और इन हथियारों को चलाने की योग्यता तथा उच्च तकनीक वाले रेडियो संपर्क उपकरण, भू-स्थिति प्रणाली (जीपीएस), नक्शों की समझ और वनों की जानकारी होनी चाहिए, जोकि आज के समय की जरूरत है। सीआरपीएफ को जिस तरह से तरह-तरह के कार्य करने पड़ते हैं, उसे देखते हुए इसके प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में सुधार किया गया है। इसके लिए जवानों को कई तरह के अभ्यास (ड्रिल) कराए जा रहे हैं, जैसे यूनिफॉर्म ड्रिल, हथियार ड्रिल, वाहन ड्रिल, रात्रि ड्रिल, खेल ड्रिल आदि। आत्म-विश्वास बढ़ाने के लिए हेली-स्लिदरिंग का कठिन अभ्यास किया जाता है। जंगल में रहने के लिए एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाता है। इन सबका उद्देश्य वास्तविक परिस्थितियों में संघर्ष के लिए प्रशिक्षण देना है।
बुनियादी प्रशिक्षण के बाद अधिकारियों के लिए सिलचर (असम) या शिवपुरी (मध्यप्रदेश) में विद्रोहियों का मुकाबला करने और आतंकवादियों से संघर्ष करने से संबंधित पाठ्यक्रम अनिवार्य बना दिया गया है। इससे उन्हें नक्सलवादी इलाकों में कारगर नेतृत्व प्रदान करने में मदद मिलती है। तेरह अलग-अलग स्थानों पर 50 मीटर से लेकर 200 मीटर के बाधा-क्षेत्र बनाए गए हैं। गतिशील लक्ष्यों से वास्तविक स्थिति जैसा अहसास होता है। प्रशिक्षकों की उपलब्धता बनाए रखने के लिए प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण का एक पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। इसके लिए प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने वालों को विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे उनकी सोच मजबूत होती है। कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए और जवानों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष प्रणाली-बड्डी सिस्टम की शुरूआत की गई है। तरह-तरह की परिस्थितियों में सीआरपीएफ की कार्यक्षमताओं को बढ़ाने की दृष्टि से देशभर में विशिष्ट कौशलों के विकास के लिए स्कूल स्थापित किए गए हैं।
कादरपुर, गुडगांव के गुप्तचर स्कूल में खुफिया सूचनाएं इक्ट्ठी करने के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। हिमाचल-प्रदेश में धर्मपुर में प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए स्कूल खोला गया है, ताकि उच्च स्तर के प्रशिक्षक तैयार हो सकें। स्थानीय किस्म के विस्फोटकों के खतरे से निपटने के लिए पुणे में भारतीय आईईडी प्रबंधन संस्थान स्थापित किया गया है, क्योंकि आजकल सीआरपीएफ को नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों में ज्यादा काम करना पड़ रहा है, इसलिए कर्नाटक में बेलगाम में जंगल युद्ध के बारे में प्रशिक्षण देने के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किया जा रहा है। जवानों को अबाध रूप से बढि़या खाना मिलता रहे, इसके लिए कर्नाटक में तरालू में कॉलेज ऑफ कुकिंग एंड केटरिंग मैनेजमेंट स्थापित किया गया है। सांप्रदायिक सद्भाव को कायम रखने में सहायता के लिए जल्दी ही मेरठ में एक त्वरित कार्रवाई बल (आरएएफ) प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना की जाएगी। इन सबके अलावा बंगलौर में तरालू में कुत्तों की नस्ल तैयार करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए भी एक स्कूल स्थापित किया गया है।
कहा जाता है कि ज्ञान शक्ति है और विचार दुनिया में शासन करते हैं। इस दृष्टिकोण से केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के जवानों के बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए शैक्षिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए दिल्ली में रोहिणी और द्वारका में आधुनिक सुविधाओं से युक्त दो सीआरपीएफ स्कूल खोले गए हैं। जवानों के मेधावी बच्चों के लिए छात्रवृत्तियों की संख्या भी बढ़ाई गई है और बीमार या विकलांग के लिए या परिवार की एकमात्र लड़की के लिए छात्रवृत्ति के वास्ते केवल पास होने लायक अंक प्राप्त करना ही काफी है। जवानों के कल्याण के लिए सुरक्षा से संबंधित मंत्रिमंडल समिति ने गृह मंत्रालय के उस प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है, जिसमें सेवानिवृत्त केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कर्मचारियों को पूर्व केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल कर्मचारी कहने के बारे में घोषणा की गई है और राज्य, केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों से अनुरोध किया गया है कि वे उन्हें भी उसी प्रकार से उपयुक्त लाभ दें, जिस तरह रक्षा सेवाओं के पूर्व सैनिकों को दिए जाते हैं।
रेल मंत्रालय ने भी पूर्वोत्तर क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर तथा मध्य और दक्षिणी क्षेत्र में, इन क्षेत्रों में कम से कम एक वर्ष तक कार्य करने वाले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों के लिए नियमित आधार पर 7 रेलगाड़ियों में अतिरिक्त डिब्बा लगाने को स्वीकृति दे दी है। सेवाकाल के दौरान मृत्यु होने पर दिवंगत के लिए परिवारों के जोखिम कोष के लाभ भी बढ़ा दिए गए हैं। इनमें से कुछ राशि अभिभावकों को दी जाती है। विभिन्न कार्रवाईयों में घायलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विकलांगता लाभ की राशि विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं के लिए 2 से 4 गुणा तक कर दी गई है। परिवारजनों को अंत्येष्टि के लिए मिलने वाली आर्थिक सहायता की राशि को 10 हजार रूपए से बढ़ाकर 15 हजार कर दी गई है। इस तरह केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल अपने आदर्श वाक्य-सेवा और कर्तव्य-परायणता के अनुसार कार्य कर रहा है।