Saturday 12 May 2018 06:28:51 PM
दिनेश शर्मा
सिद्धार्थनाथ सिंह। हिंदुस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र। ताकतवर पारिवारिक पृष्ठभूमि से समृद्धशाली, एक विचारशील राजनेता और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की योगी आदित्यनाथ सरकार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री के साथ ही राज्य सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता। किसी राजनेता के नाम से इतने सारे विशेषण जुड़े हों तो उसके कद का अंदाजा लगाया जा सकता है, इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व के अभिन्न विश्वासपात्र संगठन सरकार एवं राष्ट्रवाद के प्रखर वक्ता हैं सिद्धार्थनाथ सिंह। उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचारजनित घोर अव्यवस्था और विसंगतियों एवं दूसरी ओर राज्य की जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की चुनौतियों से जूझते हुए सिद्धार्थनाथ सिंह को एक साल से ज्यादा समय हो गया है। स्वास्थ्य विभाग की कायापलट और राज्य की जनता को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का उनका लक्ष्य किसी जुनून से कम नहीं है।
सिद्धार्थनाथ सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश बहुत बड़ा राज्य है, जिसके सामने समस्याओं के पहाड़ ही पहाड़ हैं, जो राज्य की जनता ने नहीं, बल्कि राज्य की पूर्ववर्ती मुलायम, मायावती और अखिलेश यादव सरकार ने खड़े किए हैं, इनके भ्रष्टतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं, दस प्रतिशत भ्रष्टाचारियों ने सरकार के योग्य चिकित्सक समुदाय को जनता की नज़रों में गिरा दिया है, जिससे हमारे चिकित्सकों का मनोबल गिरा है, स्वास्थ्य विभाग की प्रत्येक सेवा पर प्रश्नचिन्ह है, इसीलिए स्वास्थ्य विभाग को पटरी पर लाने में समय लग रहा है, वह समय दूर नहीं है, जब राज्य की जनता को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक वह स्वास्थ्य सेवाएं मिलना शुरू हो जाएंगी, जिनसे वे अभी तक दूर हैं, इनमें पीएचसी पर डू लिटिल डॉक्टर की प्रतीक्षा कीजिए! इसी प्रकार और भी कई स्वास्थ्य सेवाएं हैं, जो जनता को मिलने लगेंगी, बस जनता का सहयोग चाहिए, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जनता जागरुक हो। सिद्धार्थनाथ सिंह भविष्य की प्लानिंग बताते हुए कहते हैं कि अभी दौड़ लंबी है मेरी, मगर मैं दौड़ में रुकूंगा और हारूंगा नहीं।
सिद्धार्थनाथ सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पार्टी नेतृत्व स्तर पर भी उनके स्वास्थ्य विभाग की स्वास्थ्य सेवाओं की सतत समीक्षा होती है, प्रधानमंत्रीजी एवं मुख्यमंत्रीजी का इस हेतु भरपूर सहयोग और मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है, जिससे वे राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर से और भी बेहतर करने में जुटे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की हाल की कुछ अप्रिय घटनाओं और उनमें स्वास्थ्य विभाग के कुछ अधिकारियों की लापरवाही और स्थानीय प्रशासन की ढिलाई से व्यथित सिद्धार्थनाथ सिंह कहते हैं कि किसी भी सरकारी अस्पताल में मृत मरीज के शव को तत्काल उसके घर या गंतव्य तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक अवस्था में शव वाहन उपलब्ध कराने हेतु जिलों को पर्याप्त फंड दिया जा चुका है और सरकारी अस्पतालों में शव वाहनों की पर्याप्त व्यवस्था के लिए इस साल यह फंड बढ़ाकर एक हज़ार करोड़ कर दिया गया है इस पर भी यदि किसी व्यक्ति को सरकारी अस्पताल से अपने मरीज का शव ढोते पाया जाएगा तो उस जिले के सीएमओ और सीएमएस को तत्काल निलंबन जैसी और भी कठोर कार्रवाई का सामना करना होगा। सीतापुर में बच्चों पर कुत्तों के हमले और शव ढोने पर विपक्ष द्वारा योगी सरकार की आलोचना एवं स्वास्थ्य सेवाओं पर उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह से स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम की बातचीत हुई-
सिद्धार्थनाथ जी उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री के रूपमें आपने क्या-क्या प्राथमिकताएं निश्चित की हुई हैं?
यूपी में जल्द ही स्टेट हेल्थ पॉलिसी
देखिए! प्राथमिकताओं के दो-तीन पहलू होते हैं, पहले होता है कि क्या-क्या इमिडियेट करना है, फिर होता है एक मीडियम टर्म और फिर एक लॉंग टर्म। हमारी पहली सबसे बड़ी जो कठिनाई थी, वह थी कि डॉक्टर अस्पतालों में पहुंचते नहीं थे, हमने इसपर फोकस किया और आज काफी हद तक इंप्रूवमेंट दिखाई दे रहा है, जहां पर डॉक्टर की कमी थी, वहां हमने आयुष डॉक्टर को भी पहुंचाया है, हमें जो दूसरी बड़ी कमी दिख रही थी, वो थी कि इसमें जैसे एक व्यापार चल रहा था, चाहे वह सीएमओ, सीएमएस की ट्रांस्फर पोस्टिंग हो, एप्वाइंटमेंट हो, एक दुकान खुली हुई थी और उससे हमारे विभाग की छवि खराब हो गई थी, भाजपा सरकार को एक साल हो गया है, कोई हेडलाइन नहीं बनी कि इस विभाग में कोई पैसा लिया गया, फिर हमारे सामने एक और बड़ी चुनौती आई, उदाहरण के लिए ऐम्बुलेंस सर्विस, हमने जब इसको गहराई में देखा कि यह सर्विस क्यों ठीक नहीं है तो पाया कि स्वास्थ्य विभाग की 108 और 102 सेवा पर पिछले साल का पचहत्तर करोड़ रुपये बकाया था, अब किसी का बकाया हो तो वह सर्विस कैसे देगा? उसको हम डांटे-डपटें भी, बहरहाल कुछ पैसों पर पैनल्टी लगाकर हमने पचास करोड़ रुपये तक का भुगतान किया, जिससे ऐम्बुलेंस सेवा में काफी सुधार आया, लेकिन ये भी वास्तविकता है कि जो ऐम्बुलेंस पुरानी हो गई थीं, उनका रिप्लेसमेंट नहीं हुआ था, जो राज्य की पिछली सरकार को कर लेना चाहिए था, क्योंकि केंद्र सरकार हमेशा एनएचएम के तहत देती है, हमने ही सात सौ बारह नई ऐम्बुलेंस का ऑडर किया, उसका टेंडर हो गया है और इस साल के आखिर तक सात सौ बारह ऐम्बुलेंस स्वास्थ्य विभाग की ऐम्बुलेंस सेवा में आ जाएंगी और हमलोग ऐम्बुलेंस व्यवस्था को सुचारू रूपसे चला पाएंगे, मैं डॉक्टर्स के मुद्दे पर लौटता हूं और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमें लगता है कि लॉंग टर्म में हम चाहे जितना भी करलें डॉक्टर्स की कमी रहेगी, इस समस्या से निपटने के लिए हमारी स्टेट हेल्थ पॉलिसी कैबिनेट में आने को तैयार है, जिसकी यह विशेषता है कि जो प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्र हैं, जहां पर विशेष रूपसे डॉक्टर्स की जरूरत नहीं है, व्यावहारिक दृष्टिकोण से वहां पर आपको टैक्नीशियन और नर्सिंग की जरूरत है, जैसे पट्टी करना, इंजेक्शन देना, बुखार हो, ब्लड प्रेशर लेना, थर्मामीटर लगाना, चोट लग गई है तो ये काम नर्सिंग के लेवल पर ही होता है या इसे आयुष के लोग भी कर सकते हैं तो हम इसे इस हेल्थ पॉलिसी में लेकर आ रहे हैं, इसके अतिरिक्त और भी कुछ चीजें हैं, जिनमें किस तरह से टेक्नोलॉजी आ सकती है, इनमें हम एक लॉंग टर्म व्यवस्था लेकर आ रहे हैं, जो टेली कंसल्टेशन और टेली मेडिसिन है, जिसका भी टेंडर हो चुका है, वह भी इस साल के आखिर तक आ जाएगी, जो डीएड2 अस्पताल हैं, उनपर भी हमने विशेष रूपसे ध्यान दिया है, क्योंकि आयुष्मान भारत आ गया है, जिसमें पांच लाख तक की एनएचपीएससी स्कीम है, विशेष रूपसे प्राइवेट लोग भी जो डीएड2 डीएड3 शहर में नहीं लाते हैं, जिनको लगता है कि पैसे का कैसे भुगतान होगा, उनको पैसा कैसे मिलेगा, ओपीडी हमारी फ्री है, अगर आप अच्छा अस्पताल बनाते हो तो ओपीडी का खर्चा हम वैसे भी देते हैं, आपको भी दे देंगे और जो एडमीशन का खर्चा है, वो आयुष्मान भारत भी देगा, इस तरह हम पीपी मॉडल में एक सौ पचास सीएचसी के लिए सौ बेडेड अस्पताल लेकर आ रहे हैं, उसका भी टेंडर तैयार है, मैं समझता हूं कि स्वास्थ्य क्षेत्र में इन सुविधाओं और योजनाओं से जरूर ही एक अच्छी स्वास्थ्य सेवा उत्तर प्रदेश में चलने लगेगी।
सिद्धार्थनाथजी! स्वास्थ्य विभाग संभालने के पहले दिन ही आपने स्वास्थ्य सेवाओं की इन बुनियादी आवश्यकताओं और समस्याओं पर फोकस किया था, जिसपर आपका काम समझा जा सकता है और जिसका आपने यहां उल्लेख भी किया है, आपने गहराई तक सुधारने की कोशिश की है, जिनका रिजल्ट देर से मिलेगा, लेकिन जनता तो तुरंत आउटपुट चाहती है, जो अभी सामने नहीं आ रहा है...
स्वास्थ्य सेवाओं पर विश्वास कीजिए!
विश्वास कीजिएगा! आउटपुट आएगा, हम और हमारी टीम दिनरात एक कर रही है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं शीघ्र अति शीघ्र पटरी पर आएं, इसमें कुछ समय तो लगेगा ही, क्योंकि खाई बहुत गहरी है, व्यवस्था एकदम जर्जर है, अस्पतालों में स्ट्रैचर नहीं हैं, व्हील चेयर नहीं हैं, वार्ड ब्वायज़ और सफाई कर्मचारियों को सैलरी नहीं दी जा रही थी, सब काम ठप पड़ा था, एक प्रक्रिया अगस्त से अभी तक कोर्ट में लंबित पड़ी है, यद्यपि उस प्रक्रिया से मैं सहमत नहीं हूं, क्योंकि वह आउटसोर्सिंग की है, मगर आप उसको भी तो चलाओगे ना, सीएमओ धांधली से अपने हिसाब से लोगों को ले रहे थे और 2015 में जो प्रक्रिया सरकार ने अपनाई थी उसको चलने नहीं दे रहे थे, उसपर कोर्ट में चले गए, कोई भी कर्मचारी, वार्ड ब्वॉय, स्वीपर, टैक्नीशियन या चौकीदार ले ही नहीं पा रहे थे, सोचिए सीएचसी बेसिक मेंटेन कैसे होगी, बुनियादी सुविधाओं और समस्याओं पर पिछली सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया, हम कोर्ट में गए कोर्ट में लड़ाई लड़ी और हम जीते, हम लोगों को समय लगा और समय इतना लग गया कि फरवरी 2018 से उसको सुधारना शुरू किया है, रिक्रूटमेंट शुरू किया है, उस प्रक्रिया को चेंज करके हम टेंडर बेसेस में आने वाले हैं, नई प्रक्रिया से आएंगे, मगर लोगों की आवश्यकता है, लोगों को हम रोक नहीं रहे हैं, कर्मचारी आने चाहिएं।
सीतापुर में कुत्ते काट रहे हैं, जिलों में अस्पतालों में मृत मरीजों के शव तीमारदार ढोते दिखाई दे रहे हैं, ये व्यवस्था स्थानीय प्रशासन से ज्यादा रिलेटेड है, डीएम, सीएमओ, सीएमएस क्या कर रहे हैं, ये तीनों स्वास्थ्य सुविधाओं को इम्प्लीमेंट करने वाली ऐजेंसी हैं, आपको इनका फेलियर नज़र नहीं आता, हर काम शासन करेगा? कहीं यह सुनियोजित प्रदर्शन तो नहीं है...
जिलाधिकारी क्या कर रहे हैं?
स्थानीय प्रशासन में जिलाधिकारी की मुख्य भूमिका होती है, क्योंकि जिले के हर विभाग पर उनका पर्यवेक्षण नियंत्रण होता है, आप जिले के सर्वेसर्वा हैं, स्थानीय प्रशासन की आवश्यकतानुसार यथा स्थान यथा समय निर्णय ले सकते हैं, आपने सीतापुर का जिक्र किया तो इसके लिए मुख्यमंत्री या मंत्री को वहां जाना पड़े ये ठीक नहीं है, वहां डीएम को यह देखना चाहिए कि उनके यहां यह क्या और क्यों हो रहा है और कहीं कोई कमी हो तो उसे जिले के स्तर पर तुरंत ठीक किया जाए, सीतापुर में ये कौनसे कुत्ते हैं, खाली बरेली से रिर्पोट आ जाए और पशुपालन विभाग के लोग जांच करलें, ये सही नहीं है, मुझे नहीं लगता कि स्थानीय प्रशासन इतना कमजोर है कि वह आवारा कुत्तों का निस्तारण भी नहीं कर सकता, इसके लिए भी सरकार को आगे आना पड़े, नगरनिगम, नगरपालिका के पास पहले से ही ऐसी समस्याओं से तुरंत निपटने की व्यवस्था है, आप उसके लिए एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट से हेल्प लीजिए, वो भी नहीं, स्वास्थ्य विभाग का कार्यभार ग्रहण करते हुए स्वयं मुख्यमंत्रीजी ने मुझसे कहा था कि हमने पिछले साल के बजट में तीन करोड़ पचहत्तर लाख रुपये जिला अस्पतालों को दिए हैं और साथ में एक सर्कुलर भी जारी किया गया है कि सरकारी अस्पतालों से शवों के निस्तारण में आवश्यकता पड़े तो प्राइवेट क्षेत्र से भी तुरंत शव वाहन लें और किसी भी मरीज का शव अमानवीय तरीके से न जाए, उसके लिए शव वाहन दिए जा रहे हैं, इस साल भी जिलों को सर्कुलर गया है और 2018 में राशि बढ़ाकर दस करोड़ कर दी है, ताकि हर अस्पताल, जिला अस्पताल के पास इस हेतु पैसा रहे और किसी भी मरीज की मौत हो जाने पर उसका शव वाहन से ही भेजा जाए, देखिए! बीजेपी की सरकार संवेदनशील सरकार है और कोई भी शव लेकर जाए, सही हो ग़लत हो, कहना नहीं चाहिए कि कभी-कभी तो कुछ और भी कारण से लोग तुरंत शव ले जाते हैं, जो लाश को लेकर जल्दी भागना भी चाहते हैं तो मैं उस आधार पर कह रहा हूं कि हम इसकी अपने ऊपर रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हैं, क्योंकि यह विषय संवेदनशील है, मौके पर जो डॉक्टर है, उसकी भी जिम्मेदारी है कि अस्पताल से कोई भी शव बिना वाहन के न निकले और निकला तो मैं कड़ी कार्रवाई करूंगा, तत्काल सस्पेंशन करूंगा, मैं जिलों को पैसे दे रहा हूं, मैंने पचहत्तर नए शव वाहन खरीदे हैं, हर जिला अस्पताल के लिए मैंने अलग से आठ करोड़ का एक और प्रोविजन किया था तो फिर क्या दिक्कत है? हमतो हर तरह से प्रयास कर रहे हैं और यदि मेरा सीएमओ या सीएमएस इस व्यवस्था को सुचारू रूपसे नहीं चला सकता तो मैं तो उनपर जरूर कार्रवाई करूंगा।
राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं तो मायावती और अखिलेश सरकार के समय से ही ध्वस्त हैं, उनके यहां भ्रष्टाचार चरम पर रहा है, अखिलेश सरकार में अराजकता थी, तबभी लोग अपने शव अपने साधन से ले जाते देखे गए हैं, उस समय टीवी चैनलों पर एक श्रृंखला की तरह ऐसा वीभत्स प्रदर्शन नहीं दिखा, ऐसे कई दृष्टांत सामने आए हैं, इसलिए ऐसा तो नहीं कि इस बहाने आपके विभाग या योगी सरकार को टारगेट किया जा रहा है...
जी हां तबतक वह न्यूज़ बन गई!
देखिए हमारा विश्वास सही कार्य करने में है, जिसका अच्छा परिणाम जरूर दिखेगा, मैंने पहले ही कहा है कि जर्जर व्यवस्था को ठीक करने में समय लगता है और आगे के कार्य प्रभावित रहते हैं, सही है कि कहीं न कहीं कुछ टारगेटिंग तो होती ही है और हमने देखा है कि समाजवादी पार्टी के लोगों का राजनीतिक रवैया जैसा है, वह हर किसी को मालूम है, जनता को मालूम है, लेकिन मैं इसपर कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं करूंगा, अखिलेश यादवजी ने तो शव पर ही प्रेस करदी, देखिए जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देना सरकार की जिम्मेदारी है और यह एक संवेदनशील मामला है, मगर कुछ भी हो हम सुधार करना चाहते हैं और सरकार की संवेदनशीलता को भी बरकरार रखना चाहते हैं, हम हर उस चीज पर अंकुश लगाना चाह रहे हैं, जो सरकार के कर्तव्यपालन में बाधा है, कहीं पर हम इसे एडमिनिस्ट्रेटिव फेलियर भी कह सकते हैं, मैं आपको भदोही का एक केस बताता हूं, जो शव से सम्बंधित है, मैंने तुरंत इसकी जानकारी ली, अस्पताल में सीसीटीवी कैमरा लगा है, उसकी डीएम से जांच कराई तो पता चला कि जो शव वहां पड़ा था, उसके पांच मिनट बाद ही ऐम्बुलेंस पहुंच गई, मगर परिवार खुद वह शव लेकर चला गया, मैं परिवार को नहीं बोलूंगा, कोई भी कारण हो सकता है शव को जल्दी ले जाने का, मगर वो तबतक न्यूज़ बन गई, हम बार-बार कह रहे हैं कि ऐसे मामलों में जिला प्रशासन की भी जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी, अकेले विभाग के अधिकारियों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता, योगी शासन जिलों को संबंधित कार्यों के लिए समय से ही धन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारियों का संवेदनशीलता के साथ निर्वहन कर रहा है, विफलता पर कोई भी क्षमायाचना नहीं चलेगी।
वैसे तो प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि अगर वह ऐसी कोई अमानवीय घटना देख रहा है तो वह अपनी क्षमतानुसार उसके समाधान में योगदान करे, ऐसे संवेदनशील विषय पर आप जनता से भी कुछ कहना चाहेंगे जैसेकि वह अपनी जागरुकता का परिचय दे...
जन सामान्य का भी सहयोग चाहिए!
मैं सबसे इतना ही कहूंगा कि कोई भी व्यक्ति अगर इस प्रकार की घटना देखता है, अमानवीय स्थिति में कोई मृत शरीर को देखता है तो उसके परिवार के साथ अपना एक नागरिक का कर्तव्य निभाए, संवेदना व्यक्त करे, तुरंत हमारे सीएमएस को बताए, ताकि तुरंत शव वाहन की व्यवस्था की जा सके, केवल दिक्कत वहां आ सकती है, जहां जानकारी न मिले, कम्युनिकेशन न हो पाए जो आपके सहयोग से संभव हो सकता है, आप राज्य के जागरुक नागरिक हैं, यदि आप इतना करवा दीजिएगा तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि किसी भी परिवार को ऐसे कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा, एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है और जहां तक सरकार का सवाल है तो उसका गुणवत्तायुक्त प्रदर्शन स्थानीय सहयोग पर ज्यादा निर्भर करता है, स्वास्थ्य विभाग एक ऐसा विभाग है, जिसे जनसामान्य के सहयोग की बहुत आवश्यकता है और सरकार की जिम्मेदारी यह है कि वह उसके लिए अधिकतम बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे, हमारी सरकार को एक वर्ष हो चुका है, हम तेजी से कार्य कर रहे हैं और प्रदेश की जनता हमारे गुणवत्तायुक्त कार्य देखेगी।
ग्रीष्मऋतु अपने चरम पर है और अब वर्षाकाल भी आने वाला है, आपके विभाग की जिम्मेदारियां और भी ज्यादा बढ़ गई हैं, जैसे संक्रमण और इस जैसी बीमारियों का जोर बढ़ जाता है, ऐसे में आपके विभाग ने क्या तैयारियां की हुई हैं...
संक्रमण के विरुद्ध टीकाकरण कराएं!
हमने पूरी तैयारी कर रखी है, नगरनिगम, नगरपालिका और पंचायत के माध्यम से जहां-जहां फॉगिंग होनी चाहिए, जहां-जहां संक्रमण की जांच होनी चाहिए, कहीं पानी इकठ्ठा न हो, डायरिया के लिए दवाईयों का प्रबंध, स्वाइन फ्लू के लिए मास्क का प्रबंध, हर अस्पताल में नेट बेड तैयार कर रखे गए हैं, डॉक्टर्स और नर्सों की ट्रेनिंग हो चुकी है और हमारा जो बड़ा कार्यक्रम है, उसे हम सोलह मई को लांच कर रहे हैं, जिनमें संक्रमण बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण कार्यक्रम को पूरे उत्तर प्रदेश में लॉंच कर रहे हैं, जनता संक्रमण के विरुद्ध टीकाकरण कराए, टीकाकरण टीम को पूरा सहयोग दिया जाए।
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने ग्रामीण क्षेत्रों में एमबीबीएस डॉक्टर्स की दिलचस्पी नहीं होने पर चिंता प्रकट की है, उन्होंने सुझाव दिया है कि जो एमबीबीएस करके आए हैं, उनको प्रमोशन जैसी चीजों का तभी अवसर दिया जाए जब वे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दें, आपने उनकी इस चिंता और सुझाव का संज्ञान लिया है?
उपराष्ट्रपतिजी का सुझाव मानेंगे!
आपका प्रश्न बहुत अच्छा है, मैंने भी अख़बार में पढ़ा है, उपराष्ट्रपतिजी की चिंता और सुझाव को हम सभी को गंभीरता से लेना चाहिए, सरकारों के लिए, डॉक्टर्स के लिए और जनसामान्य के हित के लिए बहुत जरूरी है, यह करने में लाभ है और मैं ये कोशिश करूंगा कि इसका अध्ययन करते हुए हम इसको लागू भी करें, हमने जो पीजी कोर्स कर रहे हैं, उनपर एक तरह की कंडीशन लगा रखी है कि उन्हें दो साल तक गांव में रहना पड़ेगा, कंडीशन यह लगाई है कि हम उनको थर्टी पर्सेंट मार्क्स ज्यादा देंगे, जिसका उन्हें लाभ मिलेगा, हम कहीं न कहीं उनको प्रोत्साहित करेंगे, साथ ही साथ हम लोगों तक टेलीमेडिसिन के माध्यम से पहुंच पाएंगे।
राज्य के पीएचसी केंद्रों पर मरीजों के इलाज की आप क्या सुविधाएं देने जा रहे हैं, खासतौर से जहां डॉक्टर नहीं हैं...
पीएचसी पर डू लिटिल डॉक्टर!
मैंने पांच सौ मशीने ऑडर की हैं, इसकी अभी तक किसी भी अख़बार में जानकारी नहीं दी गई है, मैं आपके माध्यम से पहलीबार यह जानकारी प्रदेश की जनता को दे रहा हूं, ये मशीनें वीआईपी यानी एनएचएम के माध्यम से आ रही हैं, उसको कहते हैं डू लिटिल डॉक्टर, इन मशीनों के संचालन के लिए टैक्नीशियन की आवश्यकता होगी, उन्हें हम पीएचसी में रखेंगे, वहां पर कोई भी मरीज जाएगा, रोग परीक्षण के लिए वह मशीन के सामने बैठेगा, यह मशीन एटीएम जैसी है और मशीन के सामने टैक्नीशियन सामान्य प्रक्रिया के तहत ब्लड लेगा, जिसे मशीन ही टेस्ट करेगी, वह वाईटिकल टेस्ट से लेकर शुगर तक सभी टेस्ट कर लेगी, आप मशीन के सामने अपनी ज़ुबान दिखाएंगे और आंख का फोकस करेंगे, ठीक उसी तरह जैसे डॉक्टर देखते हैं, इसमें स्कीन का रंग दिखेगा और चेस्ट का सेटेस्कोप दिखेगा, बारह मिनट में ये सब चीजें इसी मशीन से चेक हो जाएंगी और बारह मिनट में ही मशीन रोगी की जांच रिपोर्ट भी दे देगी, वो रिपोर्ट एक बड़े सेंटर में जहां पर डॉक्टरों का कमांड और पैनल है, वहां जाएगी और उस रिपोर्ट के आधार पर जो एक तरह का प्राइमरी चेकअप है, डॉक्टर दवाईयां देगा, जहां पर डॉक्टर नहीं जा पा रहे हैं, वहां पर हम इस टेक्नोलॉजी को लेकर जाएंगे।
एक रोगी और एक डॉक्टर के बीच एक सहानुभूति और विश्वास की एक अलौकिक डोर होती है, अक्सर हमने देखा है कि आर्मी के डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ और सिविल के डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ के मरीजों से बिहेवियर में बहुत अंतर नज़र आता है, सिविल के डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ का मरीजों से बर्ताव अनुकरणीय नहीं दिखता है, इसपर आपका क्या फोकस है...
चपरासी बनना बंद करें डॉक्टर!
इसके दो उदाहरण हैं, एक तो जैसे स्वास्थ्य सेवाओं का व्यापारीकरण हुआ है, उत्तर प्रदेश में उसका उदाहरण है, मतलब यहां एक प्रकार से स्वास्थ्य की हर चीज बिकने लगी है, डॉक्टर्स भी बिकने लगे हैं, उसका कारण था, जो मायावतीजी के समय से भ्रष्टाचार हुआ, सभी डॉक्टरों को नहीं कह रहा हूं, ऐसे दस पर्सेंट ही होंगे, बाकी नब्बे पर्सेंट तो बहुत अच्छे हैं हमारे डॉक्टर और बहुत गंभीर और संवेदनशील हैं, बीआरडी में एक-एक डॉक्टर दोसौ-दोसौ मरीजों को देखता है, उसकी गंभीरता और संवेदनशीलता पर क्या प्रश्न चिन्ह लगाएंगे? वो बहुत अच्छा काम कर रहा है, यह सच्चाई है, मगर उस दस पर्सेंट ने इस कौम को बदनाम कर दिया, उसके कारण उत्तर प्रदेश में लोगों में डॉक्टर्स और सरकारी डॉक्टर्स के प्रति नज़रिया है, वह बहुत निचले स्तर का हो गया है, मैं अपने डॉक्टर्स को कहता हूं और खुले मन से कहता हूं कि एक भ्रष्टाचार, जो दस पर्सेंट लोगों ने किया है, उसके आप जिम्मेदार हो, आपकी कौम जिम्मेदार है, उत्तर प्रदेश के कुछ अधिकारी हैं, जिन्होंने आपको चपरासी बना दिया है, आप कृपा करके चपरासी बनना बंद करें, डॉक्टर बनना शुरू करें और यह मानकर चलें कि आप जमीन पर भगवान के दूसरे रूप हैं, ये समझ लोगे तो शायद बहुत कुछ ठीक हो जाएगा, मुझे लगता है और जितनी जगह मैंने यह बोला है, लोगों ने ये सुना है, वीडियो कॉंफ्रेसिंग में भी मैंने ये कहा है, उससे काफी फर्क पड़ा है, यह एक ह्यूमन साइकोलॉजी का मैटर है और इसको मैं उसी प्रकार से डील करना चाहता हूं, मुझे लगता है कि जब उनको ये ट्रस्ट होगा कि जो उनके विभाग का मुखिया या मंत्री है, वो आपको बेहतर नज़रिए से देख रहा है तो शायद उनका वो लेवल बढ़ेगा, मुझे दिख भी रहा है कि वह बढ़ना शुरू हुआ है, अभी दौड़ लंबी है मेरी, मगर मैं दौड़ में रुकूंगा और हारूंगा नहीं।
उत्तर प्रदेश तेजी से बढ़ती जनसंख्या वाला देश का सबसे बड़ा राज्य है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा भारी दबाव तो है ही और पिछली सरकार ने इसपर ध्यान ही नहीं दिया...
जी हां, अब कड़ी कार्रवाई होगी!
जी हां, जनसंख्या का दबाव तो है और पिछली सरकारों में स्वास्थ्य विभाग में जो हुआ है उसको भी झेल रहे हैं, ठीक कर रहे हैं, हम रोज ही लोगों से और विभाग की कड़वी सच्चाईयों से रू-ब-रू होते हैं, इससे कई चीजें भी सीखते हैं, मगर इतना कहूंगा कि लोग थोड़ा मुझपर और सरकार पर पूरा विश्वास करें, मैंने स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाना शुरू कर दिया है और इस एक साल के अंदर ही आप उनको फलीभूत होते हुए भी देखेंगे, शव वाहनों के ही मामले में बताना चाहूंगा कि पिछले साल यानी सात अप्रैल दो हजार सत्रह को हमने राजकीय चिकित्सालयों में शव वाहन खरीदने के लिए तीन सौ पछहत्तर करोड़ रूपये दिए थे, जबकि इस साल दस अप्रैल को जिलों को शव वाहनों के लिए एक हजार करोड़ रुपये की धनराशि दी गई है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार इस मामले में कितनी संवेदनशील है, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार हर स्तर पर धनराशि मुहैया करा रही है, लेकिन यह दुखद है कि शवों को भी राजनीति से नहीं बख्शा जा रहा है, मैं अपनी चेतावनी दोहराता हूं कि इस प्रकार की शिकायत प्राप्त होने पर सीएमओ और सीएमएस बख्शे नहीं जाएंगे, कड़ी कार्रवाई होगी।