राजेन्द्र जोशी
भोपाल। जनाधारहीन नेता जब नीतिनियंता हो जाते हैं, तो वे अपने बुद्धिबल से विरोधियों से ऐसे निपटते हैं, जैसे आज मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और उससे भी ज्यादा पिछड़े वर्ग की ताकतवर नेता उमा भारती से निपटा जा रहा है, जैसे उत्तर प्रदेश के भाजपा के पिछड़े वर्ग के नेता कल्याण सिंह से निपटा गया था, जैसे भाजपा के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के साथ हुआ। गले तक विवादों में डूबे और ड्राइंगरूम राजनीति के विशेषज्ञों ने राजनीति पर कैसे कब्जा जमाया हुआ है, उदाहरण के लिए ये नाम मिसाल हैं। राजनीति में पराजित और हताश नेता अगर उमा भारती को सत्ता की भूखी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? आखिर, उमा के कारण ही कितने जुगाड़ुओं को मध्यप्रदेश और देश में सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। उमा भारती भाजपा में भी कितनों के राजनीतिक राजयोग की सबसे बड़ी बाधा मानी जाती हैं। मगर भाजपा के ड्राइंगरूमी नेताओं ने अकेले उमा को ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी के कितने ऐसे नेताओं को ठिकाने लगा दिया है, इसका कोई हिसाब नहीं है। इस कारण भाजपा भी भटक ही रही है।
भाजपा नेताओं से प्रश्न किए जा रहे हैं, कि जनता उनके साथ क्यों और कैसे चले? जनता जिन्हें नेता बनाती और मानती है, उन्हें भाजपा के अजगर निगल जाते हैं। वहां जनाधार वाले नेताओं की नहीं चल रही है। उमा भारती मध्य प्रदेश में भाजपा को सत्ता में वापस लाई थी। उन्हें एक अदालती वारंट पर इस्तीफा क्या देना पडा, भाजपाइयो ने वनवास दे दिया। जब भाजपा के शीर्ष नेता उत्तर प्रदेश को बहन मायावती के हवाले करके उनसे राखी बंधवा रहे थे तो उमा भारती असहाय सी खड़ी होकर भाजपा के खून पसीने के बनाए साम्राज्य को एक भ्रष्टाचारी से लुटता हुआ देखने को मजबूर कर दी गई थी। अगर वह अपने हाई कमान पर अपनी कुर्सी वापस करने के लिए दबाव बनाती रही थीं तो इसमें गलत क्या हैं? किसी और को शपथ दिलाई जाए और उमा को उफ करने की भी इजाजत नहीं हो? अगर वह गुर्रा रही थीं तो उन्हें गुर्राने की राजनीतिक एवं सामाजिक ताकत हासिल है। वैसे भी जब बाबू लाल गौर को मध्यप्रदेश की कुर्सी से विदा किया गया था तो उत्तराधिकारी का पहला दावा तो उमा भारती का ही था।
भाजपा को उप्र में सड़क पर ला देने वाली मायावती की असली राजनीतिक काट के रूप में भाजपा के पास उमा के अलावा और कोई नहीं हो सकता। काफी पुरानी एक घटना के संबंध में अदालती वारंट के कारण ही तो उमा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। उमा कोई संकोची राजनेता नहीं कही जाती हैं जो अपनी पीड़ा को दबे शब्दों में व्यक्त करें। हाईकमान कहे जाने वालों के बारे में वह खुलकर बोलती रही हैं। सब जानते हैं कि उमा का किनसे और क्यों छत्तीस का आंकड़ा है। भारतीय जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड में जो लोग राज कर रहे हैं, उनमें वे सबसे ज्यादा हावी हैं जो लोकसभा चुनाव में अपने कर्मों से भारी अंतर से हारे हुए हैं या जिनका कोई खास जनाधार नहीं है। इनमें कई को जनाधार वाले नेताओं की उपेक्षा करके राज्य सभा में भेजा गया। भाजपा हाईकमान इनके आगे पीछे नाचता रहा है। वे भारतीय जनता पार्टी में पिछले दरवाजे से प्रवेश करके बड़े नेता बन गये।
अच्छे वक्ताओं की हर पार्टी को जरूरत होती है लेकिन यह नहीं हो सकता कि वे जनाधार वाले नेताओं को अपनी वाकपटुता से ठिकाने लगाने का काम शुरू कर दें। वेकैंया नायडु विधायकी से आगे नहीं गये और कभी चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। सुषमा स्वराज अच्छी वक्ता के तौर पर जानी जाती हैं, मगर जनाधार? दिल्ली से लेकर बेल्लारी तक वे चुनाव हारने के लिए जानी जाती हैं। भाजपा के नेता राजनाथ सिंह हैं, जिनका बड़बोलेपन का एक इतिहास है। इसके अलावा उनका कोई वजूद नहीं दिखाई पड़ता। हैदरगढ़ (बाराबंकी) से एक राजनीतिक उलटफेर के कारण विधायकी जरूर जीते। जसवंत सिंह महत्वपूर्ण पदों पर रहे पर अपने पुत्र को भी चुनाव नहीं जितवा पाए। आज राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। हालाकि वसुंधरा भी भाजपा को गर्त में ही ले जा रही हैं। महान राम भक्त मुरली मनोहर जोशी के बारे में क्या कहेंगे? ये जनता के बीच में भारतीय जनता पार्टी के कथित तौर पर योग्य मगर पिटे हुए मोहरे कहलाते हैं।
उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भारतीय जनता पार्टी के भीतर रहकर ही एक समय निर्वासित सा जीवन जिया है। मध्य प्रदेश में अत्यंत पिछड़े एवं गरीब परिवार से आयीं उमा का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। हालांकि उमा को हटाने के बाद बाबू लाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया था, जो पिछड़े वर्ग से ही ताल्लुक रखते हैं, मगर उनमें न तो उमा भारती जैसे तेवर थे और न उमा भारती जैसी लोकप्रियता। अब हो यह रहा है कि जिसे नीचा दिखाना है तो ऐसे व्यक्ति को कुर्सी का दावेदार बना दीजिए जिसकी न अपनी जमीन हो और न आवाज। वह कभी नाराज होना भी न जानता हो। उसको चाहे जिस प्रकार नचाया जा सकता हो। जैसे उत्तर प्रदेश में राम प्रकाश गुप्त ही थे। ऐसे कई अवसर आये हैं, जब भाजपा हाई कमान के सामने उमा भारती को इस तरह लज्जित किया गया। भाजपा ही ऐसा दल है जिसमें जनता तो है लेकिन उसमें अधिकांश जनाधारहीन नेता हैं और उनमें से ज्यादातर भाजपा के नीतिनियंता हैं। वे हाई कमान से लेकर कार्यकर्ताओं के सामने जनाधार वाले नेताओं का अपमान करने से नहीं चूकते। भाजपा में जैसे एक मैनेजरी संस्कृति का बोलबाला है। यही कारण है कि भाजपा हाई कमान ने विधानसभा या लोकसभा के चुनावों में पार्टी की हार का जब भी विश्लेषण किया तो उसकी दृष्टि इस ओर नहीं गयी कि भाजपा आज जो दण्ड भोग रही है वह जेबी नेताओं के कारण है।
उमा भारती ही नहीं बल्कि इन जैसी पिछड़े वर्ग की महिलाओं या पिछड़े वर्ग के जनाधार वाले नेताओं की उपेक्षा के कारण ही भारतीय जनता पार्टी को बुरे दिनों से गुजरना पड़ रहा है। भाजपा के बारे में विश्लेषण करने वालों का मत है कि जनाधार वाले नेताओं की उपेक्षा करके भाजपा हाई कमान को यह उम्मीद नहीं होनी चाहिए कि वह भारतीय जनता पार्टी को सत्ता प्राप्ति की ओर ले जा सकता है। देश में एक समय तक सवर्णों ने या कुछ बगैर जनाधार के नेताओं ने जो राज कर लिया है, वह आगे भी जारी होगा इसमें संदेह ही है। यह देश अब पिछड़ों, अल्पसंख्यकों दलितों की सामाजिक राजनीतिक लड़ाई के बीच खड़ा है, जहां अब आने वाले समय में नेतृत्व के रूप में किसी सवर्ण को कम ही उम्मीद करनी चाहिए। खासतौर से अब ब्राह्मण मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदें धीरे-धीरे क्षींण होती जा रही हैं। अब यह नहीं हो सकता कि जितना जिसकी संख्या भारी उसकी उतनी भागेदारी की फार्मूले की उपेक्षा कर दी जाए। भारतीय जनता पार्टी ऐसा ही कर रही है। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो न तो उत्तर प्रदेश में जाति आधार पर बहुजन समाज पार्टी अपना आधार बढ़ा पाती और न ही क्षेत्रीय दलों का इतना प्रभाव बढ़ता जिनके कारण पूर्ण बहुमत की सरकारों का गठन भी मुश्किल होता जा रहा है।