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Monday 11 March 2013 11:21:38 AM
नई दिल्ली। भारतीय खेती की सभी प्रकार की सुरक्षा अब एक प्राधिकरण करेगा। केंद्रीय कृषि और खाद्य प्रसंकरण उद्योग मंत्री शरद पवार ने सोमवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य पौधों और पशुओं के हानिकारक कीटों और अवांछित जीवों की रोकथाम, नियंत्रण, उन्मूलन और प्रबंधन के लिए एक प्राधिकरण की स्थापना करना है। प्रस्तावित विधेयक से सभी के लाभ के लिए देश में कृषि जैव-सुरक्षा और कृषि अर्थव्यवस्था की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। बताया गया है कि यह प्राधिकरण पौधों, पौधा उत्पादनों, पशुओं, पशु उत्पादनों तथा जल-जीवों के आयात-निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए तथा कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण सूक्ष्म जीवों के नियमन के लिए भारत की अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को भी निभायेगा।
विधेयक का उद्देश्य एक उच्च अधिकार प्राप्त संस्था यानी एक प्राधिकरण के अंतर्गत पौधों, पशुओं और समुद्री उत्पादों की सुरक्षा और संगरोध की व्यवस्था स्थापित करना है, जिसके पास पर्याप्त अधिकार हो। इस प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में कृषि जैव-सुरक्षा के चारों क्षेत्र आयेंगे-पौधा स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, जीवित जल-जीव (मछली आदि) और कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण सूक्ष्म जीव। कृषि जैव-सुरक्षा के लिए एक साझे प्राधिकरण की आवश्यकता क्यों हुई ? इसके बारे में कहा गया है कि कृषि में विश्व व्यापार के उदारीकरण से कृषि के विकास और विविधीकरण के नये मार्ग खुले हैं, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां भी पैदा हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप देश में कई ऐसे विदेशी कीटों और खरपतवारों की बढ़ोतरी होने का खतरा पैदा हो गया है, जिसके कारण गंभीर आर्थिक नुकसान हो सकते हैं।
अनुवांशिकी इंजीनियरी में प्रगति से कई ऐसे नए प्रकार के जीवों या उनके उत्पादों की पैदाइश भी बढ़ी है, जिनके ख़तरों के बारे में उचित मूल्यांकन और प्रबंधन की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन से भी कीटों के रहने के स्थान बदल गये हैं और नए प्रकार के कीट पैदा हो रहे हैं। इस प्रकार के बढ़ते जैव-आतंकवाद का मुकाबला करना है। कई ऐसे रोग भी हैं, जो सीमा-पार से आकर फैलने लगे हैं। एवीअन इन्फ्लुएजा और यूजी-99 गेहूँ के तने की फफूंदी जैसे रोग मानव, पशु और पौधा सुरक्षा के लिए नए खतरे पैदा करते हैं। बीजों, पौधा सामग्री, मवेशियों और मवेशी उत्पादों के आयात से भारत में पौधों, पशुओं और समुद्री उत्पादों के कई प्रकार के रोग और हानिकारक कीट आए हैं। इनमें पार्थेनियम, फलेरिस माइनर और लानाताना कामारा जैसे खरपतवार हैं, जो भारत में अपनी जड़ें जमा चुके हैं और हर साल काफी आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।
इन सबकी रोकथाम के लिए उपाए किए गए हैं, लेकिन नई चुनौतियों का सामना करने के लिए देश में कृषि जैव-सुरक्षा की आधारभूत व्यवस्था की जरूरत है। कृषि जैव-सुरक्षा के प्रति समन्वित कार्यनीति से न केवल मानव स्वास्थ्य, कृषि उत्पादन, आजीविका सुरक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय क्षमता में वृद्धि होगी, बल्कि खाद्य और कृषि उत्पादों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और अन्य समझौतों को भी ठीक तरह से निभाने में देश सक्षम होगा। कृषि जैव-सुरक्षा से संबंधित इस समन्वित प्रणाली के लिए कृषि, वाणिज्य, उद्योग, रक्षा, पर्यावरण, वन, स्वास्थ्य परिवार कल्याण, ग्रामीण विकास तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मंत्रालयों के विभिन्न संगठनों की विशेषज्ञताओं का उपयोग किया जाएगा। इसके लिए स्वायत्तशासी प्राधिकरण जरूरी है। ऐसे प्राधिकरण से सुरक्षा, कुशलता, पारदर्शिता, संगरोध और कीट प्रबंधन के नियमों में और सुधार आएगा और कृषि में जैव-सुरक्षित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुनिश्चित होगा।