Saturday 23 March 2013 08:57:09 AM
डॉ पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
नई दिल्ली। विख्यात फिल्म अभिनेता और एक राष्ट्रवादी राजनेता सुनील दत्त के पुत्र संजय दत्त एक अच्छे अभिनेता हो सकते हैं, मगर इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट से सिद्धदोष अपराधी भी हैं। सुप्रीम कोर्ट में जिस मामले में उसे दोषी ठहराया गया है, यूं तो वह अपराध बीस वर्ष पुराना है, किंतु देर से आए फैसले का ही परिणाम है कि वर्तमान में संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अनेक लोगों को हजम नहीं हो रहा है। मीडिया में राजनैतिक दलों, नेताओं, फिल्म जगत और कुछ सामाजिक संगठनों के बयान आने लगे हैं कि मानों संजय दत्त को जेल में डाल देने से देश का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा। संजय दत्त के अतीत में और भी कई कहानियां हैं, जो आज की पीढ़ी के सामने नहीं हैं और जिनके सामने आने पर मान लिया जाएगा कि संजय दत्त को और भी ज्यादा कड़ी सजा होती तो काई बुरा नहीं होता। संजय के लिए यह सुखद स्थिति बनी हुई है कि इस सजा को पढ़कर सामान्य व्यक्ति भी सोचने को विवश है कि आखिर संजय दत्त जैसे मासूम और समाज सेवा के लिए समर्पित व्यक्ति को माफ क्यों न कर दिया जाए? सुप्रीम कोर्ट के जज रहे मार्कंडेय काटजू भी महाराष्ट्र के राज्यपाल को बिन मांगी सलाह दे रहे हैं कि संजय दत्त की सजा को माफ कर दिया जाना चाहिए। मीडिया का भी मुंबई बम ब्लास्ट के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट से सजा के बारे में कम, संजय दत्त को सुप्रीम कोर्ट से दी गई सजा पर ज्यादा फोकस है, मानों सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त को सजा सुनाकर कोई अनहोनी कर दी हो!
पिछले कुछ समय से देश में यह देखने और सुनने में आया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी अपराधी को माफ कर देने या उसकी फांसी माफ कर देने की मांग करने लगा है। ऐसे अपराधियों में आतंकवादी भी शामिल होते हैं, इसी का परिणाम है कि संजय दत्त जैसे सिद्धदोष अपराधी को मासूम घोषित करने की होड़ लगी हुई है। विचारणीय सवाल यह है कि ख्यातिनाम लोगों को सज़ा देने को लेकर जो कुछ भावनाएं मीडिया सामने लाई है, उसके पीछे असल बातें छिप रही हैं। बॉलीवुड के अरबों रुपए और उद्योग जगत के विज्ञापनों पर संजय दत्त के नाम से किए गए खर्चे और निवेश की भरपाई तभी ही संभव है, जबकि संजय दत्त को येनकेन प्रकारेण जेल जाने से रोका जा सके और दूसरी गंभीर बात ये है कि आज यदि संजय दत्त को कैद काटनी पड़ी तो कल को दूसरे वर्तमान और पूर्व मंत्रियों या खुद महान हस्तियों या उनके बेटे-बेटियों या परिजनों को दोषी पाए जाने पर, सजा से कैसे बचाया जा सकेगा? ऐसे में संजय दत्त को प्रायोजित तरीके से मासूम, समाज सेवी और महामानव की भांति प्रचारित किया जा रहा है।
यदि हम वास्तव में कानून के शासित नागरिक हैं और सच में एक लोकतांत्रिक देश में निवास करते हैं, तो हमें इस बात की ओर ध्यान क्यों नहीं देना चाहिए कि आज यदि एक संजय दत्त को इस आधार पर कैद भोगने से वंचित कर दिया जाता है कि वह बीस साल बाद सुधर गया है, अब वह अपराधी नहीं रहा है तो फिर तो ऐसे हजारों मामले सामने आने लगेंगे, चूंकि संजय दत्त तो एक ख्यात नाम है, सो उसके अच्छे-बुरे कामों के बारे में जन-जन को पता है, लेकिन समाज में ऐसे हजारों आरोपी और गुनाहगार हैं, जो जमानत पर छूटने के बाद संजय दत्त से भी अधिक सज्जन नागरिक बन चुके हैं और संजय दत्त से कई गुना अधिक देशभक्त, समाजसेवी और भले मानव बन चुके हैं, ऐसे में उनको भी यदि कोर्ट से दोषी ठहराया जाता है, तो क्या उन्हें भी माफ करने के लिए कोई दलील पेश करके या अभियान चला कर बचाया जा सकेगा? कभी नहीं!
भावनाओं में बहकर किसी भी दोषी के प्रति आज सहानुभूति प्रकट करना कल अनेक मुसीबतों को आमंत्रित करना होगा। बेशक राष्ट्रीय मीडिया, जो अनेक औद्योगिक घरानों का असली प्रतिनिधि है और उन्हीं की भाषा बोलता भी है, उसे भी पता है कि इस मामले में उसे क्या भूमिका निभानी चाहिए, मगर वह भी भावनाओं में ज्यादा बहता दिखाई दे रहा है। सत्य यह है कि देश के कानून का सम्मान करने और कानून के अनुसार संजय दत्त को पांच वर्ष की कैद भोगने के लिए जेल जाना ही चाहिए। देश में कानून के समक्ष सभी समान हैं, सभी को कानून का सम्मान करना ही होता है, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को धता बताकर संजय दत्त को पतली गली निकालने से कितना नकारात्मक संदेश देश में जाने वाला है, यह सिद्ध करने की जरूरत नहीं है।
संजय दत्त को जिस अपराध में सजा दी गई है, उसमें उसे पहले ही विशेष कोर्ट से बहुत ही कम सजा दी गई है, अन्यथा देश के दुश्मनों और आतंकियों से संबंध रखने और उनसे गैर-कानूनी तरीके से घातक हथियार प्राप्त करने और उन्हें अपने घर में रखने का अपराध कोई मामूली नहीं है। यह जानते हुए कि वे आतंकवादी हैं, देशद्रोही हैं, उनसे गले लगकर मिलने जैसे गंभीर आरोपों में यदि कोई समान्य व्यक्ति फंसा होता तो निश्चय ही वह रासुका में बंद होता और आतंकवादी भी करार दे दिया गया होता। ऐसे में मात्र गैर-कानूनी रूप से हथियार रखने के जुर्म के लिए ही संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अपने आप में अनेक प्रकार के सवाल खड़े करता है। संजय दत्त के स्थान पर कोई और होता तो उसके कितने ही समाज सेवा के काम के बावजूद उसे समाज में भी नहीं बक्शा जाता।
इसलिए अपराधी के व्यक्तिगत नाम, उसकी ख्याति, प्रतिष्ठा या उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि को देखे बिना उसे सिर्फ और सिर्फ अपराधी ही मानना चाहिए और समाज को संजय दत्त को भी उन लाखों लोगों की भांति अपने किए की सजा भुगतने देनी चाहिए, जिनको बचाने वाला कोई नहीं होता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो देश में एक नई और गैर-कानूनी ऐसी धारणा का अभ्युदय होगा, जिसके तहत समर्थ और विख्यात लोगों के प्रति मीडिया के मार्फत प्रायोजित सहानुभूति जगाकर उन्हें आसानी से बचाया जा सकेगा। ये रास्ता देश को अंधकार और अन्याय की ओर ले जाता है और ऐसे ही मनमाने और गैर-कानूनी कारनामें समाज में असंतोष और आपराधिक माहौल को जन्म देते हैं। यदि एक पंक्ति में कहें तो संजय दत्त को बचाना आग से खेलना है। ऐसे मनमाने कारनामों की परिणिति नक्सलवाद जैसे विकृत रूपों में नज़र आती है। चुनाव हमें करना है कि हम कानून का शासन चाहते हैं या जानबूझकर कानून और न्याय-व्यवस्था को धता बताकर विध्वंसक जैसे हालातों को आमंत्रित करना चाहते हैं?
संजय दत्त किसी समय एक महान आदमी की बिगड़ैल औलाद के रूप में विख्यात रहे हैं। इनकी सौबत समाज के अच्छे लोगों में नहीं रही, इनका सामान्य व्यवहार प्रदर्शन आज भी इन्हें सपोर्ट नहीं करता दिखता है। युवा अवस्था में ये मादक पदार्थ लेने के लिए और अपराधी किस्म के लोगों में उठने-बैठने के लिए बदनाम रहे हैं, अन्यथा इतने घातक हथियारों को घर में रखने की प्रेरणा इन्हें कहां से मिली? राष्ट्र विरोधी तत्वों की देश-विदेश की महफिलों में धुत होकर नाचने के इनके प्रेरणास्रोत कौन रहे हैं? इनके मोबाइल फोन कॉल डिटेल में माफियाओं दाऊद एंड कंपनी के गुर्गों से बातचीत क्या आसमान से आ गईं? संजय दत्त आज जिस समाज सेवा का हवाला दे रहे हैं तो वह देश पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं, मुंबई में इनसे ज्यादा सद्चरित्र और ज्यादा समर्पित समाज सेवी कम नहीं रहते हैं। इनके गहरे दोस्तों में आज अमर सिंह जैसे दलालों के नाम लिए जाते हैं। इन्होंने अपने कर्मों से अपने पिता को कोई कम कष्ट नहीं पहुंचाया। जहां तक इनके परिवार का प्रश्न है तो वहां भी इनके कार्य व्यवहार को लेकर गहरे मतभेद सुने जाते हैं, भले ही बहन प्रिया दत्त उस दिन इनको सजा सुनाए जाने के बाद कोर्ट में फफक कर रो पड़ी हो, हो न हो, उसके रोने के पीछे उसे अपने पिता के महान कार्यों की याद और भाई के ऐसे कर्मों की टीस एक साथ सामने आई हो।
संजय दत्त को ऐसे समय पर यह सजा मिली है, जब उनके अठारह महीने जेल में बिताने के बाद देश की एक पीढ़ी जवान हो चुकी है और वह इस समय देश में किस्म-किस्म के अपराधों, सांप्रदायिकता, देशद्रोह, विघटनकारी शक्तियों और हिंसात्मक-विध्वंसात्मक जैसी खतरनाक घटनाओं और हमलों से रू-ब-रू हो रही है। संजय दत्त के इस मामले को उस समय के लोग, एक समय बाद नज़रंदाज कर गए थे। संजय दत्त का मामला जब तब के लोगों के सामने आया था, तब भी देश के लोग हैरत में थे, क्योंकि उससे ऐसी आशा नहीं थी, इससे देश के अधिकांश लोगों में उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं रही थी। आज सजा सुनाए जाने के समय संजय दत्त के सामने दूसरी पीढ़ी है, जो उसके अतीत को न जानते हुए उससे सहानुभूति तो रखती है, किंतु उसे माफी के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इसके बाद देश में कानून का मान गिरेगा, उसके असरात देश की कानून व्यवस्था पर भारी पड़ते दिखेंगे और सामान्य जनता का विश्वास कानून से उठता नज़र आएगा, तो क्या संजय दत्त को देश और कानून के हित में माफ किया जाना चाहिए?