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Sunday 24 November 2019 05:25:23 PM
मुंबई। महाराष्ट्र का सत्ता संघर्ष इस समय अपने चरम पर है। शिवसेना की मुख्यमंत्री पद पाने की महत्वाकांक्षा ने एनसीपी एवं कांग्रेस की उकसाई हुई राजनीति में आकर यहां से दिल्ली और सुप्रीमकोर्ट तक जो हालात खड़े किए हैं, उनसे चुनावपूर्ण गठबंधन तो मजाक बनकर रह ही गया है साथ ही इससे माननीयों की राजनीतिक पहचान भी जाती रही है। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के दौरान शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी जो सत्ता की खिचड़ी पका रहे थे, उसे भाजपा ने एक ही दांव से खाने खराब कर दिया है। रातोंरात भाजपा ने देवेंद्र फड़नवीस को दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाकर और एनसीपी के विधानमंडल दल के नेता अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस शिवसेना की राजनीति को एक तरह मिट्टी में मिला दिया है, जहां तक एनसीपी नेता शरद पवार के गेमप्लान का सवाल है तो उनके भतीजे अजित पवार ने वह काम कर दिया है कि या तो महाराष्ट्र में भाजपा-एनसीपी गठबंधन की सरकार रहेगी या फिर महाराष्ट्र में फिरसे विधानसभा चुनाव होंगे। शिवसेना का मुख्यमंत्री पद पर दावा कर भाजपा पर हर तरफ से दबाव बनाना शिवसेना को ही भारी पड़ा है, यही कारण है कि कांग्रेस और एनसीपी को भी शिवसेना पर यकीन नहीं है।
भाजपा सरकार में एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार उप मुख्यमंत्री बनाए जा चुके हैं, इसके बाद से महाराष्ट्र में सत्ता का घमासान सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच गया है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे बौखलाए हुए हैं और भाजपा को उसके अंजाम तक पहुंचाने की धमकियां दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि सरकार तो अबभी शिवसेना की ही बननी है। दरअसल शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस को यह रणनीति अपनानी पड़ रही है, क्योंकि इनको डर है कि कहीं इनके विधायक टूटकर भाजपा के साथ न चले जाएं। इन तीनों दलों के विधायकों को भरोसा दिया जा रहा है कि वे विचलित न हों और शिवसेना गठबंधन की सरकार बनने वाली है। इन तीनों दलों के विधायकों का धैर्य डोल रहा है, क्योंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भाजपा ने यदि नए चुनाव कराने का कार्ड खेल दिया तो उनकी विधायकी जाती रहेगी और उन्हें दोबारा चुनाव में जाना पड़ेगा, जिसके बाद उनके चुनकर आने की कोई गारंटी नहीं है।
महाराष्ट्र की राजनीति में माना जा रहा है कि यदि दोबारा चुनाव हो गए तो भाजपा के सामने शिवसेना का तो भारी नुकसान होगा ही, कांग्रेस और एनसीपी को भी बड़ी पराजय का सामना करना पड़ सकता है, इससे भाजपा के साथ सरकार बनाकर चलने में ही भलाई है। इसका एक कारण यह भी है कि शिवसेना के साथ सरकार बनाना सुरक्षित नहीं है, क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है। शिवसेना की सरकार बन ही गई तो भाजपा की केंद्र सरकार शिवसेना को काम ही नहीं करने देगी, फिर शिवसेना के साथ सरकार में रहने का कोई मतलब नहीं है, इसीलिए एनसीपी के नेता अजित पवार ने भाजपा के साथ सरकार में शामिल होने का फैसला किया और सरकार बना ली गई है। जबसे यह सरकार बनी है, तबसे एनसीपी नेता शरद पवार पर अपनी स्थिति साफ करने के लिए भारी दबाव है और वे यह निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। इस बारे में मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। वे अजित पवार को एनसीपी से निकालना भी नहीं चाह रहे हैं, इसलिए राजनीतिक स्थिति साफ नहीं है। सरकार का गठन हो चुका है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने तीस नवंबर तक बहुमत सिद्ध करने का समय दिया है, इधर सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला जा चुका है। अब देखना कि आगे क्या होता है, मगर इस बात की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं कि देवेंद्र फड़नवीस जैसे-तैसे अपनी सरकार का बहुमत सिद्ध कर ले जाएंगे।