Sunday 5 January 2020 11:45:56 AM
दिनेश शर्मा
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम आज तेरा ग्यारहवां जन्मदिन है! अपने अनवरत संघर्ष के बारहवें वर्ष में प्रवेश करने के लिए तुझको अनेकानेक बधाईयां! तेरी 11वीं सालगिरह पर मैं तुझे क्या दूं, सिवाय इसके कि तेरे लिए ऐसे मनीषियों की सद्भावनाएं और शुभकामनाएं हैं, जो पत्रकारिता और उसके संघर्ष की क़ीमत समझते हैं, उसकी तहेदिल से कद्र करते हैं एवं पत्रकारिता धर्म का कुछ तो पालन करने की आशा रखते हैं। मैं तेरे अनवरत संघर्ष की गाथा में क्या लिखूं? परिवार के ही केवल तीन जनों की मौजूदगी में 05-01-2008 को तेरी ऑनलाइन स्वतंत्र आवाज़ ने बिना शोर तमाशे के अपने अस्तित्व का आग़ाज़ किया था और आज भी वही दस्तूद जारी है यानी सत्तानशीनों की चमकती दमकती चकाचौंध से कभी तेरा वास्ता नहीं रहा और आज भी नहीं है। वैसे भी सार्वजनिक जीवन में जन्मदिन उनका मनाया जाता है, जो उसके फाईवस्टार जश्न के बिना रह नहीं सकते।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम के जन्मदिन पर हम पहले की तरह एवं औरों की तरह कोई जश्न नहीं मना रहे हैं। हालाकि मीडिया जगत में जन्मदिन की फाईवस्टार संस्कृति का ही बोलबाला है, बाकी सब उपहास और उपेक्षा के पात्र बनकर रह गए हैं। उपहास भी ऐसा कि जिसके कटीले शब्द बर्दाश्त भी ना हो सकें, लेकिन सच्चाई के सामने हमने उपहास को चकनाचूर होते भी देखा है और आज हम तुझे अपने तेवर के साथ बारहवें वर्ष में जाता देख रहे हैं और आशा करते हैं कि सफर में चाहे कांटे ही क्यों न हों, स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम कभी रुकेगा नहीं। मानना होगा कि वेब मीडिया के रूपमें मीडिया जगत की ये तीसरी क्रांति बहुत जल्द ही अपने चरम पर पहुंची है। पूरी दुनिया इसके आगे-पीछे है। यह जितना लोकप्रिय हो चला है, उसकी उतनी ही जिम्मेदारी बढ़ गई है। इसके सोशल मीडिया में अवांछित और विघटनकारी तत्वों की घुसपैंठ बड़ी चिंताजनक है।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम के ग्यारह बरस के संघर्ष में हमने जो पाया है, उसकी जिम्मेदारी और उसकी सुखद अनुभूति हमें है। हमें संतोष है कि हम हर रोज यह एहसास करते हैं। यह अलग बात है कि सोचते भी हैं कि जैसा समय चल रहा है और मीडिया तेज़ी से कार्पोरेट में बदल रहा है, पत्रकार और मीडिया प्रतिष्ठानों के अधिकतर संवाददाता अपना पत्रकारिता धर्म छोड़कर मीडिया प्रतिष्ठानों एवं सत्ता प्रतिष्ठानों के बीच पीआर की भूमिका में आ गए हैं, उन सबमें तेज़ी से आगे निकलने और सत्ता प्रतिष्ठान का चहेता बनने की होड़ है तो उसमें हम जैसों का भविष्य क्या है? स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम का संघर्ष तो अकथनीय है और हालात एवं समय के थपेड़ों ने हमें उसका अभ्यस्त बना दिया है। हमें मालूम है कि हमारे साथ खड़े होने वाले वही हैं, जिनका हम वर्णन कर चुके हैं, लेकिन इस सच्चाई को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि पत्रकारिता का आनेवाला समय कठिन से कठिनतर है। इसका वर्णन सहज नहीं है।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम के सामने जनवरी 2018 का ऐसा कालखंड आया कि जब उसके अस्तित्व को ही खत्म कर दिया गया। ना जाने कहां से और कैसे हमला हुआ कि पूरी साइट ही उड़ा दी गई। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम के कंटेंट, बारह लाख यूनीक विज़िटर्स, बीस करोड़ हिट्स और करीब एक हज़ार जीबी का इतिहास ही मिट गया। डोमेन को छोड़कर पूरे जनवरी माह स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम का कोई अस्तित्व ही नहीं रहा था। बड़ी मुश्किलों में एक माह में हमें होश आया एवं उसका इधर-उधर बिखरा जितना कंटेंट हम बटोर सकते थे हमने बटोरा। आज हम फिर पहले की तरह न सही लेकिन खड़े हैं सबके सामने खड़े हैं। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम का इतिहास हमें हमारे संघर्ष के प्रति गौरवांवित करता है। इस हौसले ने हमें निराश और कमजोर नहीं होने दिया। इसमें जिनका सहयोग मिला उनका कोटि-कोटि धन्यवाद और जिनसे उपेक्षा मिली उनका भी धन्यवाद!
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम के लिए ये लाइनें लिखते समय हमें केवल अपना ही संघर्ष नहीं दिख रहा है, बल्कि वे चिंताएं भी हमारे सामने हैं, जिनसे न केवल हमारा अपना, बल्कि देश और सर्वसमाज का वृहद सरोकार है, जिनका यहां उल्लेख करना हमारी भी जिम्मेदारी है। देश में नरेंद्र मोदी सरकार है और संतोष है कि देश सुरक्षित हाथों में है। इन वर्षों में हम आँखें फाड़कर अपने देश और दुनिया की छिपी हुईं भयावह सच्चाईयां और उनसे सफलतापूर्वक निपटते मोदी सरकार के ऐतिहासिक निर्णय देख पाए हैं। इन सत्तर साल के कालखंड का लेखाजोखा देखने एवं सुनने के बाद यह मानने और समझने में कोई संकोच नहीं रह जाता है कि हम तो वहीं पर खड़े थे, जहां से शुरू हुए थे। बदलाव आया है तो केवल इतना कि हिंदुस्तान में तकनीकि युग आ गया है, जिसमें हमारी वैश्विक निर्भरता थोड़ी सी कम हुई है, लेकिन इसके साथ हमें जिन और मामलों में प्रगतिशील होना था, उनमें हम 1947 से बाहर नहीं निकले हैं या निकलने नहीं दिए गए।
हिंदुस्तान में हिंदुस्तान के खिलाफ जो ताकतें पहले खड़ी थीं, वो हमारी राजनीतिक कमजोरियों के कारण पहले से और ज्यादा मज़बूत हुई हैं। राजनीतिक दलों की विफलताओं के कारण आज देश को ग़रीबी से नहीं, पहले इन ताकतों से लड़ना पड़ रहा है। देश के ज्वलंत मुद्दों के समाधान से भागते-फिरते इन दलों ने देश को 'धर्मनिर्पेक्षता' के जाल में जिस प्रकार फंसाया उलझाया हुआ है, उसके भयानक दुष्परिणामों से हम आज दो-चार हो रहे हैं। क्या इसीलिए 1947 हुआ था? हिंदुस्तान जैसे हालात दुनिया के किसी भी मुल्क में नहीं हैं, जहां कुछ को छोड़कर एक समुदाय राष्ट्रवाद को गाली समझता है और जेहाद की धमकियां देता है। सवाल है कि हिंदुस्तान में देश की एकता और अखंडता एवं सांप्रदायिक सद्भाव की जिम्मेदारियां क्या अकेले देश के बहुसंख्यकों पर हैं और बाकी का काम? यह देश सभी से इस सवाल का हिम्मत और सच्चाई से उत्तर मांग रहा है।