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Thursday 16 April 2020 12:19:50 PM
अहमदाबाद। भारतीय वैज्ञानिक कोविड-19 के खतरे से निपटने के लिए दिन-रात ऐसे उपाय खोजने में जुटे हैं, जिनसे इस चुनौती का समाधान निकल सके। दावा है कि गुजरात के भावनगर में केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक फेस मास्क विकसित किया है, जिसके संपर्क में आने पर वायरस नष्ट हो सकते हैं। सीएसएमसीआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस फेस मास्क की बाहरी छिद्रयुक्त झिल्ली को संशोधित पॉलीसल्फोन मैटेरियल से बनाया गया है, जिसकी मोटाई 150 माइक्रोमीटर है, जो मैटेरियल 60 नैनोमीटर या उससे अधिक किसी भी वायरस को नष्ट कर सकता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस का व्यास 80-120 नैनोमीटर के बीच है और इस मास्क को चिकित्सीय मान्यता मिल जाती है तो कोविड-19 के प्रकोप से जूझ रहे आम लोगों के साथ-साथ चिकित्सा सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों एवं डॉक्टरों को भी कोरोना वायरस से बचाने में मदद मिल सकेगी। इस मास्क की एक खासियत यह भी है कि इसे धोकर दोबारा उपयोग किया जा सकता है, दूसरे महंगे मास्कों की तुलना में यह काफी सस्ता है और इसकी लागत 50 रुपये से भी कम है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद से संबद्ध सीएसएमसीआरआई के मेम्ब्रेन साइंस ऐंड सेप्रेशन टेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ वीके शाही का कहना है कि इस तरह का फेस मास्क विकसित करने का विचार अपने आप में काफी सराहनीय प्रयास है।
डॉ वीके शाही ने बताया कि इसकी बाहरी परत वायरस, फंगल एवं बैक्टीरिया प्रतिरोधी है, जिसका अर्थ है कि इसकी बाहरी परत के संपर्क में आने पर कोई भी रोगजनक सूक्ष्मजीव नष्ट हो सकता है और इस तरह देखें तो यह एन-95 मास्क से भी बेहतर साबित हो सकता है। डॉ वीके शाही ने बताया कि इस मास्क को बनाने में 25 से 45 रुपये तक लागत आती है, जो दूसरे मास्कों की तुलना में काफी कम है। उन्होंने बताया कि संस्थान ने इस मास्क के पांच संस्करण विकसित किए हैं, जिसमें अलग-अलग तरह की झिल्लियों का उपयोग किया गया है, इसको विकसित करने में करीब एक सप्ताह का समय लगा है और आगामी कुछ दिनों में इसके उपयोग को वैधानिक मंजूरी भी मिल सकती है।