स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 23 October 2021 03:04:14 PM
बेंगलुरु। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा हैकि भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध इतिहास के उन कुछ युद्धों में से एक था, जो न तो जमीन केलिए लड़ा गया, न ही किसी संसाधन केलिए और न ही किसी प्रकार की शक्ति केलिए लड़ा गया था। रक्षामंत्री ने कहा कि इसके पीछे मुख्य उद्देश्य मानवता और लोकतंत्र की गरिमा की रक्षा करना था। उन्होंने बेंगलुरु के येलहंका वायुसेना स्टेशन में 'स्वर्णिम विजय वर्ष' के उपलक्ष्य में भारतीय वायुसेना के तीन दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन पर ये विचार व्यक्त किए। सम्मेलन के विषय 'एक राष्ट्र का जन्म: राजनीतिक-सैन्य विचारों और लक्ष्यों की एकरूपता' का उल्लेख करते हुए राजनाथ सिंह ने इसे सबसे उपयुक्त बताया, क्योंकि सेना के तीनों अंगों और सरकार के तालमेल एवं सहयोग ने भारत की विजय सुनिश्चित की।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत के राजनीतिक-सैन्य विमर्श की अनुरूपता ने शोषण और अन्याय को हराकर एशिया में एक नए राष्ट्र को जन्म दिया और एकबार फिर साबित कर दिया कि जहां धर्मसम्मत न्यायपरायणता है, वहां जीत है-यत धर्मस्तो जय:। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के समय की चुनौतियों पर राजनाथ सिंह ने कहा कि इस युद्ध में पूर्व और पश्चिम दो मुख्य मोर्चे थे, लेकिन वास्तव में ऐसे कई मोर्चे थे, जिनका हमें ध्यान रखना था और जो राजनीतिक-सैन्य तालमेल के बिना संभव नहीं होता है। उन्होंने कहा कि देश को पूर्व से आए लाखों शरणार्थियों की देखभाल करनी पड़ी थी, अंतर्राष्ट्रीय सीमा या पाकिस्तान की 'युद्धविराम रेखा' पर किसी भी तरह के आक्रामक रवैये की निगरानी करनी पड़ी, उत्तरी क्षेत्र में किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप को रोकना था और शांति न्याय एवं मानवता के पक्ष में भारत की विश्वसनीयता बनाए रखनी थी। उन्होंने कहा कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को बड़ी हार का सामना करना पड़ा, पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूपमें एक नया देश बन गया।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पण की ओर भी इशारा किया, जिसमें 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष एकसाथ आत्मसमर्पण कर दिया था। उन्होंने कहा कि केवल 14 दिन में पाकिस्तान ने अपनी सेना का एक तिहाई, अपनी नौसेना का आधा और अपनी वायुसेना का एक चौथाई हिस्सा खो दिया था, यह युद्ध अनेक मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ। रक्षामंत्री ने कहाकि विद्वानों और इतिहासकारों ने बाद में इसे 'न्यायोचित युद्ध' का उत्कृष्ट उदाहरण करार दिया। उन्होंने कहाकि बदलते समय में जब सशस्त्र बलों के बीच संयुक्तता और एकीकरण को बढ़ावा देने की बात हो रही है तो उन्होंने 1971 के युद्ध को शानदार उदाहरण के रूपमें उद्धृत किया। उन्होंने कहाकि इस युद्ध ने हमें सोच, योजना, प्रशिक्षण और एकसाथ लड़ने का महत्व बताया, भारतीय सशस्त्र बलों की सुगठित टीम के कामकाज, कूटनीतिक कुशाग्रता और सुरक्षाबलों की जरूरतों को पूरा करने में एक उत्तरदायी भूमिका को भी देखा, जो सुरक्षा चुनौतियों में 'समग्र सरकारी दृष्टिकोण' की आवश्यकता और महत्व को दर्शाता है।
राजनाथ सिंह ने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ मिला है और रक्षा मंत्रालय को सैन्य मामलों का विभाग प्राप्त हुआ है। रक्षामंत्री ने उन सभी सैनिकों, नाविकों, वायु योद्धाओं और उनके परिवारों की वीरता को सलाम किया, जिन्होंने 1971 के युद्ध में जीत सुनिश्चित की। उन्होंने कहाकि देश इन वीरों की वीरता और बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा और इनके सपनों को साकार करने की राह में आगे बढ़ता रहेगा। इस अवसर पर राजनाथ सिंह ने 1971 के युद्ध पर एक फोटो प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया। सम्मेलन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल विवेकराम चौधरी, रक्षा सचिव डॉ अजय कुमार और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी भी उपस्थित थे।