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Tuesday 22 February 2022 02:50:19 PM
चेन्नई। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने कहा हैकि भाषा ही लोगों के बीच वह सूत्र है, जो उन्हें समुदाय के रूपमें बांधता है। उन्होंने मातृभाषा के संरक्षण और संवर्धन केलिए एक जन अभियान का आह्वान करते हुए कहाकि यदि हम अपनी मातृभाषा को खोते हैं तो हम अपनी पहचान खोते हैं। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह को वर्चुअल रूपसे चेन्नई से संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने भाषाओं में बदलते समय की बदलती जरूरतों के अनुरूप बदलाव लाने का आग्रह किया। उन्होंने भाषाओं को युवा पीढ़ी में प्रचलित करने केलिए नए तरीके खोजने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहाकि खेल-खेल में ही बच्चों को भाषा की बारीकियां सिखाई जानी चाहिएं। उपराष्ट्रपति ने भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में सुधार करने का भी सुझाव दिया।
उपराष्ट्रपति ने भाषा को सांस्कृतिक धरोहर की वाहक बताते हुए कहाकि भाषा हमारे वर्तमान को अतीत से जोड़ने वाला अदृश्य सूत्र है। उन्होंने कहाकि हमारी भाषाएं हजारों सालों के अर्जित साझे ज्ञान और विद्या का खज़ाना हैं। उन्होंने कहाकि भारत में सदियों से विभिन्न भाषाएं साथ-साथ रही हैं और यही भाषाई समृद्धि हमारी रचनात्मकता और सृजन का कारण हैं। उन्होंने हर्ष व्यक्त कियाकि नई शिक्षा नीति 2020 में स्कूली और कॉलेज शिक्षा को मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है। उन्होंने कहाकि नई शिक्षा नीति में समावेशी शिक्षा तथा नैतिक जीवन मूल्यों की शिक्षा के माध्यम से शिक्षा प्रणाली के भारतीयकरण पर बल दिया गया है। इसकी सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने राज्यों से शिक्षा नीति को अक्षरश: लागू करने को कहा। उपराष्ट्रपति ने कहाकि तकनीकी शिक्षा को मातृभाषा में प्रदान करके ही शिक्षा को असल में समावेशी बनाया जा सकता है।
वेंकैया नायडु ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने वाले जापान, फ्रांस तथा जर्मनी जैसे विकसित देशों का उदाहरण देते हुए कहाकि अपनी मातृभाषा के संरक्षण और संवर्धन केलिए इन देशों के अपनाए गए तरीकों और नीतियों से हमें भी सीखना चाहिए। मातृभाषाओं के संरक्षण और संवर्धन में राज्य सरकारों की सक्रिय भागीदारी का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने उनसे अपेक्षा कीकि वे न सिर्फ एक विषय के रूपमें मातृभाषा का प्रचार-प्रसार करें, बल्कि प्रशासन और न्यायालयों सहित सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में मातृभाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित करें। उन्होंने कहाकि सभी राज्य, लोगों की मातृभाषा को ही प्रशासन में प्रयोग करें तथा उन्हें शिक्षा का माध्यम बनाएं। वेंकैया नायडु ने कहाकि एक लोकतंत्र के रूपमें यह जरूरी हैकि शासन में आम नागरिकों की भागीदारी हो, वह तभी होगा जब शासन की भाषा उनकी अपनी मातृभाषा होगी।
उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की कार्यवाही को भी भारतीय भाषाओं में करने को कहा, जिससे लोग न्यायपालिका को अपना पक्ष अपनी भाषा में समझा सकें, उसके निर्णयों को पूरी तरह समझ सकें। उन्होंने कहाकि सदियों की गुलामी ने हमारी भाषाओं को गहरी हानि पहुंचाई है, आज़ादी केबाद भी अपनी भाषाओं केसाथ न्याय करने के हमारे प्रयास पर्याप्त नहीं रहे। उन्होंने कहाकि यह बहुत बड़ी भूल रहीकि मातृभाषा का प्रयोग नहीं किया गया, विदेशी शासन के समाप्त होने के फौरन बाद ही मातृभाषाओं और भारतीय भाषाओं को न अपनाया जाना, गलत था। उपराष्ट्रपति ने लोगों से अधिक से अधिक भाषाएं सीखने का आग्रह करते हुए कहाकि सर्वप्रथम अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा की सुदृढ़ नींव डालें। उन्होंने भारतीय भाषाओं को रोज़गार और आजीविका से जोड़ने पर भी जोर दिया। इस दौरान केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ एम रविचंद्रन और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।